गेस्ट हाउस कांड को किनारे कर देशहित में सपा से किया गठबंधन: सपा-बसपा 38-38 सीटों पर लड़ेंगी चुनाव

*मायावती ने कहा- गेस्ट हाउस कांड को किनारे रखकर देशहित में हम सपा से गठबंधन कर रहे
उन्होंने कहा- उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव में भी यह गठबंधन कायम रहेगा
* हमारा गठबंधन गुरु-चेले मोदी-अमित शाह की नींद उड़ा देगा
*सपा-बसपा के बीच 26 साल बाद गठबंधन, 1993 से 1995 तक उप्र में दोनों दलों की गठबंधन सरकार थी

लखनऊ- बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन का ऐलान कर दिया। मायावती ने कहा- ‘‘राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से सपा और बसपा 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। अमेठी (राहुल गांधी की सीट) और रायबरेली (सोनिया गांधी की सीट) को हमने कांग्रेस से गठबंधन किए बिना ही उसके लिए छोड़ दिया है ताकि भाजपा के लोग कांग्रेस अध्यक्ष को यहीं उलझाकर ना रख सकें। शेष दो सीटों पर अन्य पार्टियों को मौका देंगे।’’ कांग्रेस के गठबंधन में शामिल नहीं होने पर मायावती ने कहा- ‘‘कांग्रेस से गठबंधन करके हमें फायदा नहीं मिलता, बल्कि कांग्रेस को हमारे वाेट ट्रांसफर हो जाते हैं। हमारा वोट प्रतिशत घट जाता है।’’

26 साल बाद दोबारा गठबंधन, मायावती ने कहा- इस बार यह लंबा चलेगा
सपा-बसपा के बीच 26 साल पहले भी गठबंधन हुआ था। 1993 में भी दोनों दल साथ आए थे। दो साल सरकार भी चली, लेकिन 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद गठबंधन टूट गया। तब लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती की मौजूदगी में सपा समर्थकों ने बसपा विधायकों से मारपीट की थी। इस घटना पर मायावती ने कहा- ‘‘गेस्ट हाउस कांड को किनारे करके देश हित और जन हित में हम सपा से गठबंधन कर रहे हैं। इस बार यह गठबंधन लंबा चलेगा। जब उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होंगे, तब भी यह गठबंधन कायम रहेगा।’’

1) गठबंधन की वजह?

मायावती ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, इन दोनों गुरु-चेले की नींद उड़ा देने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस है। देश और जनहित को लखनऊ गेस्ट हाउस कांड से ऊपर रखते हुए हमने यहां आपस में चुनावी समझौता करने का फैसला लिया है। 1990 के आसपास भाजपा की घाेर जातिवादी, संकीर्ण, साम्प्रदायिक नीतियों और अयोध्या के माहौल के कारण प्रदेश की जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। आज भी देश की सवा सौ करोड़ की आम जनता भाजपा की वादाखिलाफी से जूझ रही है। उसकी किसान-व्यापारी विरोधी नीतियों, अहंकारी और तानाशाही वाले रवैये से जनता दुखी है। इसलिए बसपा और सपा ने व्यापक जनहित को ध्यान में रखकर एकजुट होने की जरूरत महसूस की है।’’
‘‘ऐसी जनविरोधी पार्टी को सत्ता में आने से रोकने के लिए हमने कुछ लोकसभा और विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में इनके अधिकांश उम्मीदवारों को हराकर नई शुरुआत कर दी है। कांग्रेस के लोगों की तो जमानत ही जब्त हो गई थी। इसके बाद ही यह चर्चा शुरू हुई कि अगर सपा-बसपा 80 लोकसभा सीटों पर एकसाथ चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा को दोबारा सत्ता में आने से रोका जा सकता है। लखनऊ गेस्ट हाउस कांड को भी किनारे करके भी हमने देश के सबसे बड़े प्रदेश में गठबंधन करके चुनाव लड़ने का फैसला लिया है ताकि इस बार भाजपा एंड कंपनी को रोका जा सके।’’

2) कांग्रेस को गठबंधन में शामिल क्यों नहीं किया?

मायावती ने कहा- ‘‘कांग्रेस और भाजपा दोनों शासनों में रक्षा सौदों में घोटाले हुए हैं। राफेल घोटाले के कारण भाजपा को 2019 के चुनाव में सरकार गंवानी पड़ेगी। कांग्रेस पार्टी के राज में घोषित इमरजेंसी थी। अब भाजपा के राज में अघोषित इमरजेंसी है। ये लोग अपनी सरकारी मशीनरी का जबर्दस्त उपयोग कर रहे हैं। 1977 में कांग्रेस की तरह ही भाजपा को इस बार भारी नुकसान होने वाला है। बसपा-सपा को कांग्रेस से चुनावी गठबंधन करके कोई खास फायदा नहीं मिलेगा।’’
‘‘कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से छोड़ी गई सीटों पर हमें वोटों का लाभ नहीं होता और विपक्षी पार्टी को वोट ट्रांसफर हो जाता है, जबकि हमारी पार्टी से जुड़ा पूरा का पूरा वोट हमारे साथ गठबंधन करने वाली पार्टी को ट्रांसफर हो जाता है। कांग्रेस जैसी पार्टियों को ताे हमसे गठबंधन का पूरा लाभ मिल जाता है, लेकिन हमें कोई लाभ नहीं मिलता। हमारा वोट प्रतिशत घट जाता है। 1996 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हमें इसका कड़वा अनुभव हुआ है।’’

3) सपा-बसपा के बीच गठबंधन का विचार कब से था?
सपा प्रमुख अखिलेश ने कहा, ‘‘गठबंधन के विचार की नींव उसी दिन से बैठ गई थी, जिस दिन से भाजपा ने मायावतीजी के बारे में अभद्र टिप्पणियां शुरू कर दी थीं। मैंने उस दिन बसपा-सपा के गठबंधन के विचार पर मन में अंतिम मुहर लगा दी थी, जब बसपा उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर को राज्यसभा चुनाव में छल-कपट से हराकर भाजपा के लोगों ने खुशियां मनाई थीं। भाजपा और उसके नेता ये बात भी अच्छी तरह समझ लें कि बसपा और सपा का यह केवल चुनावी गठबंधन नहीं है, यह भाजपा के अन्याय का अंत भी है। अब दोनों दलों के कार्यकर्ता मिलकर भाजपा के अत्याचारों का मुकाबला करेंगे।’’

4) सपा-बसपा कार्यकर्ता एकसाथ काम करेंगे?
अखिलेश ने इस बारे में अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दिया कि सपा का हर कार्यकर्ता आज से यह मान ले कि मायावतजी का सम्मान, मेरा सम्मान है। अगर कोई भाजपा नेता मायावतीजी का अपमान करता है तो वह मेरा अपमान माना जाए।

5) क्या अखिलेश बतौर पीएम कैंडिडेट मायावती का सपोर्ट करेंगे?
इस सवाल पर अखिलेश ने साफ-साफ जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा, ‘‘आपको पता है कि मैं किसे सपोर्ट करूंगा। उत्तर प्रदेश ने हमेशा प्रधानमंत्री दिया है। आगे भी ऐसा ही हाेगा।’’ इस सवाल-जवाब के दौरान मायावती मुस्कुरा रही थीं।

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