फतेहगंज पश्चिमी, बरेली। कोरोना काल में लगभग जमींदोज हो चुका सट्टेबाजी का धंधा फिर चल पड़ा है। आईपीएल शुरू होते ही सट्टेबाजों का धंधा चरम पर पहुंच गया है। शहर से लेकर गांव तक सट्टेबाज और उनके पंटर जोड़ तोड़ में लग गए हैं। आईपीएल मैच का सीजन चल रहा है या यूं कहें कि मैच पर सट्टा लगाने वालों का त्योहार आ गया है। सट्टे पर रुपये लगाने वाले को पंटर कहते हैं। सट्टे के स्थानीय संचालक को बुकी कहा जाता है। सट्टा लगाने वाले पंटर दो शब्दों खाया और लगाया का इस्तेमाल करते हैं। यानी किसी टीम को फेवरेट माना जाता है तो उस पर लगे दांव को लगाया कहते हैं। ऐसे में दूसरी टीम पर दांव लगाना हो तो उसे खाया कहते हैं। मैच की पहली गेंद से लेकर टीम की जीत तक भाव चढ़ते-उतरते हैं। एक लाख को एक पैसा, 50 हजार को अठन्नी, 25 हजार को चवन्नी कहा जाता हैं। जीत तक भाव चढ़ते-उतरते हैं। अगर किसी ने दांव लगा दिया और वह कम करना चाहता है, तो इसी कोड में बात करनी पड़ती है। सट्टेबाज बड़े घरों के और स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को मोटा लालच देकर मैच पर सट्टा लगबाते है। बच्चों के पास पैसे खत्म होने की स्थिति में उन्हें उधार पैसा देकर सट्टा खिलाया जाता है। ज्यादा पैसे का कर्ज़ होने पर बच्चों पर सट्टेबाज तरह तरह के दबाव बनाते हैं। सट्टेबाजों की रकम चुकाने के लिए बच्चे कभी कभी गलत रास्ते पर भी चल देते हैं। बीते साल इस तरह के 2 मामले सामने भी आए थे। बारादरी थाना क्षेत्र के रहने वाले एक छात्र ने अपने घर के गहने चोरी कर लिए थे जबकि प्रेमनगर का एक छात्र लुटेरा बन गया था। ऐसे में माता-पिता और घर में रहने वाले बड़ों की और भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उन्हें अपने बच्चों पर थोड़ा सा ध्यान देने की जरूरत है। अगर कोई बच्चा आईपीएल मैच में जरूरत से ज्यादा इंटरेस्ट ले रहा है तो घरवालों की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है। उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कहीं उनका बच्चा किसी बुकी या फिर किसी सट्टेबाज के चक्कर में तो नहीं पड़ गया है। अगर ऐसा है तो तुरंत पुलिस को पूरे मामले से अवगत कराएं ताकि बच्चा सट्टेबाज के चंगुल में फंसने से बच सके।।
बरेली से कपिल यादव