वनों के बिना जीवन की कल्पना असम्भव-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश/ हरिद्वार- भारत में प्रतिवर्ष 1 फरवरी से वन अग्नि सुरक्षा सप्ताह का आयोजन किया जाता है ताकि जनसमुदाय को वनों की महत्ता, वनों का प्रबंधन, संरक्षण और सतत विकास के प्रति जागरूक किया जा सके। वन अग्नि सुरक्षा सप्ताह के आयोजन का उद्देश्य है कि वनों का सदुपयोग कैसे करेेेें, सतत विकास लक्ष्यों को सुदृढ़ बनाने के साथ ही भावी पीढ़ियों के लिये भी वन रूपी सम्पदा का संरक्षण किया जाये तथा वनों के कारण ही पर्यावरणीय स्थिरता भी बनी रहती है। आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण के लिये वृक्षों को काटा जा रहा है जिससे जंगल सिमटते जा रहे है। दूसरी ओर प्राकृतिक और मानवीय कारणों से जंगलों में आग लगने के कारण पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियां नष्ट हो जाती है।
वैश्विक स्तर पर भी दू्रत गति से हो रही जंगलों की कटाई के कारण पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त हो रही है। जंगलों की कटाई से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ रही है जिससे पर्यावरण और प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है, जल स्तर कम हो रहा हैं और प्रदुषण का स्तर बढ़ रहा है इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को वनों के प्रबंधन और संरक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि विश्व का करीब 31 प्रतिशत भूभाग वनों से आच्छादित है, जो न केवल प्राणवायु ऑक्सीजन देता है बल्कि अनेक प्राणियों, पशुओं, पक्षियों और कीटों के लिये एक सुरक्षित घर भी है तथा विश्व की लगभग 1.6 बिलियन आबादी अपनी जीविका के लिये वनों पर निर्भर रहती है इसलिये वनों की सुरक्षा और संवर्द्धन हेतु प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक और जवाबदेह बनना होगा।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि वन और जल धरती पर सबसे महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन में से एक है जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। किसी भी देश की वास्तविक संपन्नता वहां के प्राकृतिक संसाधनों की समृद्धि से होती है। वन भारत की सबसे उपयुक्त, अनूठी और विशिष्ट संपदा है और वनों पर ही हमारा जीवन आश्रित भी है, यदि वन नहीं रहेंगे तो हमारा अस्तित्व नहीं रहेगा इसलिये वृक्षारोपण, वनों का संवर्द्धन और संरक्षण करना नितांत आवश्यक है।

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