एक कडवा सत्य:नहीं रूक रहा है उत्तराखंड के गावों से पलायन

उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से लगातार पलायन जारी है कारण पहाड़ में राेजगार का न हाेना सरकारी सिस्टम लाचार। सरकार हर साल पलायन राेकने के लिए कुछ न कुछ याेजनायें बना रही है परंतु धरातल पर याेजना नही है केवल कागजाें तक सीमित है इसी पर साेहन नेगी गढ प्रेमी ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं रूकेगा पलायन लिख के दूँ । कारण सभी जानते हैं लेकिन मौन हैं । सबसे पहली बात आज जो भी सज्जन पलायन को रोकने की थामने की बात कर रहे है उनके खुद के बच्चे परिवार गाँव मे नहीं होंगे और हाँ होंगे भी तो बहुत कम ऐसा है और दूसरा जिनके बच्चे परिवार गाँव थमे है उन्हे फुर्सत ही नहीं पलायन पर चर्चा करने की वो अपने काज व मजदूरी मे जुटे हैं और कुछ हम जैसे होटलियर या फिर कुछ ज्यादा ही माटी के लिए चिंतित कहीं न कहीं इसी बात की चिंता मे ढूबे है कि हमें भी आखिर शहर ही आना है बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए क्योकि शायद ही कोई पिता या सदस्य होगा जो अपने परिवार बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने की सोचेगा। हर एक मैं हूं या आप यही कोशिश मे लगा ही है कि बस किसी तरह हालात सुधर जाऐ और शहर की तरफ आया जाया और आना ही होगा क्योकि बच्चे स्कूल जाने लायक होंगे तो आना ही होगा बस कुछ समय के लिए ही गाँव मे ठहराव कर सकते हैं ।

फिर सुख सुविधा उचित शिक्षा कुशल स्वास्थ्य की परिकल्पना क्या सरकारी कर्मचारी व राजनीतिक नेता गण या बड़े अधिकारी ही कर सकते है क्या । क्या हमे चिंता नहीं की मध्य रात्री मे अगर परिवार के किसी सदस्य को या बच्चे को कोई तकलीफ लग जाऐ तो उसके कुशल स्वास्थ्य के लिए हम क्या करेंगे । आज पलायन पर बात कर रहे चाहे कोई नेता हो या सरकारी अफसर अधिकारी हो संगठन हो समिति समूह हो या कोई व्यक्ति विशेष मैं ही क्यो न हो सभी के बच्चे परिवार शहरी करण मे है और बात पलायन पर कर रहे हैं अब या तो खुद को बदलना होगा अपने परिवार बच्चों को लेकर गाँव जाना होगा और अगर यह उचित नहीं लगता तो पहले जो उचित है वो करना होगा। यानि गाँव पहाड़ी क्षेत्रों की दशा और दिशा बदलनी होगी फिर स्वतः गाव प्रस्थान करना होगा अन्यथा हमें कोई अधिकार ही नहीं की हम किसी को गाँव मे ठहरने को कहे कुछ तो वजह हो ।
और दूसरी बात हम पर आती है हम मे से अगर कोई दो पैसे कमा लेता है मेहनत करके तो हमारी सोच गाँव नहीं अपितु शहर होती है दिल्ली या देहरादून या कही अन्य और अपना आशियाना मन चाह बना लेते है और उस पैतृक स्थान जन्म भूमि मे लौटना भी नहीं चाहते। नतीजा आज गाँव खाली वीरान होते जा रहे है और शहर चमकते जा रहे हैं फलस्वरूप कामकाजी आदमी परिवार बेरोजगार होते जा रहे है जैसे की मकान बनाने वाले मिस्री वर्ग मजदूरी करने वाले मजदूर वर्ग औजार बनाने वाले लोहार वर्ग पूजन करने वाले पुरोहित पंडित वर्ग खुशियो के माहौल को उत्साह करने वाले ओजी वर्ग हल जोत कर पेट भरने वाले क्षत्रिय वर्ग सब मे बेरोजगारी ओर दूसरा कारण की हम जरा से पैसे वालों ने उनहे समझा नहीं सम्मान दिया नहीं तो ऐसे में कौन पिता अपने बच्चों को वंशिक काम को बढ़ाने को कहेगा या प्रोत्साहित करेंगा ।

-इंद्रजीत सिंह असवाल,पाैडी गढ़वाल उत्तराखंड

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