मिट्टी है – बेजान है ,निष्प्राण है हमारी मृत देह : नारायण बारेठ

बाड़मेर /राजस्थान- राजधानी का एक बड़ा नामी अस्पताल जिसमें एक हार्ट की समस्या को लेकर मरीज एडमिट करवाये गए, बताया गया कि उनके तीन ब्लॉकेज है स्टैंट डालने होंगे और पांच लाख का खर्चा पैकेज में बताया, आखिरकार इलाज तो करवाना ही था रूपये जमा करवा दिए परिजनों द्वारा स्टेंट डालने के बाद आईसीयू में परिजनों को सिर्फ बाहर से ही मरीज कि शक्ल दिखा दी गई और बताया कि अब मरीज कि स्थिति पहले से काफ़ी बेहतर है। अगले दिन अचानक परिजनों को सूचित किया जाता है कि मरीज को वापस दिल का दौरा पड़ा है डेढ़ लाख रूपये तुरंत जमा करवाओ, उन्होंने अपने घर सूचित किया कि तुरंत रूपये लेकर आओ दुर्भाग्य से अन्य परिवारजन रूपये लेकर अस्पताल पहुंचते उससे पहले ही मरीज की मृत्यु हो गई।

अब अस्पताल वालों ने कहा कि काउन्टर पर डेढ़ लाख रु जमा करवा कर डिस्चार्ज टिकट बनवा लो यह सुनकर एक परिवार जन ने कहा कि ज़ब इलाज पैकेज में तय था तो फिर अब रूपये किस बात के और वो भी ज़ब हमारा व्यक्ति ही जीवित नहीं रहा जबकि कल तीन स्टेंट डालने के बाद मरीज कि हालत अच्छी बताई और सुबह तक ठीक थी इस बात को लेकर थोड़ी हील हुज्जत भी हुई। अंततः परिवार वालों ने कहा कि हम तो मृतक का सवाई मानसिंह अस्पताल में ले जाकर पोस्टमार्टम करवाएंगे इतना सुनते ही अस्पताल प्रबंधन के होश फाख्ता हो गए और पहले जमा करवाये गए रूपये भी आधे वापस कर मृतक को तुरंत ही डिस्चार्ज कर दिया। ये बात सौ प्रतिशत सही है ऐसे एक ही नहीं अनेक उदाहरण और मिलता है इन बड़े बडे़ अस्पतालों के।

परन्तु प्राइवेट हॉस्पिटल इस मिट्टी का भी मोल मांगते है
केरल के कट्टाकडा में जब एक मरीज की मौत हो गई और हॉस्पिटल ने चार लाख का बिल थमा दिया। परिजन शोकाकुल। गुहार करते रहे। पर हॉस्पिटल्स के कर्मचारियों का दिल नहीं पसीजा।वे डेड बॉडी नहीं छोड़ रहे थे। आखिर प्रशासन हरकत में आया और मामला एक लाख पर छूटा।

यह न तो पहला मामला है न ही एक मात्र। बरेली में एक मजदूर की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। लोग उसे निजी हॉस्पिटल में ले गए। कुछ वक्त के बाद जेरे इलाज वो चल बसा। हॉस्पिटल ने कहा पहले 33 हजार दो। फिर बॉडी देंगे। परिजन विलाप करते रहे। फिर चंदा इकट्ठा हुआ। 17 हजार पर सुलह हुई। ऐसा ही किस्सा गोरखपुर का है, वहां भी सरकार की दखल के बाद बॉडी परिवार को दी गई।

आदमी की सांसे उखड़ गई तो बंधन मुक्त हो गया। लेकिन जो इलाज से ठीक हो गए और हॉस्पिटल का भारी भरकम बिल चुकाने की क्षमता नहीं है तो हॉस्पिटल प्रशासन बंधक बना लेता है।मध्य प्रदेश के शाजापुर में लक्ष्मी नारायण दांगी में बहुत बुरी हुई। दो साल हुए होगें इस बात को वे एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती हुए ओर ठीक हो गए। लेकिन हॉस्पिटल ने 11 हजार 400 रूपये का बिल थमा दिया। उनके पास पैसे नहीं थे। उन्हें घर नहीं जाने दिया गया। 65 साल के इस व्यक्ति को हॉस्पिटल स्टाफ़ ने बैड से बांध दिया गया। फोटो शोशलमीडिया वायरल हुई तो सरकार सक्रिय हुई और जिला प्रशासन द्वारा हॉस्पिटल का लाइसेंस रद्द कर दिया गया।

मध्यप्रदेश के एक पुलिस कर्मचारी किसी बीमारी के कारण दिल्ली के नामी हॉस्पिटल में भर्ती हुए। तबियत ठीक हुई तो बड़ा बिल थमा दिया गया। परिवार ने हाथ खड़े कर दिए। हॉस्पिटल ने मरीज को जाने नहीं दिया।परिजनों ने दिल्ली हाई कोर्ट में फरियाद की। जस्टिस विपिन सांघी और दीपा शर्मा ने हॉस्पिटल को कड़ी फटकार लगाई और आदेश में कहा पैसे के लिए किसी भी मरीज को बंधक नहीं बनाया जा सकता है और अदालत ने कहा if bill not paid,you cannot keep patients hostage .अदालत ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की। दिल्ली सरकार के वकील ने कहा ऐसे कई हॉस्पिटल है जो ऐसा करते है। मुंबई के पोवई में एक ऑटो चालक के साथ निजी हॉस्पिटल ने यही किया। फिर किसी नेता के दखल से छुटकारा मिला। मैनपुरी के ओमवीर दिल्ली के अपोलो में भर्ती हुए। लेकिन जब तक बिल नहीं दिया गया ,हॉस्पिटल वालों ने घर नहीं जाने दिया।

कई बार हाईकोर्ट के कई कई आदेशो के बावजूद प्राइवेट हॉस्पिटल बेपरवाह है।2014 में मुंबई के एक निजी हॉस्पिटल ने संजय प्रजापति के भाई को जब नहीं छोड़ा ,वो हाई कोर्ट गए। जस्टिस वी अम कानाडे और पी डी कोड़े ने सुनवाई करते हुए कहा -अस्पतालों को दूकान की तरह चलाया जा रहा है।इसी हाई कोर्ट ने 2018 में ऐसे ही मामले की सुनवाई करते हुए कहा – रोगी के भी कुछ अधिकार होते है। महाराष्ट्र सरकार इन अधिकारों को अपनी वेबसाइट पर चस्पा करे।मानवाधिकार आयोग ने रोगी के अधिकारों का एक चार्टर बनाकर स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपा था। पर हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।2021 में केरल हाई कोर्ट ने प्राइवेट हॉस्पिटल के कुछ बिलो को लेकर कहा -हमने बिल देखे है।कोर्ट हैरान थी कि PPE kit के 22 हजार रूपये।चावल के दलिये के भी 1200 रूपये।

भारत का प्रतिस्पर्धा आयोग गत कई साल से प्राइवेट हॉस्पिटलस के विरुद्ध अनुचित तरीके से काम करने की जाँच कर रहा है। अपनी एक रिपोर्ट में आयोग ने कहा दिल्ली के 12 सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों ने हर चीज में लूटा है। इन अस्पतालों में कुछ का किराया 4 स्टार होटल से भी महंगा था। कोरोना के दौरान इन अस्पतालों ने दवा ,जाँच ,मेडिकल उपकरण आदि में हर चीज में भारी वसूली की है।इन अस्पतालों में अपोलो ,फोर्टिस ,मेक्स ,बत्रा ,गंगाराम जैसे हॉस्पिटल शामिल है। अपोलो का सालाना औसत टर्न ओवर 12 हजार करोड़ और फोर्टिस का 4 हजार करोड़ से अधिक का है।

महाराष्ट्र में कोरोना के दौरान ज्यादा पैसा वसूलने की 65 हजार शिकायतें मिली थी। 2017 में दिल्ली के एक नामी हॉस्पिटल ने एक डेंगू मरीज को 15 दिन का 16 लाख रूपये का बिल थमा दिया।दक्षिण कोरिया में कानून है। वहां प्राइवेट हॉस्पिटल वही संगठन चला सकता है जिसका मकसद मुनाफा कमाना न हो।इतना सब होने के बावजूद न कभी इस पर संसद में हल्ला मचता है न कभी विधान सभाओं में। क्योंकि उनका इलाज फ्री है। उनके लिए बड़े हॉस्पिटल बिछे बिछे रहते है। कम से कम दो सरकारी संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट में इन अस्पतालों को कठघरे में खड़ा किया है। इनमे नेशनल फार्मास्टिकुल प्राइस अथॉरिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कोरोना में कुछ निजी अस्पतालों ने 1700 प्रतिशत तक मुनाफा बटोरा। ये न अदालतों की सुनते है ,न सरकारी संगठनों की।दिल्ली में अभी सबसे मजबूत हाकिम है लगता है सरकार बेबस है।

किसी का घर मकान बिक गया ,किसी के जेवरात।कोई उम्र भर के लिए कर्जदार हो गया। पर हॉस्पिटल मुस्करा रहे है। रोमन दार्शनिक मार्कस सिसरो कहते थे जब किसी के पास तर्क का आधार नहीं होता है तो वो बदजुबानी पर उतर आता है। मेडिकल संगठन भी यही कर रहे है। AIMS ने हिसाब लगा कर बताया है कि एक MBBS के शिक्षण प्रशिक्षण पर सरकार का 1 . 7 करोड़ खर्च होता है। गुजरात के एक मंत्री नितिन पटेल ने कुछ वक्त पहले कहा एक डॉक्टर की पढ़ाई पर सरकार के 30 /40 लाख खर्च होते है।यह मेरा आपका पैसा है। हमारे टैक्स का हिस्सा है। हमे हक है इस पर आवाज उठाने का।

आप उस भारत के डॉक्टर है जिसने कोटनिस जैसे डॉक्टर दिए है। क्या यह महज धंधा है ,क्या यह व्यापार है ,कारोबार है अगर यह व्यापार है तो भी एक व्यापारी कहता है – मीठा बोल पर पूरा तौल।

फोटो सोशलमीडिया पर वायरल ….

– राजस्थान से राजूचारण

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