जुनून और समर्पण हो तो क्या कुछ हासिल नही होता

मध्यप्रदेश,आगर मालवा- विज्ञान-कथा लेखक अमृतलाल वेगड़ भले नब्बे की वय में थे, पर उनका जाना स्तब्ध कर गया। यायावरी में उनका जीवन निराला था। और वे इस बात की खुद मिसाल थे कि जुनून और समर्पण हो तो क्या-कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। उनकी शिक्षा-दीक्षा शांतिनिकेतन में कला संकाय में हुई। आचार्य नंदलाल बसु उनके गुरु थे। उन्होंने चित्रकला का अध्यापन भी किया। बाद में उन्होंने नर्मदा नदी की पैदल परिक्रमा का संकल्प ले लिया, जिसे वे लगभग तीस वर्ष तक पूरा करते रहे।
नर्मदा से वे इतना जुड़ गए थे कि नर्मदा का धीर-गंभीर स्वभाव और निर्मलता उनकी अपनी पहचान बन गए थे। वे कहते थे, उन्होंने जीवन में जो कुछ अर्जित किया वह मां नर्मदा का ही दिया है। हंस कर कहते थे, ‘अगर सौ-दो सौ साल बाद कोई दंपती नर्मदा की परिक्रमा करता दिखाई दे, पति के हाथ में झाड़ू हो और पत्नी के हाथ में टोकरी और खुरपी, पति घाटों की सफाई करता हो और पत्नी कचरा ले जाकर दूर फेंकती हो, दोनों साथ-साथ पौधे रोप रहे हों तो समझ लीजिए वे हम ही हैं – कांता और मैं।’
नर्मदा के जल का संगीत उनके कानों में गूंजता था। नर्मदा की यात्रा में वे कहते थे, उन्होंने उसके किनारे बसे गांवों में आम लोगों के हृदय का सौंदर्य देखा है। यानी यात्राओं में वे मानव स्वभाव का भी निकट से अध्ययन करते रहे। नदियों की वर्तमान स्थिति के बारे में उन्होंने दो टूक कहा कि हम सभ्य लोगों ने अपनी नदियां बुरी तरह मैली कर दी हैं।
अमृतलाल वेगड़ जी ने नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से लेकर भडूच में नर्मदा के सागर में समाहित होने तक की पैदल यात्राएं कीं और इन यात्राओं के अद्भुत अनुभवों को पुस्तकों में संजोया। ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’, ‘अमृतस्य नर्मदा’ और ‘तीरे-तीरे नर्मदा’ उनकी चर्चित किताबें हैं। ‘नर्मदा रेखांकन’ में उनके अनोखे रेखांकन संयोजित हैं। अनेक कोलाज भी। उनकी पुस्तकों को हिंदी ही नहीं बल्कि अनुवाद में मराठी, गुजराती, बंगला और अंग्रेजी के पाठक वर्ग ने भी पढ़ा है। उनके यात्रा साहित्य को साहित्य अकादेमी ने भी सम्मान दिया।
भोपाल से मैं उनकी मधुर स्मृति लेकर दिल्ली लौटा। कुछ दिनों बाद उन्होंने मुझे अपनी नर्मदा-त्रयी की पुस्तकें सस्नेह भेंट के रूप में भेजीं। यह उनके व्यक्तित्व और अद्भुत जीवन का ही प्रभाव था कि मैं भी यात्राओं के लिए प्रेरित हो उठा। बड़े व्यक्तित्व की यही ख़ूबी होती है और उपलब्धि भी कि वह नई पीढ़ी को प्रेरणा देता चलता है। वेगडज़ी का लेखन, चित्रांकन, जीवन की सादगी और आस्थावान लम्बी यात्राओं का अनुभव संसार आने वाली पीढिय़ों को प्रेरणा देता रहेगा।

राजेश परमार ,आगर मालवा

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