चार गुटों में बंट चुकी चौबट्टाखाल विधानसभा:कांग्रेस क्या जीत पाएगी 2022 का चुनाव

उत्तराखंड/सतपुली – यूँ तो सभी दलों में गुटबाजी देखने को मिलती है। जहाँ भाजपा में गुटबाजी होती तो है लेकिन केवल अंदर खाने ही दिखाई देती है और बहार लोगों को जानकारी नहीं हो पाती वहीँ टिकट फाइनल हो जाने पर सारे गुट एकजुट हो जाते हैं जिससे भाजपा फतह हासिल कर देती है।

वही प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की गुटबाजी चौराहे पर दिखती है।देखा जाय तो इस वक्त चौबट्टाखाल कांग्रेस चार धड़ों में बंट चुकी है।
पहला गुट राजपाल बिष्ट जो कि 2 चुनाव इस विधानसभा से लड़ चुके हैं और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। साढ़े चार साल बाद चुनाव नजदीक आते ही राजपाल बिष्ट पूरी तरह जनता के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके साथ भी कुछ कार्यकर्ता हमेशा रहते हैं, देखा जाय तो राजपाल बिष्ट सरल स्वभाव के धनी है, उन्हें उस तरह की राजनीति नही आती जो आमजन से शुरू होती है, बल्कि उनके साथ की चौकड़ी उन्हें केवल बड़े कार्यकर्ताओं से मिलवाती है, जो उनके लिये घातक भी साबित हो सकती है।केंद्र में अच्छी पकड़ होने के कारण इस बार भी वो टिकट की दौड़ में आगे बताए जा रहे हैं।

वही दूसरा नाम है कवींद्र इष्टवाल का जो पहले भाजपा में थे और 2017 में निर्दलीय चुनाव लड़ा तथा अपना अच्छा खासा दम दिखा चुके हैं ।कवींद्र इष्टवाल स्वभाव के धनी तो है ही, साथ में उन्हें गुटबाजी करनी नहीं आती, बल्कि सबको साथ लेकर चलना आता है | कवींद्र आम जनता को महत्व ज्यादा देते हैं, यही कारण है कि उनकी पैठ आम जनता के दिलो में रहती है। कही पर यदि कोई बैठक होती है, तो कवींद्र हर गुट के लोगो से इस तरह से पेश आते हैं ।जैसे उन्हें पता ही न हो कि ये अलग गुट का है और यही कारण है कि कांग्रेस के चारो गुटों के कार्यकर्ता भी दिल ही दिल में कवींद्र को योग्य नेता समझते हैं।

आपने देखा होगा कि यदि कवींद्र बाजार में अकेले खड़े होते हैं, तो देखते ही देखते एक के बाद एक भाजपा हो या कांग्रेस सभी के कार्यकर्ता व आम जनता के लोगो का हुजूम उनके पास आ जाता है। जहाँ तक हमने कांग्रेस की तमाम बैठकों में देखा है, कवींद्र हमेशा संगठन को महत्व देते हैं। वो हमेशा कहते हैं कि टिकट महत्व नही रखता जीत महत्व रखती है। उन्होंने हमेशा कहा कि कार्यकर्ता केवल हाथ (कांग्रेस) को देखे हाथ के लिए काम करे न कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए। विगत साढ़े चार सालों से लगातार कवींद्र हर न्याय पंचायत स्तर पर बैठके करवाते रहते हैं और जबसे कवींद्र कांग्रेस में आये तो चौबट्टाखाल में कांग्रेस को मजबूती मिली है।

अब बात करते हैं केशर सिंह नेगी की इनमें भी बड़ी खूबी है ये कार्यकर्ताओं के साथ साथ आम जनता से ज्यादा मतलब रखते हैं। इन्हें भाषण बाजी नही आती लेकिन आम जनता के बीच बैठकर उनकी दुख तखलीफो को सुनना व उनकी सहायता करना अच्छा लगता है । किशोरी नेगो ब्लॉक प्रमुख के साथ साथ जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुके हैं और इस बार चौबट्टाखाल विधानसभा से अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।

अब आती है बारी सुरेंद्र रावत की जो पहले ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं अच्छे वक्ता भी है लेकिन उपरोक्त सभी से आर्थिक रूप से कमजोर है।जिसके कारण उनके साथ हुजूम खड़ा नही रहता है लेकिन इस बार टिकट की दावेदारी उनकी भी दिखः रही है।

अब बात पते की ये है कि यदि भाजपा अपने कद्दावर नेता सतपाल महाराज को चौबट्टाखाल से टिकट देती है तो उनके मुकाबले में कांग्रेस से केवल कवींद्र इष्टवाल ही है जो जीत दर्ज कर सकते हैं और यदि किशोरी नेगी को टिकट मिलता है तो टक्कर वो भी अच्छी खासी दे सकते हैं पर सीट नही ,अब ये कांग्रेस के आलाकमान को सोचना होगा कि उन्हें यदि निश्चित जीत चाहिये तो वे कवींद्र इष्टवाल पर दांव लागये और यदि खाली मुकाबला देखना है तो फिर किसी को भी टिकट दे सकती है।यह चुनावी गणित है।जो लेखक को समझ आया।

– इंद्रजीत असवाल की कलम से चौबट्टाखाल कांग्रेस की चुनावी गणित

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