पौड़ी गढ़वाल- धीरू पलायन पर परेशान देहरादून स्थित अपने किराये के मकान की छत पर शाम को ठंडी बियर और के एफ सी चिकन के तन्दूरी लेग पीस के साथ उत्तराखंड के पहाड़ी गावों से हो रहे पलायन पर फेसबुक में अपने क्रांतिकारी विचार लिखते हुए सरकारों को कोस रहा था !!! कि अचानक ग्रुप में एक मैसेज पढ़कर वह चौंक गया, लिखा था पहाड़ी गाँवों में जमीन चाहिए , और कीमत देहरादून के बराबर , नीचे नम्बर लिखा था !! तुरन्त उसने नम्बर पर सम्पर्क किया ओर अगले दिन मिलने जा पहुंचा उस न0 के बताए पतेपर जो एक सरदार जी थे !!धीरू उनको अपने गाँव ले गया और अपनी पुश्तेनी जमीन दिखाई,पूरी जमीन का सौदा तय हो गया ,धीरू को 25 लाख मिल गए !!धीरू पूछे बिना भी न रह पाया कि सरदार जी पहाड़ों से सारे लोग छोड़कर जा रहे हैं और आप यहां इतनी महंगी जमीन ले रहे हो?? सरदार भी उख्खड़ दिमागी थे , कहन लगे ..तू आम खा …पेड़ रहने दे !!!!उसने भी फटाफट एक छोटा सा प्लाट देहरादून में लिया और 2 कमरेडाल दिए अब वह भी देहरादून वाला हो गया ।इस बात को 10 साल गुजर गए !! धीरू सरदार को बेची अपनी जमीन देखने गया तो वहां अब शानादार कॉटेज बने थे ,जहां अंग्रेज बाँज के पेड़ों पर गोवा जैसे झूले लटकाकर आराम फरमा रहे थे , कॉटेज के रिसेपशन में पहुँच कर जब उसने वहाँ स्टे का भाड़ा पूछा तो पता चला , कोदे की रोटी ,झंगोरे की खीर ओर मुला की थिचोनी और हिमालयन बकरी की कचमोली के साथ कुल मिलाकर सात से दस हजार हर रोज का किराया था !!! ओर योगा क्लाश के एक हप्ते के 10 हजार अलग से । उसने वहां एक कप घरेलू गाय के दूध की चाय पीजिसके 50 रु का बिल आया।धीरू के बच्चे भी अब बड़े हो गए थे जो अब दिल्ली में जॉब कर रहे थे ओर दिल्ली की एक पुरानी बस्ती में 8×10 के एक कोठरी में रात काट रहर थे क्योकि वे सुबह शाम तो डीटीसी की बसों में लटके रहते ओर दिन भर फेक्ट्रियो में शरीर गलाते । थकान से चूर वे रात काटने ही अपने इस क्वाटर में आते।इधर धीरू की देहरादून वाली छत के आस पास अब ऊँची छते उग आई थी, खुद उसकी छत उसकी कुंवें की सी मांद सी हो गई थी , वह दिनभर 10×12 के कमरे और टीवी तक सीमित था , अब उसे गाँव की बड़ी यादआती थी , वो खुलापन , वो हरियाली , वो हवा पानी , वो सकूँ ?? पर अब धीरू की जड़ें गाँव से उखड़ चुकी थी , दुबारा उन जड़ों को वहां रोपना असम्भव था , क्योंकि अब उन जड़ों का अपने गांव की जमीन से अस्तित्व कब का खत्म हो चुका था ।जय देवभूमि जय उत्तराखण्ड चलो गांव की ओर वरना पछताओगे
काल्पनिक हक़ीक़त
-इन्द्रजीत सिंह असवाल,पौड़ी गढ़वाल