जीएसटीः नये पंजीयन नहीं तो राजस्व कैसे प्राप्त होगा?

साथियों, आप सभी को पंजीयन प्राप्त करने में विशेष दिक्क्तों का सामना करना पड़ रहा है। विचारणीय प्रश्न है कि शासन स्थानीय विभागीय अधिकारियों को लगातार पंजीयन बढ़ाने पर जोर दे रहा है लेकिन सुनने में आता है कि स्थानीय अधिकारी पंजीयन आंवटित करने में अकारण ही आपत्ति लगाते हुए पंजीयन आवदेनों को रितेक्ट कर देते हैं। तो प्रश्न यह पैदा होता है कि जब विभाग नये व्यापारियों को पंजीयन नहीं देगा तो सरकार को राजस्व कैसे प्राप्त होगा। अतः हमारे द्वारा निम्न पत्र केन्द्रीय वित्त मंत्री के साथ सभ्सी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भेज कर ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया है। आप हमारे भेजे पत्र से कितनी सहमति रखते हैं, कृपया अवगत कराने का कष्ट करें, प्राप्त सहमतियों को अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा।

पंजीयन हेतु जटिल प्रक्रिया की समीक्षा होनी चाहिए
पत्र लिखते हुए आपका ध्यान महत्वपूर्ण बिन्दु पर आकृष्ट करना चाहता हूं क्योंकि यह पंजीयन रिजेक्शन लगातार सरकार के लिए राजस्व वृ(ि में रुकावट का कारण भी बनता नजर आ रहा है।

सर्वप्रथम विचारणीय प्रश्न यह है कि सरकार को अप्रत्यक्ष कर प्रणाली माल एवं सेवाकर अधिनियम के प्रावधान के अन्तर्गत पंजीकृत व्यापारी द्वारा मासिक जीएसटी टैक्स के रुप में राजस्व प्राप्त होता है। परन्तु हमारा मानना है कि प्राप्त राजस्व के मुकाबले और भी अधिक राजस्व प्राप्त किया जा सकता है अजः इस प्रक्रिया को सार्थक और सुगम बनाना होगा। साथ ही पंजीयन प्रक्रिया और व्यवस्था को पर पुनः नये सिरे से समीक्षा करनी होगी, ताकि पंजीकृत करदाताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृ(ि हो सके, ध्यान रखते हुए नीति निर्धारण होना चाहिए कि हमारे देश की आबादी ;136 करोड़द्ध के साक्षेप मंे वर्तमान पंजीकृत व्यापारियों की संख्या पर संतोष नहीं करना चाहिए!!

पंजीयन प्रक्रिया की समीक्षा करने की आवश्यकता क्यों?
हम पंजीयन प्रक्रिया की समीक्षा करने के कारण यह है कि
पंजीयन प्रार्थना पत्र प्राप्त होने के बाद विभाग को व्यापारिक स्थान के लिए पते का ‘सत्यापन’ करने का अधिकार दिया गया है ताकि फर्जी एवं गलत पंजीयन न हो सके। तो प्रश्न उठता है कि…
व्यापारिक स्थल का सत्यापन का आधार रखा क्या गया है और किस प्रकार किया जा सकता है? सत्यापन की व्यावहारिक एवं सरल प्रक्रिया क्या हो सकती है?

ज्ञातव्य रहे कि पंजीयन हेतु प्रार्थना पत्र दाखिल करते समय प्रार्थी को अपना आधार कार्ड, पैन कार्ड एवं समर्थन में किरायानामा अथवा बैनामा आदि दस्तावेज के साथ स्थानीय निकाय द्वारा जारी जलकर, सम्पत्तिकर की प्राप्ति रसीदों को अपलोड करने की व्यवस्था रखी गई है। लेकिन पोर्टल में अपलोड करने हेतु सीमित काॅलम हैं।

हम समझते है कि सरकार द्वारा जारी किये जाने वाला आधार कार्ड को ‘सत्यापन’ हेतु पता व व्यक्ति के मान्यता हेतु व्यवस्था सरकार द्वारा ही दी गई है। जब कहीं भी अपना निवास अथवा अन्य प्रमाण देना होता है तो आधार कार्ड को दिखाना होता है, परन्तु व्यापारिक स्थल के सत्यापन हेतु आधार कोर्ड को मान्यता प्रदान नहीं की जा सकती, तद्नुसार दुकान या गोदाम का किरायेनामा अथवा बैनामा दाखिल करना होता है।

जब हमारे द्वारा किसी भी बैंक में बचत या अन्य कोई खाता खुलवाना होता है कि उसमें भी पैन कार्ड के साथ आधार कार्ड की फोटोप्रति दाखिल करनी होती है, जिसको बैंक का शाखा प्रबन्धक सत्यापित करते हुए खाता खोल दिया जाता है।
परन्तु जीएसटी के अन्तर्गत आवेदित प्रार्थना पत्र में विभागीय अधिकारियों को दृष्टिकोण दूरा होता है। वह पैन कार्ड, आधार कार्ड, बैनामा या किरायानामा के आधार पर पंजीयन आंवटित नहीं किया जा रहा है।

पंजीयन प्रक्रिया की समीक्षा की आवश्यकता क्यों?
परन्तु देखने मे आ रहा है कि जब जीएसटीएन पोर्टल पर पंजीयन हेतु प्रार्थना पत्र अपलोड करना होता है तो उसमें प्रार्थी का पैन कार्ड, आधार कार्ड के साथ बैंक खाते के साथ व्यापारिक स्थल का प्रमाण भी अपलोड करना होता है।

  1. व्यापारिक स्थल के प्रमाण के रुप में दुकान, जहां व्यापार करना होता है, यदि किराये पर है तो उसका किरायानामा अथवा वह स्थान का स्वामी आवदेक स्वयं है तो उस स्थान का बैनामापत्रक, स्थानीय निकाय द्वारा जारी सम्पत्तिकर और जलकर की प्राप्ति रसाीद को प्रमाण के रुप में अपलोड करना होता है।
  2. उल्लेखनीय है कि जब हम एम.एस.एम.ई योजना को लें अथवा कहीं अन्य सरकारी योजना में पंजीयन प्राप्त करना चाहते हैं तो उसमें भी आधार कार्ड का सत्यापन के आधार पंजीयन आंवटित कर दिया जाता है।
    पंजीयन प्रार्थना पत्र को रिजेक्ट करने के आधार, जो लिया जाता है

बहुधा पंजीयन को रिजेक्ट करने का कारण यह भी दिया जाता है कि मकान नंबर अंकित नहीं किया गया है जबकि…

‘‘ऐसे बहुत से स्थान है जो कि ग्रामीण क्षेत्र में होते हैं, जहां पर कोई मकान नंबर अथवा भवन संख्या स्थानीय निकाय द्वारा आवंटित नहीं किया जाता है अर्थात उस क्षेत्र के मौहल्ला के नाम ही आधार कार्ड या पैन कार्ड में अंकित होता है, तद्नुसार स्थानीय निकाय द्वारा जारी सम्पत्तिकर और जलकर की प्राप्ति रसीद पर और विद्युत विभाग के बिल पर भी कोई भवन संख्या या मकान नंबर अंकित नहीं किया जाता।’’

बहुधा यही भी देखा जाता है कि विभाग द्वारा आपत्ति लगाकर पंजीयन रिजेक्ट कर दिया जाता है कि दाखिल बैनामा या किरायेनामा ‘पठनीय’ नहीं है, इस प्रक्रिया को कैसे भी राजस्वहित में नहीं कहा जा सकता।

लेकिन दुखःद स्थिति जब पैदा होती है कि जब पंजीयन प्रार्थना पत्र में विभाग द्वारा यह आपत्ति लगा दी जाती है कि व्यापारिक स्थल प्रमाणित नहीं हो रहा है, अथवा व्यापारिक स्थन का कोई मकान अथवा भवन संख्या अंकित नहीं और विभाग द्वारा पंजीयन प्रार्थना पत्र का रिजेक्ट करते हुए पंजीयन जारी नहीं किया जाता है।
पंजीयन रिजेक्शन और सरकार को न मिलने वाला टैक्स!! स्पष्ट है यह राजस्वहित में नहीं…

इस प्रकार की आपत्ति एवं पंजीयन रिजेक्शन की प्रक्रिया एवं कारणों से यह स्पष्ट होता है कि जो करदाता स्वयं को पंजीकृत होकर सरकार को टैक्स के रुप में राजस्व देना चाहता है परन्तु पंजीयन के अभाव में सरकार को टैक्स जमा नहीं कर पाता है। तब ऐसी स्थिति में वह दुकानदार अथवा व्यापरी अपंजीकृत रुप में कामधन्धा करता है और सरकार कोई टैक्स जमा ही नहीं करता। ऐसे में राजस्व की हानि सरकार को ही होती है।
समीक्षा की आवश्यकता एवं पंजीयन प्रक्रिया में क्यों बदलाव आवश्यक क्यों ??

अतः तुरन्त प्रभाव से प्रत्येक राज्यवार सरकारों के अन्तर्गत कार्यरत राज्यकर विभाग एवं केन्द्रीय कर विभाग के उच्चाधिकारियों को इस बिन्दु समीक्षा करनी चाहिए कि प्रति माह कितने पंजीयन प्रार्थना पत्र पोर्टल पर दाखिल हुए?

  1. समीक्षा होनी चाहिए कि राज्यकर मुख्यालय एवं केन्द्रीय कर मुख्यालय इस बिन्दु पर भी समीक्षा करें कि कितने पंजीयन प्रार्थना पत्रों को रिजेक्ट कर दिया गया, इसके पीछे कारण क्या था? क्या प्रार्थना पत्र में दिये गये स्थल का भौतिक सत्यापन किये जाने पर उल्लेखित स्थान नहीं मिला??
  2. यह देखने में आ रहा है कि आॅनलाईन प्रक्रिया में केन्द्रीय कर विभाग के पंजीयन प्रार्थना पत्रों को स्थानीय स्तर पर निस्तारण न करते हुए प्रदेश के अन्य जनपदों में हस्तातंरित कर दिया जाता है, जैसे अयोध्या ;फैजाबादद्ध का आगरा, महोबा का आगरा, यदि ऐसी व्यवस्था अपनायी गई है। संभवतः ऐसी प्रक्रिया सभी राज्यों में अपनायी जा रही हैं।
  3. उदाहरण ले सकते हैं कि आगरा के पंजीयन अधिकारी को अयोध्या (फैजाबाद) के व्यापारी का पंजीयन आवेदन का निपटारा एवं व्यापारिक स्थल की जांच-पड़ताल एवं सत्यापित कैसे करेगा, निःसंदेह वह पंजीयन आवदेन को रिजेक्ट ही करेगा।
  4. अतः प्रश्न उठता है कि क्या कोई विभागीय अधिकारी अन्य जनपदों में जाकर भौतिक सत्यापन कर सकता है अथवा सम्बन्धित अधिकारी अन्य जनपदों के पंजीयन आवंटित करते हुए स्वयं को जिम्मेदार बनाने की जिम्मेदारी लेना चाहेगा तो क्या ऐसी व्यवस्था राजस्वहित में नहीं कही जा सकती?
  5. सम्बन्धित अधिकारियों को जवाबदेही बनाया जाना चाहिए कि उनके द्वारा किये जाने पंजीयन रिजेक्शन, वास्तव में सही थे और इस प्रकार के पंजीयन के चलते करचोरी की संभावना थी??
  6. ऐसे बहुत से औपचारिकताओं के कारण रुकावटें आ रही हैं जोकि पंजीयन आवेदनों को रिजेक्ट करने का कारण बनते जा रहे हैं।
  7. यदि, राज्यकर एवं केन्द्रीय विभाग यदि यह पाते हैं कि लगाये गई आपत्तियां निरर्थक थी, और पंजीयन दिये जा सकते थे!! तो इसमें सुधार हेतु विचार अवश्य ही करना चाहिए।

अतः आपसे अनुरोध है कि पंजीयन प्रक्रिया एवं व्यवस्था पर पुनः विचार एवं समीक्षा करते हुए पंजीयन प्रक्रिया को सुगम एवं व्यावहारिक बनायी जानी चाहिए ताकि देश की आबादी के साक्षेप में जीएसटी के अन्तर्गत पंजीकृत व्यापारियों की संख्या में उल्लेखनीय वृ(ि हो सके और अधिक से अधिक राजस्व संग्रह बढ़ाया जा सके।

वर्तमान परिस्थिति में राजस्वहित में पंजीयन प्रक्रिया एवं पंजीयन रिजेक्टशन की संख्या की समीक्षा करना अति आवश्यक होता जा रहा है।
-पराग सिंहल, आगरा

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