आखिर क्यों है इतिहास से गायब आज़ादी की लड़ाई का यह किस्सा

*जलियांवाला बाग पाकिस्तान के इतिहास से ग़ायब।

जलियाँवाला बाग़ की इस घटना ने हिंन्दुस्तान की आज़ादी की नींव मजबूत कर दी और 1947 में, हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रूप में, आज़ादी मिल गई।
इस घटना के 28 साल और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के 14 साल बाद, 1961 में जलियाँवाला बाग़ में शहीदों के लिए एक स्मारक का निर्माण किया गया।लेकिन आज तक पश्चिम पंजाब या पूरे पाकिस्तान में सरकार की तरफ से जलियाँवाला बाग़ के शहीदों और आज़ादी के संघर्ष में शामिल स्वतंत्रतता सेनानियों को कभी याद नहीं किया गया, ना ही कोई कार्यक्रम आयोजित किया गया।
13 अप्रैल 1919 को हुए उस नरसंहार का समूचे भारत में विरोध हुआ और इस घटना ने आजादी की लड़ाई को नया रंग दिया.
जनरल डायर के आदेश पर 50 बंदूकधारियों ने बैसाखी का उत्सव मनाने जुटी निहत्थी भीड़ पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं.
इतिहासकार कहते हैं कि उस नरसंहार में एक हज़ार से अधिक निर्दोष भारतीय मारे गए और 1100 से अधिक घायल देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के साथ दर्ज है। वह वर्ष 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं।यह सभी जलियांवाला बाग में रौलट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे।
अंग्रेजों की गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं। निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए।जलियाँवाला बाग़ के अंदर जो हज़ारों लोगों का ख़ून बहा उसका रंग एक ही था।वह ख़ून हिंदू, सिख या मुसलमान नहीं था।ना ही जनरल डायर ने गोली चलाने से पहले पूछा कि कौन हिंदू है, कौन मुसलमान और कौन सिख है।इस हत्याकांड के बाद में शुरू हुआ बड़ा आंदोलन इससे पहले ब्रिटिश राज की गुलामी से आज़ादी हासिल करने के लिए आंदोलन चल रहे थे। जिनका प्रेरणास्रोत जलियाँवाला बाग़ ही था।
जो लोग अपनी धरती को आज़ाद करवाने के लिए अपने प्राणों की आहूति दे गए उनको याद भी नहीं किया जाता है।उनकी कुर्बानियों को धार्मिक, वैचारिक और राजनीतिक सवालिया निशान लगाकर इतिहास से बाहर कर दिया,हक़ीक़त यह है कि आज़ादी की लड़ाई में जो लोग शामिल थे, जो इस संघर्ष में शहीद हुए हिन्दुस्तान की आजादी और
पाकिस्तान के बनने में जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का भी एक हिस्सा है और इस देश की नींव में उन शहीदों का भी ख़ून है।जलियाँवाला बाग़ का हवाला पाकिस्तान के इतिहास में नहीं मिलता और ना ही इस हत्याकांड के बारे में स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाता है,आखिर क्यों है पाकिस्तान के इतिहास से गायब आज़ादी की लड़ाई का ये किस्सा।

सौरभ पाठक

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