5101 कुंडीय विश्वशांति वैदिक महायज्ञ का हुआ शुभारंभ

वाराणसी/चौबेपुर- प्रसिद्ध स्वर्वेद मंदिर धाम उमरहा में चल रहे विहंगम योग संत समाज का 96 वां वार्षिकोत्सव समारोह के दूसरे दिवस पर आयोजित 5101 कुंडीय विश्वशांति वैदिक महायज्ञ का शुभारंभ दिन में 1 बजे सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज एवं संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज के पावन उपस्थिति में अंकित श्वेत ध्वजा फहराकर किया गया।
महायज्ञ में आहुति देने बैठे यज्ञानुरागियों को संबोधित करते हुए संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने यज्ञ पर व्यापक प्रकाश डालते हुए कहा कि
यज्ञ भारतीय संस्कृति का प्राण और वैदिक धर्म का सार है। यज्ञ ही संसार में श्रेष्ठतम कर्म है और संसार का प्रत्येक श्रेष्ठतम कर्म यज्ञ ही है। आज आवश्यक यह है कि यज्ञ को मात्र एक भौतिक कर्मकांड ही न समझा जाय, अपितु इसको आध्यात्मिक रूप से समझकर इसका अनुष्ठान आवश्यक है। यह आंतरिक, वैचारिक, मानसिक प्रदूषण समाप्त करने का अमोघ उपाय है।
उन्होनें कहा कि यह यज्ञ श्रेष्ठ मनोकामनाओं की पूर्ति और पर्यावरण शुद्धि का भी साधन है। परन्तु यज्ञ यहीं तक सीमित नहीं है। वैदिक हवन यज्ञ हमारे भीतर त्याग की भावना का विकास करता है। मैं और मेरा से ऊपर उठकर विश्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। यज्ञ की मुख्य भावना का तात्पर्य स्वार्थ के त्याग और परोपकारमय जीवन व्यतीत करने से है।
आज हो रहे ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने का यह एक सशक्त माध्यम है। इस पर सभी पर्यावरण चिंतको का ध्यान अवश्य होना चाहिए। यज्ञ एवं योग के सामंजस्य से ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है महाराज जी ने बताया कि यज्ञ का धुँआ कोई डीजल या पेट्रोल का धुँआ नहीं है। यह आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का लाभकारी धूम्र है जिससे स्वास्थ्य लाभ एवं पर्यावरण शुद्धि दोनों का लाभ होता है।
सांयकालीन सत्र का मंचीय कार्यक्रम का शुभारंभ 5 बजे से हुआ। जिसमे आध्यात्मिक भजनों की प्रस्तुति प्रसिद्ध भजन गायकों द्वारा किया गया ।
सांय के सत्र में संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने भक्त शिष्यो को संबोधित करते हुए अपनी दिव्यवाणी में कहा कि जहां प्रेम है वहीं पर परमात्मा का वास है। जहाँ सत्य है, जहाँ श्रद्धा है, जहां समर्पण है, जहां सेवक का भाव है वहीं आत्मा का कल्याण है, वहीं परमात्मा का प्रकाश है।
भव्य एवं आकर्षक ढंग से सजी 5101 कुण्डीय यज्ञ वेदियों में वैदिक मंत्रों की ध्वनि से संपूर्ण वातावरण शुचिता को धारण करते हुए गुंजायमान हो उठा। विश्वशांति वैदिक महायज्ञ में संपूर्ण भारत वर्ष के साथ के साथ विदेशो से आए भक्तों ने एक साथ इस पावन अवसर पर भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त वैदिक मंत्रोंच्चारण के साथ यज्ञ कुंड में आहुति को प्रदान किये।
यज्ञ वेदी से निकल रहे धूम्र से आसपास के गाँवों का संपूर्ण वातावरण परिशुद्ध होने लगा। यज्ञ के पश्चात सद्गुदेव एवं संत प्रवर श्री के दर्शन के लिए अनुयायियों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। 5101 कुंडों से निकलते यज्ञीय धूम्र से सम्पूर्ण वातावरण परिशुद्ध हो दिव्य परिवेश का निर्माण हो उठा।यज्ञ के उपरांत मानव मन की शांति व आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा आगत नए जिज्ञासुओं को दिया गया। जिसमें लगभग 1700 नए जिज्ञासुओं ने ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा को ग्रहणकर अपने जीवन का आध्यात्मिक मार्ग प्रसस्त किया।
इस आयोजन में प्रतिदिन निःशुल्क योग, आयुर्वेद, पंचगव्य, होम्योपैथ आदि चिकित्सा पद्धतियों द्वारा कुशल चिकित्सकों के निर्देशन में रोगियों को चिकित्सा परामर्श भी दिया जा रहा है। जिसका लाभ आगत भक्त शिष्यो के साथ क्षेत्रीय लोग भी प्राप्त कर रहे हैं। आगत भक्तों के लिए अनवरत भण्डारा चल रहा है। भोजन व्यवस्था में दिक्कत न हो इसके लिये चार बड़ा भोजनालय में 60 काउंटर बनाये गए है ताकि सहजता से सभी को भोजन प्रसाद प्राप्त हो सके।
इस कार्यक्रम में विहंगम सेवा केंद्र का भव्य वृहत स्टाल लगा है जहाँ पर आश्रम द्वारा प्रकाशित सैकड़ो साहित्य, आध्यात्मिक मासिक पत्रिका,विशुद्ध जड़ी बूटियों से निर्मित आयुर्वेदिक औषधियाँ, गो आधारित पंचगव्य औषधियां आदि सेवा प्रकल्पों का केंद्र बना हुआ है।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी के भाई पंकज मोदी , उद्योगपति सरदार अमित पाल दिल्ली, प्रेम पाल दिल्ली, पी सुधाकर रेड्डी तेलंगाना, सतीश भाई गुजरात, सुखनन्दन सिंह सदय, आदि गणमान्य अतिथि इस महायज्ञ में उपस्थित होकर आहुति प्रदान कर महाराज श्री का आशीर्वाद प्राप्त किये।

रिपोर्टर:-महेश पाण्डेय के साथ(अजय चौबे)वाराणसी

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