स्कूल की जगह सड़कों पर घूम रहे नौनिहाल

मध्यप्रदेश/ तेन्दूखेड़ा/दमोह- भले ही सरकार ने गरीब परिवारों के बच्चों को लेकर अनेकों योजनाएं लागू की है पर छँन पर अमल करने में कोई भी अधीकारी और शिक्षा विभाग ध्यान नहीं दे रही है जिसका परिणाम ये है कि आज सरकारी स्कूलों का इस्तर पूरा गिर चुका है ना तो मीडिल स्कूलों में बच्चों को कोई सुविधा मिलती है और ना ही अच्छी शिक्षा और न ही जवाबदार शिक्षक यही कारण है की ननीहाल सड़कों पर कूड़ा कचरा ढुढते नजर आते हैं या फिर पढ़ाई की जगह होटलों सहित अन्य स्थानों पर पढ़ाई की जगह काम करते नजर आ रहे हैं आज जो शिक्षा को लेकर जो सरकारी स्कूलों का इस्तर गिर चुका है अगर आज से 30 वर्ष पहले के आंकड़े सरकारी स्कूलों के देखें तो आज के अधीकारी व शिक्षक जो खुद कहीं न कहीं सरकारी स्कूल में ही पढ़ाई कर इस मुकाम पर पहुंचे हैं तो ऐसे अधिकारी जरा सोचते क्यों नहीं।

प्राइवेट स्कूलों से मिलीभगत तो नहीं:-

बता दें की आज सरकारी स्कूलों का माइन पूरा गिर चुका है इसका कहीं न कहीं सीधा असर प्राइवेट स्कूलों का है जहां आज भी पढ़ाई के नाम पर लाखों रुपए पालकों से वसूल किए जा रहे हैं इसमें कहीं ना कहीं पूरा शिक्षा विभाग ही कसूर दार है आज प्राइवेट स्कूलों की बुक्स लेना हो तो एक निर्धारित प्रतिष्ठान में ही मौजूद जिसकी कीमत इतनी की पालकों की आधी कमाई चली जाए वहीं स्कूल ड्रेस भी लेना हो तो एक ही निर्धारित स्थान रहेगा स्कूल का जो कपड़ा देखो तो एक दम घटिया पर मूल्य देखों तो इतनी की सोचना पढ़ें फिर भी आज भी सरकारी स्कूलों पर ननिहालों की कमी और प्राईवेट में भरमार कहीं न कहीं पूरा सिस्टम बिगड़ा है जिसें न जाने कौन सुधरेगा अगर यह ही आलम रहा तो आने वाले समय में सरकारी स्कूलों का अस्तित्व खत्म हो सकता है।

क्या गरीबी में पैदा हुआ बच्चा गरीबी में ही होगा दफन:-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कि अपने अक्सर अपने भाषणों में हमेशा देश में गरीबों के उत्थान व कल्याण की बात करते हैं और उनके द्वारा समय-समय पर कई महत्वपूर्ण व जन कल्याणकारी योजनाएं भी गरीबों के लिए लागू की जाती है मगर अफसर शाही में मगरुर अधिकारी इन योजनाओं को उन तक पहुचाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं और सरकार की महत्वपूर्ण योजनाएं कागजों में ही खानापूर्ति कर उसे आगे फॉरवर्ड कर दी जाती है गरीबी में पैदा हुए यह बच्चे चिलचिलाती गर्मी जाडे की कंपकपाती ठंड व बारिश के मौसम में भीगते हुए भी अपने पेट की प्यास बुझाने व अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में इधर उधर भीख मांगने या पन्नी बीनने ते हुए नजर आते हैंबेबस और मजबूर दिखाई देते हैं यह बच्चे आखिर क्यों? इस कार्य के लिए बाध्य हो रहे हैं शासन के नुमाइंदों को यह बच्चे व उनका परिवार नहीं दिखता है कई बार देखने में आता है कि ये बच्चें इन आला अधिकारियों की गाडी के बंद कांच को खटखटाते हुए उनसे भी भीख की गुहार करते हुए दिखाई देते हैं पर यहां अधिकारी उस समय अपनी आंखें बंद कर अपने कर्तव्य से पल्ला झाड़ कर आगे बढ़ जाते हैं पेट की आग बुझाने के लिए कचरा व भगार बीनने वाले की संख्या में इजाफा हो रहा है तो कहीं ना कहीं सरकारी योजनाओं पर पानी फिर रहा है गौरतलब है कि सरकार ने हर वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने के लिए सरकारी योजनाएं शुरू की है इसके तहत जहां बच्चों को सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा के साथ एक वक्त का खाना भी दिया जाता है बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के महत्वपूर्ण अभियान सर्वे शिक्षा व स्कूल चले हम इन बच्चों को शिक्षा का पाठ पढ़ाने में कारगर साबित नहीं हो रहे हैं।

शिक्षा से वंचित हो रहे हैं बच्चे:-

प्रदेश को साक्षर बनाने के लिए करोड़ों रुपयों का बजट प्रतिवर्ष खर्च किया जा रहा है ऐसे में यह प्रदेश पूर्ण रूप से साक्षर कैसे हो पाएगा।जब बाल मजदूरी को नहीं रोका जाएगा तो बच्चे स्कूलों की ओर पहुचेंगे हि नहीं।चाहे सरकार के द्वारा मुफ्त शिक्षा देने की बातें कहीं जाती हो लेकिन आज भी हकीकत में ग्रामीण परिवेश में रहने वाले कई बच्चे शिक्षा से वंचित हैं और उन्हें अभी तक शिक्षा नसीब नहीं हो पाई है प्रदेश का साक्षर होना अति आवश्यक है लेकिन जब तक अधिकारी पूरी इमानदारी से सरकार को इस अभियान में सहयोग नहीं करेंगे तब तक यह काम भी संभव नहीं होगा।

– विशाल रजक मध्यप्रदेश

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