बरेली। बढ़ता शहरीकरण व औद्योगिक विकास हरियाली को लील रहा है। बहुमंजिला इमारतें, हाईवे व ओवरब्रिज बनाने, बिजली लाइन, आवासीय कालोनी आदि के लिए पेड़ों की खूब बलि चढ़ाई जा रही है। उत्तर प्रदेश वृक्ष अधिनियम के तहत प्रतिबंधित श्रेणी के 10 साल से अधिक पुराने व सरकारी विकास मे बाधा डालने वाले सूखे, रोग ग्रस्त या जानमाल के लिए बाधक होने पर पेड़ों को काटा जा सकता है। मगर हरे-भरे पेड़ भी खूब काटे जा रहे है। पिछले दिनों विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस पर जहां एक तरफ लोग पौधारोपण कर रहे थे, वहीं शहर से लेकर देहात तक वन माफिया पेड़ों पर आरी चला रहे थे। स्थानीय लोगों ने अधिकारियों को सूचना भी दी लेकिन हुआ कुछ नही। यही वजह है कि हर साल लाखों पौधे रोपने के बाद भी हरियाली नहीं हो पाती है। बरेली विकास प्राधिकरण की कार्यशैली को ही देखा जाए तो वह खुद ही हरियाली का विनाश प्राधिकरण बनकर रह गया है। नियोजित ढंग से भवन निर्माण और शहर के विकास की जिम्मेदारी लिए बरेली विकास प्राधिकरण यानी बीडीए की अनदेखी भी हरियाली के नुकसान के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। किसी भी भवन निर्माण स्वीकृति के लिए आवश्यक रूप में छोड़ी जाने वाली हरियाली को भी निर्माणकर्ता निगल कर उस पर कंक्रीट का निर्माण करा लेते हैं। मगर बीडीए के अफसर अपनी जेब भरकर ऐसे लोगों को छूट दे देते है। बरेली विकास प्राधिकरण के अफसर गौर करते तो हमारा शहर भी कम हरा भरा नहीं होता। क्योंकि नियमानुसार निर्माण से सम्बंधित हर प्रोजेक्ट मे 15 फीसदी हरियाली छोडने का नियम है। अगर कोई कॉलोनी डवलप की जाती है तो बिल्डर को 15 फीसदी ग्रीनरी छोडना जरूरी होता है। इसी तरह मकान बनवाने के लिए भी 15 फीसदी जमीन हरियाली को छोडने का प्रावधान है। मगर ये हरियाली बीडीए के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती आ रही है।।
बरेली से कपिल यादव