रमजान 2020: ‘मुश्किलों से कह दो, मेरा खुदा बड़ा है’, इबादत में छोटा लगने लगा दिन

फतेहगंज पश्चिमी, बरेली। मुकद्दस रमजान में रोजेदार पूरी शिद्दत के साथ इबादत कर रहे हैं। मुस्लिम परिवारों की दिनचर्या बदल गई है। अब सुबह सहरी के साथ दिन की शुरुआत होती है और रात में तरावीह के बाद ही रोजेदार कुछ घंटे आराम कर रहे हैं। सहरी और इफ्तार में दस्तरख्वान के लिए बनाए जाने वाले पकवानों का सामान जुटाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। पहले जहां लॉकडाउन में दिन काटे नहीं कटता था अब इबादत में यह कब गुजर जाता है पता ही नहीं चलता।कस्बा फतेहगंज पश्चिमी के मोहल्ला अंसारी के रहने वाले एडवोकेट इमरान अंसारी बताते हैं कि इन मुश्किल हालात में रोजा रखने के बाद सबसे बड़ा काम सहरी व इफ्तार का सामान जुटाना है। सेवइया और फैनी, खजला इस बार नहीं मिल पा रहे हैं। वह कोरोना फाइटर्स के रूप में भी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। लोगों को सामान दिलवा रहे हैं, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित करवा रहे हैं। इन सब कामों के बीच इबादत के लिए भी वक्त निकालना है। ऐसे में इस बार के रमजान यादगार होने वाले हैं। कस्बे के मोहल्ला अंसारी के रहने वाले हाजी मोहम्मद जमीर बताते है कि इस दफा मस्जिदों में नहीं जा पा रहे हैं। ऐसे में घर में ही तरावीह पढ़ते हैं। कोशिश करते हैं कि अल्लाहतआला की इबादत में हमसे कोई गलती नहीं हो जाए। सुबह सहरी के बाद फज्र की नमाज, शाम को इफ्तार के बाद नमाज और फिर तरावीह। इस तरह दिन अब छोटा लग रहा है। इससे पहले लॉकडाउन में दिन बड़ा लग रहा था। अब दिन का पता नहीं चल पा रहा है। कस्बे के ही मोहल्ला अंसारी के रहने वाले शरीफ अहमद बताते है कि रमजान में रोजेदारों को अपने सब्र का इम्तिहान देना पड़ता है। अब बाजार में खजूर आ गया है। सेवई, फैनी, खजला जैसी चीजें नहीं हैं तो ब्रेड, टोस्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं। पूरा दिन अब इबादत और घर के काम में कब गुजर जा रहा है, पता नहीं चल रहा है। थोड़ी बहुत मुश्किलें हैं, सामान मिलने में कठिनाई आती हैं, लेकिन यह भी जिंदगी का हिस्सा है। सबक मिलते हैं। कस्बे के मोहल्ला अंसारी के रहने वाले सरदार अंसारी बताते हैं कि कोरोना संक्रमण की वजह से सभी घरों में रहकर ही तरावीह पढ़ रहे है। पहली बार परिवार के सभी सदस्य रोजा इफ्तार और सहरी एक ही समय मे ही हो रही है। खजूर न मिलने पर शिकंजी से काम चलाया जा रहा है।।

बरेली से कपिल यादव

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