नौरादेही अभयारण्य :2012-13 में टाइगर को बसाने के लिए गांवों का विस्थापन हुआ था शुरू

*नौरादेही से बाहर करने हैं 69 गांव 6 साल में सिर्फ 10 हुए विस्थापित
*अभयारण्य में तीन टाइगर मौजूद है बाकी है 59 गांव का विस्थापन
मध्यप्रदेश/ तेन्दूखेड़ा – नौरादेही अभयारण्य में टाइगर प्रोजेक्ट के तहत वर्ष 2012-13 में गांवों का विस्थापन शुरू हुआ लेकिन विस्थापन की गति इतनी धीमी है कि पिछले 6 सालों में अभयारण्य में महज 10 गांव ही विस्थापित हो पाए हैं नौरादेही में बाघों की सुरक्षा व उन्हें प्राकृतिक रहवास देने के लिए सभी गांवों का विस्थापन किया जाना है। अभयारण्य में कुल 69 गांव हैं इनमें से बर्फानी नौरादेही छोटा पीपला बडा पीपला सरा रमपुरा और बिजनी सहित10 विस्थापित हो चुके हैं। इन 10 गांवों के विस्थापन की जो गति रही है अगर इस गति से बाकी का भी विस्थापन किया गया तो 69 गांवों के विस्थापन में कई वर्ष का समय लग जाएगा जो टाइगर प्रोजेक्ट के लिए ठीक नहीं है अब अभयारण्य क्षेत्र में तीन बाघ मौजूद हैं यहां इंसान और बाघ दोनों का रहना दोनों के लिए खतरनाक हैं एक और बाघों की सुरक्षा पुख्ता नहीं है तो वहीं दूसरी ओर गांवों के लोगों को भी बाघ कभी भी अपना शिकार बना सकता है इसके लिए अभयारण्य से शेष गांवों का विस्थापन तेजी से होना जरुरी है
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अभयारण्य में तीन टाइगर की चहलकदमी
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नौरादेही में टाइगर प्रोजेक्ट के तहत अब तक दो बाघों को शिफ्ट किया जा चुका है इसी वर्ष अप्रैल में कान्हा टाइगर रिजर्व से बाघिन राधा और फिर बांधवगढ़ नेशनल पार्क से बांध किशन को नौरादेही में बसाया गया। इन दो बाघ के आने के बाद पन्ना टाइगर रिजर्व से एक बांघ अपने आप जंगल के रास्ते नौरादेही अभयारण्य पहुंच गया है इस तरह नौरादेही में अब तक तीन टाइगर पहुंच चुके हैं एक बाघिन को और शिफ्ट करने की तैयारी अभयारण्य के अधिकारी कर रहे हैं बारिश बाद उसे भी शिफ्ट कर दिया जाएगा अभयारण्य में इंसानों के बसे होने के कारण बाघों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा होता है।
विस्थापन में इन चार विभागों की भूमिका:-
नौरादेही अभयारण्य से गांवों के विस्थापन में चार विभागों की अहम भूमिका होती है इसमें सबसे मुख्य वन विभाग और जिला प्रशासन है क्योंकि वन विभाग जिन ग्रामीणों की सूची तैयार करता है उनके विस्थापन की स्वीकृत कलेक्टर से ही मिलती है इसके बाद स्वास्थ्य विभाग और आदिमजाति कल्याण विभाग का भी अहम रोल होता हैं जो 18 वर्ष के होने का दावा करते हैं स्वास्थ्य विभाग उनका स्वास्थ्य परीक्षण करता है आदिमजाति कल्याण विभाग गांवों में रहने वाले आदिवासियों को विस्थापन के लाभ बताकर उन्हें विस्थापित होने के लिए तैयार करता है सबसे ज्यादा देरी स्वास्थ्य विभाग और आदिमजाति कल्याण विभाग के काम में ही होती हैं।
विस्थापन में इन वजहों से होती हैं देरी:-
(1) राजस्व विभाग से कभी -कभी विस्थापन के लिए पैसा मिलने में समय लगता है समय पर राशि लोगों के खातों में नहीं पहुंचती हैं।

(2) आदिवासी व ग्रामीणों को समझाने में समय लगता है विस्थापन के लिए तैयार नहीं होते।

(3) अप्रैल मई के बाद बारिश के चार माह विस्थापन की प्रकिया बंद रहती है

(4)बारिश व बोनी हो जाने की वजह से ग्रामीण विस्थापन के लिए फसल कटने तक इंतजार करने के लिए कहते हैं

(5)जो युवा स्वयं की उम्र18 वर्ष से अधिक होने का दावा कर अलग यूनिट होने की बात कहते हैं उनके स्वास्थ्य परीक्षण में समय लग जाता है अधिकांश गावों यही स्थिति हैं।
एक बार शिकारी कर चुके हैं प्रवेश:-
विस्थापितों की आड़ में एक बार शिकारी भी नौरादेही अभयारण्य में प्रवेश कर चुके हैं विस्थापित किए गए गांवों के लोग कुछ शिकायतों का निराकरण न होने की वजह से कुछ दिन पहले नौरादेही में वापस आकर बसने की कोशिश कर रहे थे इन्हीं की आड़ में कुछ शिकारी भी अभयारण्य में सक्रिय हो गए थे जिनका खुलासा मीडिया ने किया था इसके बाद वन विभाग की टीम अलर्ट हुई और एक शिकारी हिरण के सींग सहित गिरफ्त में आया था।
इनका कहना है कि विस्थापन में बारिश बाद आएगी तेजी:-
विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है दो गांव और जल्द ही विस्थापित होने वाले हैं गांवों को विस्थापित करने में काफी प्रयास करने पड़ते हैं लोगों को समझाना पड़ता है उनकी शिकायतें सुनना पड़ती है और उनका निराकरण करना पड़ता है तब कहीं जाकर गांव का विस्थापन हो पाता है बारिश के बाद विस्थापन का काम और तेजी से शुरू किया जाएगा बाघों की सुरक्षा को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं है वन विभाग की टीमें पूरी तरह से बाघों की सुरक्षा में लगी हुई है जिससे वहां कोई अनहोने न हो
( क्षितिज कुमार प्रभारी डीएफओ नौरादेही अभयारण्य)

– विशाल रजक, मध्यप्रदेश

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