जानकारी: बाँज के फल निकवाल के बारे में जाने

उत्तराखंड : जनपद पाैडी गढ़वाल में बाँज या बलूत या शाहबलूत एक तरह का वृक्ष है जिसे अंग्रेज़ी में ‘ओक’ (Oak) कहा जाता है। इसकी लगभग ४०० प्रजातियाँ हैं।

बाँज (बलूत)
Oak
बाँज का वृक्ष
बाँज का वृक्ष
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत (रेगन्म): पादप
(अश्रेणिकृत डिवीज़न) पुष्पी पादप (Angiosperms)
(अश्रेणिकृत) युडिकॉट (Eudicots)
(अश्रेणिकृत) रोज़िड (Rosids)
गण (ऑर्डर): फ़ैगालेस (Fagales)
कुल (फैमिली): फ़ैगेसिए (Fagaceae)
वंश (जीनस): क्वेर्कस (Quercus)
लीनियस
जातियाँ
कई जातियाँ

बाँज का फल (चेस्टनट)
परिचय संपादित करें
बाँज (Oak) फागेसिई (Fagaceae) कुल के क्वेर्कस (quercus) गण का एक पेड़ है। इसकी लगभग ४०० किस्में ज्ञात हैं, जिनमें कुछ की लकड़ियाँ बड़ी मजबूत और रेशे सघन होते हैं। इस कारण ऐसी लकड़ियाँ निर्माणकाष्ठ के रूप में बहुत अधिक व्यवहृत होती है। यह पेड़ अनेक देशों, पूरब में मलयेशिया और चीन से लेकर हिमालय और काकेशस क्षेत्र होते हुए, सिसिली से लेकर उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र तक में पाया जाता है। उत्तरी अमरीका में भी यह उपजता है। शोभा के लिए इसके पेड़ उद्यानों और सड़कों पर लगाए जाते हैं। पेड़ की पहचान इसके पत्तों और फलों से होती है। इसके पत्ते खाँचेदार होते हैं। इसका फल सामान्यत: गोलाकार और ऊपर की ओर नुकीला होता है। नीचे प्याले के ऐसे अनेक सहचक्र (involucral) शल्क (scale) लगे रहते हैं। इनके फल को बाँज फल (acorn) कहते हैं। कुछ बाँज फल मीठे होते हैं और कुछ कड़ुए। कुछ बाँज फल खाए जाते हैं और कुछ से टैनिन प्राप्त होता है, जो चमड़ा पकाने में काम आता है। बाँज के फल सूअरों को भी खिलाए जाते हैं। खाने के लिए फलों को उबालकर, सुखाकर और आटा बनाकर केक बनाते हैं। उबालने से टैनिन निकल जाता है।

बाँज का पेड़ धीरे-धीरे बढ़ता है। प्राय: २० वर्ष पुराना होने पर उसमें फल लगते हैं। पेड़ दो से तीन सौ वर्षों तक जीवित रहता है। इसकी ऊँचाई साधारणतया १०० से १५० फुट और घेरा ३ से ८ फुट तक होता है। कुछ बाँज सफेद होते हैं, कुछ लाल या काले। कुछ बाँजों से कॉर्क भी प्राप्त होता है। सफेद और लाल दोनों बाँज अमरीका में उपजते हैं। भारत के हिमालय में केवल लाल या कृष्ण बाँज उपजता है। बाँज का काष्ठ ९०० वर्षों तक अच्छी स्थिति में पाया गया है। काष्ठ सुंदर होता है और उससे बने फर्नीचर उत्कृष्ट कोटि के होते हैं। एक समय जहाजों के बनाने में बाँज का काष्ठ ही प्रयुक्त होता था। अब तो उसके स्थान पर इस्पात प्रयुक्त होने लगा है।

-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट

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