चेलों ने बढ़ा दी राणा की मुश्किलें: अब रुड़की मेयर के लिए अपना प्रत्याशी ढूंढ रहा रावत खेमा

रुड़की/हरिद्वार- रुड़की निवर्तमान मेयर यशपाल राणा के चेलों ने हरीश रावत को समझने में भूल कर दी। खुद राणा भूल गए कि रावत ने उन्हें निर्दलीय लड़ाकर भी मेयर बना दिया था, जबकि तत्कालीन कांग्रेस प्रत्याशी राम अग्रवाल को विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री रहते हुए, यशपाल आर्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए, प्रदीप बत्रा विधायक रहते हुए और संजय पालीवाल, राम अग्रवाल के चुनाव नियंत्रक रहते, चुनाव नहीं जितवा पाए थे। अब नतीजे सामने आने लगे हैं। रावत खेमे ने मेयर पद के लिए चेहरा तलाश करना शुरू कर दिया है। ज़ाहिर है कि रावत अपनी तलाश को अगर कांग्रेस टिकट दिला पाए तो ठीक वर्ना उसे निर्दलीय चुनाव लड़ाएंगे। यानि राणा की मुश्किलें बढ़ना तय हैं। मज़ेदार बात यह मानी जा रही है कि पंडित मनोहर लाल शर्मा का घराना भी इस बार रावत की पसंद में शामिल है।

गौरतलब है कि मध्य जुलाई तक हरीश रावत को कांग्रेसी राजनीति का बीता अध्याय माना जा रहा था। यही कारण है कि उन्हें 12 जुलाई को रुड़की में तब भारी दुर्दशा का शिकार होना पड़ा था जब जनाक्रोश रैली के मंच पर उनके समर्थकों के साथ धक्का-मुक्की हुयी थी। मंच पर खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने भी उनकी भरपूर उपेक्षा की थी। नतीजे के तौर पर रावत को मंच छोड़कर जाना पड़ा था। इस घटना की जो खबरें छपी थी उनकी स्याही भी सूखने से पहले कांग्रेस हाई कमान ने हरीश रावत को महासचिव पद पर प्रोन्नत कर दिया था। ज़ाहिर है कि इसके बाद से प्रीतम सिंह खेमा बचाव की मुद्रा में है। यह ठीक है कि कांग्रेसियों ने रावत के सामने समर्पण शुरू कर दिया है और यदि रावत, प्रीतम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से विदा कराने में कामयाब रहे तो रहे-सहे भी कर देंगे। समझने वाली बात यह है कि राणा और उनके समर्थकों का समर्पण रावत खेमा स्वीकार करता नहीं दीखता। मुझे जो खास जानकारी मिली है उसके मुताबिक, राणा के आसपास दिखने वाले चेहरों की करतूत को रावत खेमा यशपाल राणा की ज़िम्मेदारी मान रहा है। माना जा रहा है कि इस गुट ने ही 12 जुलाई को रावत के लिए मुश्किल पैदा की थी। सिर्फ इतना ही नहीं। उन्होंने युवा कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में न केवल रावत के खिलाफ जाकर (कभी रावत के निकट रहे रणजीत सिंह रावत के पुत्र) विक्रमजीत सिंह रावत को चुनाव लड़ाया, बल्कि विक्रमजीत सिंह रावत की जीत को सीधे-सीधे हरीश रावत के प्रभाव का अंत बताया था। परवेज़ मुंडियाकी, जिन्हें मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत ने राज्यमंत्री बनाकर मुंडियाकी गांव में कांग्रेस की कब्र खोदी थी, और मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत के दांये नज़र आने वाले जीतेंद्र पंवार ने, इस संवाददाता के सामने भी, अगले लोकसभा चुनाव में विक्रमजीत सिंह रावत को ही हरिद्वार सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी बनवा कर चुनाव लड़ाने की घोषणा की थी। यह सब रावत खेमे की जानकारी में है। इसी कारण उन्होंने मेयर पद के लिए चेहरे की तलाश शुरू कर दी है। धयान रहे कि राणा ने अभी कांग्रेसी मेयर के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया है और उन्हें ही पार्टी का भावी प्रत्याशी माना जा रहा है। पेच यह है कि जो अन्य चेहरे अपने लिए कांग्रेस टिकट की उम्मीद लगाए बैठे हैं, रावत खेमा उन्हें भी खातिर में नहीं ला रहा है। अलबत्ता पंडित मनोहर लाल शर्मा के घराने पर रावत की नज़र इस बार टिकती दिख रही है। मगर रावत के एक खास के मुताबिक यह घराना अब भी रावत के लिए एक विकल्प है, एकमात्र विकल्प नहीं।

-रुड़की से इरफान अहमद की रिपोर्ट

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