गाँव में आजादी के 70 वर्ष बाद पहुंची बिजली: त्यौहार के उत्सव जैसा था गांव का माहौल

उत्तराखंड/थराली/चमोली- 21वीं सदी के इस दौर में आधुनिकीकरण ने जहा नये आयाम स्थापित किये हैं, 4जी, 5जी की स्पीड से भी तेजी से महानगरो का विकास हो रहा है। चंद्रामा जैसे ग्रहो पर जीवन की कल्पनाओं को हकिकत के पंख लगने लगे हैं तो वही पहाड़ों के कई गाँव आज भी बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। ओर आप आन्दाजा लगा सकते हैं की जिस गांव में आजादी के 70 बरस बाद बिजली की रोशनी आए तो वहां यकीनन दीपावली जैसा उत्सव तो होगा ही। चमोली जनपद का एक ऐसा ही गांव इन दिनों बिजली पहुंचने से जगमग हो उठा है।

उत्तराखंड को भले ही ऊर्जा प्रदेश के नाम से जाना जाता हो, लेकिन प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों की कहानी ऊर्जा प्रदेश के नारों को झुठला रही है। हालाँकि सरकार का जो घर घर बिजली पहुंचाने का संकल्प था, वह अब धीरे-धीरे पूरा होता नजर आ रहा है।चमोली जनपद के दूरस्थ क्षेत्र कूलिंग गांव के ग्रामीण अपने पैतृक गांव देदीना में आजादी के 70 साल बाद भी बिजली न होने से अंधेरे में जीवन यापन कर रही थे, लेकिन ग्रामीणों के निरंतर प्रयास के चलते सरकार को आखिरकार ग्रामीणों की मांग पूरी करनी पड़ी और कूलिंग गांव के देदीना नामक तोक में विद्युत आपूर्ति संचालित होने से ग्रामीणों के चेहरे खिल उठे। गांव में बिजली की रोशनी की चमक क्या आई की लोग झूमने लगे और दीपावली जैसा उत्सव यहां मनाया जाने लगा। लोग इस बात से संतुष्ट थे कि देर से ही सही चलो बिजली तो आई गांव में और स्थानीय लोगों ने विद्युत विभाग एवं सरकार का शुक्रिया अदा किया।

2013 की आपदा से कूलिंग गाँव आपदा की मार झेल रहा था। यहां के लोगों कि जो पैतृक भूमि देदीना नामक तोक पर है. सरकार के द्वारा इनको वहां पर विस्थापन किया गया है. परंतु बिजली न होने से ग्रामीणों को अंधेरे में जीवन यापन करना पड़ रहा था। अब गांव में घर-घर बिजली चमचमाती नजर आ रही है और लोगों में खुशी देखने को मिल रही है।

भले ही सरकार ने इस तोक को विद्युत संयोजन से जोड़ दिया हूं लेकिन यह सरकार के मुंह पर करारा तमाचा भी है। उत्तराखंड राज्य गठन के दो दशक बीत गए हैं और इन दो दशकों में सरकारों ने अनेक वादे किए, दावे किए, लेकिन पहाड़ के विकास को लेकर सरकार कितना संजीदा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है 20 सालों में अभी तक पहाड़ के कई गांव बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। सरकारों की इसी नाकामी की वजह से आज पहाड़ पहाड़ जैसा दर्द और समस्याओं को झेलने के लिए विवश है, और पलायन की रफ्तार निरंतर जारी है।

– संदीप वर्तवाल के साथ इन्द्रजीत सिंह असवाल

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