उत्तराखंड! साेलह हजार हैंड पम्प बन गये मात्र शाेपीस

उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- उत्तराखंड साेलह हजार हैंड पम्प बन गये मात्र शाेपीस एक बिचित्र घटना के साथ मौजूद हूँ फिर आज। बिगत 15 साल में उत्तराखण्ड के 15769 गांवों में करीब 16 हजार हैंड पम्प लगे थे। मगर आज आलम ये है कि 95% सूखे है या उन में पानी पीने योग्य नही है। इस के वजह कुछ भी हो सकते है रखरखाव या सर्विसिंग प्रोजेक्ट मैनेजमेंट दिक्कत हम को ठीक से नही पता। मगर नुकसान राजस्व का है संकट में प्रदेश है। आज इस समय बिकट जल समस्या से जूझ रहा है प्रेदेश का पर्वतीय क्षेत्र।

पलायन का मुख्य कारण जल संकट भी है मेरे क्षेत्र रिखणीखाल में वर्तमान समय में 18 गाँव में पीने योग्य पानी नही है। मैने पिछले 3 दिन में 43 हैंड पम्पों का सर्वे लिया पर कोई भी गुणवत्ता में खरा नही उतरा है।

अभी मैं किसी की आलोचना नही कर रहा हूँ मगर ठीक से सर्वे नही हुआ है धरती के अंदर जलस्तर कितना है व जलस्रोत के बारे में उच्च तकनीक का प्रयोग नही किया गया।

एक और मुख्य कारण और है कि जंगलों में आग लगना। मैने रिखणीखाल से दुगड्डा का दौरा किया तो मैने देखा हर जगह जैसे-: अगड़ी, ढाबखाल, डाबरी,घोटला, चुंडाई,बेबड़ी,सिसलड़ी, डेरा खाल,कालाढूंगी,मठाली, संदणा, बडू गांव सारे क्षेत्र में जंगलों में आग लगी हुई थी।

जल्दी घास उगने की लालसा से लोग जंगलों में आग लगा देते है व हजारों करोड़ की वन सम्पदा जल कर राख हो जाती है। दुर्लभ जड़ी बूटी व वन्य जीवी खत्म हो रहे है। जिस प्रदेश के लोग मवेशियों का पालन नही कर रहे है वो घास किस लिए उगाना चाहते है समझ नही आता। निम्न गोण सोच के साथ जी रहे लोगों को वन विभाग प्रशिक्षण दें व जागरूक करें कि इस छोटी सोच के वजह से पर्यावरण को हो रहे नुकसान का आंकल लगाना भी असम्भव है।

आज ग्लोबल वार्मिंग के संकट से पृथ्वी पर हाहाकार मचा है। वहीं हम लोग कुदरत को नुक़सान पहुंचा रहे है। सिर्फ अपनी छोटी सोच की वजह से।

जहां इस साल 45% बारिष कम हुई वही बुरांस पर फूल बंसत से पहले ही आना व फरवरी महीने में ही जंगलों के जलना बहुत बड़े खतरे की घण्टी है। अक्सर मार्च के आखिर ये बुरांस फूलता था मगर इस बार हम ने देखा कि 1 महीने पहले ही बुरांस के फूल झड़ने सुरु हो चुके थे यह सब जलवायु में अचानक आये परिवर्तन की वजह से है।

हम सब को जल संकल्प लेना होगा कि जल संकट न होने दें देश को 48% ऑक्सीजन देने वला उत्तराखण्ड आज धुवें की चादर में लिपटा हुआ है। सांस लेना दुस्वार हो रखा है। चीड़ के जंगल धूं धूं कर जल रहे है वन बिभाग सोया है व स्थानीय लोग तमाशबीन है।

साभार देवेश आदमी
इंद्र जीत सिंह असवाल

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