बरेली। कोरोना की दूसरी लहर कहर बनकर आई है। कोविड के प्रतिदिन दर्जनों के हिसाब से जिंदगीयों को निगल रहा है। मगर श्मशानों पर जिस तरह से रोजाना दर्जनों के हिसाब से लाशे पहुंच रही है। उसे देखकर लगता है जैसे शहर मे मौतों का सैलाब आया हुआ है। इन मौतों का कारण अकेला कोरोना ही नहीं है। ठीक ठाक लोगों की भी अचानक मौते हो रही है। जिससे हर कोई दहशत में है। अचानक होने वाली इन मौतों का कारण समझ से परे है। इन होने वाली मौतो पर कोई चीत्कार नहीं, शव यात्राओं में भीड़ नही है। कुछ लोग ही शव को लेकर श्मशान चल देते है। मृतक के परिजनों को बस इतनी चिता कि किसी भी तरह शव का अंतिम संस्कार हो जाये। मृतक का कोई अपना जिले से बाहर रहता है तो उसके आने का भी इंतजार नहीं किया जाता। डर रहता है कि शव ले जाने मे देरी होने पर अंत्येष्टि के लिए जगह ही नहीं मिल पाएगी। इन हालातों में तमाम लोग अपने सगे संबंधियों व प्रियजनों का चेहरा तक नहीं देख पा रहे है। मौतों के इस सैलाब के चलते श्मशानों पर अंत्येष्टि के लिए मारामारी मची रहती है। सुबह सात बजे से संजय नगर श्मसान भूमि पर लाशे पहुंचनी शुरू हो जाती है। मगर वहां अंत्येष्टि के लिए जगह खाली नही रहती है। बीते दिन मंगलवार को चबूतरों ही नहीं जमीन पर जली चिताओं की भी आग ठंडी नहीं हुई थी। ऐसे में राख हटने तक इंतजार करना होता है। मौत का ऐसा सैलाब आया है कि लोग अपनों का अंतिम संस्कार भी विधि विधान से नही कर पा रहे है। चिता की आग तीन दिन मे ठंडी होने के बाद उसमें से अस्थियां बीनकर राख को गंगा मे विसर्जित करने का संस्कार भी मुमकिन नहीं रहा। लाशों की संख्या को देखते हुए ट्रस्ट के लोगों का साफ कहना है कि चिता में से अगले दिन की सुबह सात बजे तक अस्थियां बीन ली जाएं। ऐसे में लोगों को अस्थियां चुनने के लिए पानी डालकर चिताओं की आग को ठंडा करना पड़ रहा है। संजय नगर श्मशान भूमि पर दोपहर तक इतने शव पहुंच जाते हैं कि उन्हीं की अंत्येष्टि के लिए जगह पूरी करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए श्मशान भूमि पर दोपहर तीन बजे ताला लगा दिया जाता है। इसके बाद किसी भी शव को प्रवेश नहीं मिलता है। संजय नगर श्मशान भूमि की ट्रस्ट के लोग मृतकों के परिजनों के प्रति सहानुभूति पूर्ण रवैया बरत रहे हैं। किसी तरह का कोई चार्ज नहीं बढ़ाया है और न ही कोई एडवांस पैसा लिया जा रहा। ट्रस्ट के लोग अपने ही आदमियों से चिता सजवा देते हैं क्योंकि इन दिनों शवों के साथ गिनती के लोग ही पहुंच रहे हैं। वहीं, इसी प्रांगण में दलाल भी सक्रिय हो गए हैं, जो मोटी रकम में कर्म कांड कराने का ठेका लेने को ग्राहक तलाशते रहते हैं। मुंडन से लेकर दसवां संस्कार तक घाट जैसे कर्मकांड के लिए नाई के छह हजार, पंडित के दस हज़ार। मुखाग्नि देने से पहले मुंडन कराने पर वसूले जा रहे ढाई हजार रुपये तक।।
बरेली से कपिल यादव