खुदरा व्यापारियों के कल्याण और संगठित बनाते हुए सशक्त बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ‘खुदरा व्यापार नीति’ की आवश्यकता है

भारत देश की अर्थव्यवस्था भले ही विश्व में आर्थिक शक्ति के रुप में अपना स्थान बनाये रखने की ओर अग्रसर है, उधर देश में तेजी से एफ.डी.आई. भारत के व्यापारिक क्षेत्र को मजबूत बना रहा है, लेकिन में भारत में व्यापार करने के पारम्परिक तरीकों को नजरअंदाज तो नहीं जा सकता। क्योंकि सदियों से चल रहा ‘खुदरा बाजार’ भारत की अर्थव्यवस्था में गहरी पैठ बनाये रखने के साथ देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में बड़ी भूमिका निभाता आ रहा है।

  1. यदि भारत सरकार, भारतीय खुदरा बाजार का अध्ययन करवाती है तो अध्ययन में स्पष्टरुप से यही रिपोर्ट आएगी कि भारत में अगले 10 सालों में कितनी भी एफ.डी.आई. आ जाए फिर भी भारत के खुदरा बाजार के मुकाबले कोई विशेष स्थान प्राप्त नहीं कर सकता, हां हस्तक्षेप तो कर सकेगा।
  2. यहां पर हम आपके समक्ष खुदरा बाजार में बारे में अवगत करवाना चाहते हैं, कि भारत में खुदरा बाजार केवल नगर स्तर या महानगर स्तर पर ही नहीं बल्कि छोटे-छोटे ग्रामीण अंचल में भी जनता की आवश्यकता की पूर्ति करने में योगदान कर रहे हैं। जहां पर एफ.डी.आई. से चलने वाले ई-काॅमर्स की पहुंच नहीं सकते।
  3. यदि हम बात करें वर्ष 2020 एवं वर्ष 2021 के लाॅकडाउन की, हम यह दावे के साथ कह सकते हैं वर्ष 2020 के सम्पूर्ण लाॅकडाउन में ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्र के साथ छोटे, मध्यम एवं नगरों के साथ महानगरों में घरों की रोजमर्रा के वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित नहीं हो पायी थी, क्योंकि भारत में फैला खुदरा बाजार में भूखमरी की स्थिति पैदा नहीं होने दी।
  4. क्योंकि ई-काॅमर्स सारा माल नगद (COD) अथवा एडवांस भुगतान पर करते हैं, जबकि ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्र के साथ छोटे, मध्यम एवं नगरों के साथ महानगरों में घरों की रोजमर्रा के वस्तुओं की आपूर्ति उधार देकर परिवारों को भूखें माने से बचाया।
  5. हमारे अध्ययन के अनुसार वर्तमान में भारत में लगभग 50 लाख लोग (वैसे यह संख्या 5 करोड़ तक बैठ सकती है) खुदरा व्यापार में सलंग्न होकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में योगदान दे रहे हैं, यदि आप यह प्रश्न करें कि माल एवं सेवाकर एक्ट में अन्तर्गत कुल (लगभग) 1.38 करोड़ व्यापारी ही पंजीकृत हैं तो यह सभी व्यापारी जीएसटी में पंजीकृत नहीं है तो इतनी संख्या कैसे हो सकती है, तो इसका उत्तर यही है कि चाहे कितने भी प्रयास हो जाएं लेकिन प्रत्येक खुदरा व्यापारी तक सरकार को पहंुचने में अभी लम्बा समय लगेगा।
  6. लेकिन हम कह सकते हैं यह अपंजीकृत खुदरा व्यापारी अप्रत्यक्षरुप से माल एवं सेवाकर एक्ट के मजबूत भागीदार है, क्योंकि यह अपना माल महानगर एवं नगरों के थोक के पंजीकृत व्यापारियों से क्रय करते हैं, और B2C के माध्यम से लगने वाला जी.एस.टी. का भुगतान करते हैं, स्पष्ट है कि इनके पंजीकृत न होने के कारण सरकार को आई.टी.सी. क्लेम नहीं करते अतः सरकार को आई.टी.सी. का भुगतान नहीं करना पड़ता।
  7. यह भी उल्लेखनीय है कि इन खुदरा व्यापारियों को माल को उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न प्रकार की ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्र में उपलब्ध करानी होती है, इस क्रम में ट्रकों की खरीद, टायर एवं कलपूर्जो के खरीद व मरम्मत के साथ भाड़े पर जीएसटी के भुगतान से सरकार अप्रत्यक्ष कर जीएसटी प्राप्त होता ही हैै, जिस सरकार को कोई आई.टी.सी. भी नहीं देना होता है। तोकि सरकार की कुल बचत ही कहा जा सकता है।
  8. वर्तमान में भारत में लगभग 1 करोड़ लोग खुदरा व्यापार में सलंग्न होने के कारण यह खुदरा व्यापारी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से अपने कर्मचारी एवं विभिन्न लेबर्स, जो इनके व्यापार से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े हुए हैं, के परिवारों को रोजगार देने के साथ ही इनका लालन-पालन कर रहे हैं। इन सबकी गणना करने में इन परिवारों की संख्या 6 करोड़ से अधिक बैठेगी। साथ ही लाखों लोगों को रोजगार भी प्राप्त हो रहा है, और इन कर्मचारी एवं विभिन्न मजदूरों के परिवार की जीविका भी चलती है।
    देश के खुदरा व्यापार को प्रोत्साहित करने हेतु ‘खुदरा व्यापार नीति’ की आवश्यकता है, अतिशीघ्र बनानी होगीः
    1947 की आजादी के बाद देश के इस खुदरा व्यापार को मजबूती देने के साथ, संगठित क्षेत्र के रुप में विकसित करने और स्थापित करने के लिए अब आवश्यक हो गया है कि सरकार को इस सुदुर क्षेत्र की सुदृढ़ अर्थव्यवस्था को बचाने के साथ मजबूती देने के लिए अतिशीघ्र ही ‘खुदरा व्यापार नीति’ को बनाना बनाकर इस क्षेत्र को संगठित क्षेत्र के रुप में विकास करना होगा, जिससे देश के सामने कोई भी विषम समस्या आने के बावजूद भी सरकार पर अतिरिक्त भार न पड़े लेकिन टैक्स के रुप में राजस्व प्राप्त होता रहे और सरकार उस समस्या को निपटाने के लिए बिना किसी दवाब के काम कर सके।

पराग सिंहल

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