बरेली। कोरोना संकट के बीच शहर के कई बड़े चिकित्सकों ने अपने निजी क्लीनिक बंद कर दिए हैं। इस कारण सामान्य बीमारी से जूझ रहे मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। ऐसे प्रतिकूल परिस्थिति मे ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप जरूरतमंद बीमारों के लिए भगवान बने हुए है। हकीकत में यह अवैध है। बिना डिग्री के अज्ञानी है। फिर भी स्वास्थ्य संबंधी थोड़ा बहुत ध्यान रखते है। सेहत महकमे के अधिकारी से डरते है। उनके आने का पता लगते ही भाग खड़े होते है। उनकी फीस भी 20 रुपये से लेकर लगभग 200 रुपये तक ही सीमित होती है लेकिन इस मुश्किल महामारी की घड़ी में ग्रामीण क्षेत्रों में वह भगवान बने हुए हैं। हम बात कर रहे हैं बिना डिग्री के झोलाछाप डॉक्टरों की। कोरोना महामारी के चलते बड़े-बड़े अस्पतालों के डॉ कोरोना वायरस के भय से मरीज को छूने देखने से परहेज कर रहे है। वहीं गांवों में बैठे झोलाछाप ग्रामीण क्षेत्रों में खांसी बुखार जुखाम आदि की दवाएं मरीज की नब्ज टटोल कर दे रहे है। हालांकि कोरोना वायरस का डर उन्हें भी है लेकिन वह इस संकट की घड़ी में ग्रामीणों के लिए बहुत कारगर काम कर रहे है। खतरनाक महामारी को नजरअंदाज कर जोखिम उठाते हुए मरीजों को दवाइयां देकर उनके जीवन से बीमारी को दूर करने के लिए लगातार प्रयासरत है। अवैध इसलिए हैं क्योंकि उनके पास डिग्री नहीं है तथा कोई स्वास्थ्य से संबंधित अच्छी प्रेक्टिस नहीं है इसलिए उनको झोलाछाप डॉक्टर का नाम दिया गया है। हालांकि यह झोलाछाप बनने से से पहले किसी न किसी डॉक्टर के यहां कुछ ज्ञान अर्जित करते है। उसके बाद ही ग्रामीण क्षेत्रों में अपने क्लीनिक चलाकर गुजर गांठ करने में लग जाते हैं लेकिन इन्हें खतरा हमेशा स्वास्थ्य महकमा के अफसरों से बना रहता है।उनके आने की जानकारी होने पर वे अपने क्लीनिक को बंद करके गायब हो जाते है लेकिन आज इस संकट की घड़ी में यह झोलाछाप ही ग्रामीणों को खासी जुकाम बुखार आदि की दवाइयां बेझिझक नब्ज टटोलकर दे रहे है। क्योंकि यह झोलाछाप किसी अच्छे डॉक्टर के यहां जान अर्जित करते है।।
बरेली से कपिल यादव