छात्रों ने योगी सरकार पर लगाये आरक्षण से छेड़छाड़ का इल्जाम

इलाहाबाद- उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन सेवा आयोग (एसएसएससी) ने ग्राम विकास अधिकारी का जो रिजल्ट घोषित किया है, वह कोर्ट में चैलेंज हो सकता है। रिजल्ट आने के बाद पूरे प्रदेश के दलित और पिछड़े वर्गों में नाराजगी देखी जा रही है। आरक्षण को दरकिनार कर घोषित किए गए इस रिजल्ट को लेकर दलित और पिछड़ी जाति के नेताओं से भी सवाल किया जा रहा है, लेकिन उनकी बोलती बंद हो गई है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन सेवा आयोग ने ग्राम विकास अधिकारी (वीडियो) की कुल 3133 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। ये विज्ञापन अखिलेश यादव सरकार के दौरान वर्ष 2013 में निकला था। अखिलेश यादव सरकार के दौरान ही इस भर्ती का लिखित और शारीरिक दक्षता परीक्षा भी हो गई थी, लेकिन साक्षात्कार पूरा न हो पाने की वजह से परीक्षा का परिणाम घोषित नहीं किया गया था।

19 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के काफी समय बाद आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और परीक्षा का साक्षात्कार पूरा कर आयोग ने परिक्षा का परिणाम घोषित कर दिया है। आयोग द्वारा 19 जुलाई 2018 को जारी परीक्षा का परिणाम 3133 पदों के सापेक्ष 2943 अभ्यर्थी पात्र पाए गए, जिनका विवरण कुछ इस तरह है।

देखिए घोषित रिजल्ट
1- कुल घोषित परिणाम – 2943 अभ्यर्थी पास।
2- सामान्य जाति – (GEN)- 1722 (58.43 फीसदी)
3- पिछड़ी जाति – (OBC)- 559 (18.96 फीसदी)
4- अनुसूचित जाति – (SC)- 590 (20.02 फीसदी)
5- जनजाति – (ST) – 72 (2.44 फीसदी)

ओबीसी को मिला केवल 18.96 फीसदी आरक्षण
पिछड़ी जातियों को अधीनस्त चयन सेवा आयोग द्वारा करवाई गई ग्राम विकास अधिकारी की परीक्षा में केवल 18.96 फीसदी आरक्षण दिया गया है, जबकि यह आरक्षण कम से कम 27 फीसदी दिया जाना संवैधानिक तौर पर अनिवार्य है। यही नहीं, दलितों में अनुसूचित जाति का भी आरक्षण उत्तर प्रदेश में 21.5 फीसदी है, लेकिन कुल चयनित अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों की संख्या भी केवल 590 यानी 20.02 फीसदी है।

सामान्य जाति को मिला सबसे अधिक आरक्षण 58.96 फीसदी
ग्राम विकास अधिकारी की परीक्षा के जारी ताजा परिणाम में सामान्य जातियों को गलती से 58.96 फीसदी आरक्षण हो गया है। यह आयोग की एक बड़ी नाकामी माना जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि यदि मामला कोर्ट में गया, तो यह परीक्षा परिणाम आरक्षण नियमावली को खत्म करने का साबित होगा और कोर्ट इस पूरे परीक्षा का परिणाम फिर से घोषित करने का आदेश दे सकता है।

क्या कहते हैं कानून के जानकार
गोरखपुर विश्वविद्यालय विधि संकाय के पूर्व अध्यक्ष एवं विधि विशेषज्ञ प्रोफेसर राम नरेश चौधरी ने रिजल्ट को पूरी तरह आरक्षण नियमावली के विरुद्ध बताया है। उन्होंने कहा है कि उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा पिछड़ों के 27 फीसदी, अनुसूचित जाति- के 21.5 फीसदी एवं सामान्य अभ्यर्थियों को 50 फीसदी दिए जाने का कानूनी एवं वैधानिक प्राविधान है। अधीनस्थ चयन सेवा आयोग के चेयरमैन सीबी पालीवाल ने आरक्षण नियमावली का खुला उल्लंघन किया है। हाई कोर्ट में उस वीडियो के इस रिजल्ट को चुनौती देने पर पूरी भर्ती प्रक्रिया माननीय न्यायालय निरस्त कर नए सिरे से साक्षात्कार कराने का आदेश दे सकता है, जो संविधान एवं आरक्षण नियमावली के अनुकूल होगा।

आरक्षण को कम नहीं कर सकतेः पूर्व जज, सभाजीत यादव
इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज सभाजीत यादव ने कहा है कि रिजर्वेशन को कम नहीं किया जा सकता। यह कैसे किया गया है, यह जानकारी का विषय है। निचले स्तर पर आयोग की परीक्षाओं में ऐसा भी नहीं हो सकता कि अभ्यर्थी न मिलें। इस मामले में पीआईएल भी हो सकती है, या इस मामले को लेकर चयनित न होने वाले अभ्यर्थी भी चैलेंज कर सकते है।
साभारः सुनील मोहित और समस्त प्रतियोगी छात्र
– इलाहाबाद से सत्येंद्र कुशवाहा की रिपोर्ट

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