कोरोना से निजात पाने के बाद समृद्धि लायेगा यह नववर्ष

बरेली – भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है और ब्रह्मपुराण के अनुसार मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही ब्रह्मा ने सृष्टि-सर्ग प्रारम्भ किया था। इसलिए इसे सृष्टि का प्रथम दिवस भी माना जाता है। इस मास को मधुमास के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि वसन्तऋतु का यौवन चैत्र में नूतन किसलय, पल्लवों, नवमंजरी के रूप में दिखायी देता है। सर्वत्र हरी-भरी लहलहाती फसल, आम्र मंजरी की सुगन्ध, कोकिल ध्वनि और प्रकृति में एक विशेष ऊर्जा का संचार दिखाई देता है। नववर्ष का प्रारम्भ होने का आशय नूतनता से है और इस समय खेतों में गेहूं की फसल पक चुकी होती है। नवान्न घरों में आने वाला होता है। इस संवत्सर का प्रारम्भ शक्ति की उपासना (दुर्गा के नौ रूपों की उपासना) से होता है और मनुष्य को सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव कराता है।

इसके साथ राजा विक्रमादित्य द्वारा प्रारम्भ विक्रम संवत् का भी प्रारम्भ होता है और यह विक्रम संवत् 2077 है। सनातन परम्परा में एक वर्ष को संवत्सर भी कहा जाता है और उस संवत्सर का एक नाम होता है। इस नूतन संवत्सर का नाम “प्रमादि” है। यह संवत्सरनाम गुरू ग्रह की गति के आधार पर किया जाता है। ज्यौतिषशास्त्रानुसार यह वर्ष प्रारम्भ में कष्टकारी रहेगा, किन्तु एक-दो मास के उपरान्त सुख-समृद्धि प्रदान करायेगा। यह वर्ष कृषकों के भी अनुकूल रहेगा, क्योंकि मेघेश चन्द्र सस्यानुकूल वर्षा तथा सस्येश बृहस्पति धान्य की अधिक पैदावार करायेगा।

जिस प्रकार एक राष्ट्र के संचालन हेतु एक राजा व मन्त्रिमंडल की आवश्यकता होती है। तदनुरूप सिद्धान्तज्यौतिषकार नक्षत्रों की गणना कर वर्ष के फलादेश हेतु वर्ष के राजा व मन्त्रीमंडल का निर्धारण करते हैं। इस संवत्सर का राजा बुध, मन्त्री चन्द्र, सस्येश बृहस्पति, रसेश शनि और मेघेश पुनः चन्द्र है। बुध जलतत्व प्रधान कहा जाता है और उन्नति व संपन्नता का द्योतक होता है। अतः इस नवसंवत्सर में उन्नति और समृद्धि होने के पूर्ण संकेत हैं। संहिता मेदिनी शास्त्रानुसार चन्द्र के मन्त्री होने के कारण यह वर्ष महिलाओं के लिए भी शुभ संकेत हैं। पूर्व वर्ष की अपेक्षा यह वर्ष स्त्री-जगत् को प्रसिद्धि, राजनैतिक वर्चस्व अनुकूल पदप्राप्ति, न्यायपालिक, शिक्षा एवं अनुसन्धान में विशेष उपलब्धियां प्राप्त करायेगा।

प्रत्येक वर्ष में चैत्रवैशाखादि बारह मास होते हैं। एक सौरवर्ष 365 दिन, 15 घड़ी, 22 पल और 57 विपल का होता है, जबकि चान्द्रमास 354 दिन, 22 घड़ी, 1 पल और 23 विपल का होता है। इस प्रकार दोनों वर्षों के मान में प्रतिवर्ष 10 घंटे, 53 घटी, 21 पल यानि लगभग 11 दिन का अन्तर होता है। अतएव सौरवर्ष तथा चान्द्रवर्ष में सामंजस्य स्थापित करने हेतु प्रत्येक चतुर्थ वर्ष में एक मास की अधिकता होती है, जिसे अधिकमास, अधिमास या मलमास कहा जाता है। इस वर्ष अश्विन मास के रूप में तेरहवें मास की अधिकता है। पौराणिक मान्यतानुसार इसे पुरुषोत्तममास भी कहा जाता है और इस मास में धार्मिक कार्यों का विशेष महत्त्व  होता है। यह एक विशेष दिवस है, इसलिए स्वामी दयानन्द ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी। इस नवसंवत्सर का हिन्दू नववर्ष के रूप में हर्षोल्लास से स्वागत किया जाता है। कश्मीर में इसे नवरेह, महाराष्ट्र में  गुड़ी पड़वा, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में युगादि, गोवा और केरल में इसे संवत्सर पड़वो के नाम से मनाया जाता है।

  • सौरभ पाठक बरेली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

किसी भी समाचार से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है।समाचार का पूर्ण उत्तरदायित्व लेखक का ही होगा। विवाद की स्थिति में न्याय क्षेत्र बरेली होगा।