माना जाता है कि एक बार पृथ्वी पर त्रिपुर नामक एक भयंकर दैत्य उत्पन्न हुआ था । वह बहुत बलशाली और पराक्रमी था । देवताओंके लिये उसे पराजित करना असंभव था ; तब ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र आदि देवता भगवान शिव की शरण में गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना लगने लगे ।
भगवान शिव के पास ‘अघोर’ नाम का एक दिव्य अस्त्र था । वह अस्त्र बहुत विशाल और तेजयुक्त था । उसे सम्पूर्ण देवताओं की आकृति माना जाता है । त्रिपुर का वध करने के उद्देश्य से शिव ने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र का चिंतन किया । अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर भूमि पर गिर गईं । उन्हीं बूंदों से महान रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए । फिर भगवान शिव की आज्ञा से उन वृक्षों पर जो फल लगे उनकी गुठलियों को रुद्राक्ष कहा गया । वैसे भी देखा जाये तो ‘रुद्र’ का अर्थ शिव और ‘अक्ष’ का आँख अथवा आत्मा है ।
ये रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के कहे गये हैं । माना जाता है कि जो फल शिव प्रभु ने सुर्य के नेत्रों से उत्त्पन करवाये वे कत्थई रंग के थे और उन के बारह भिन्न-भिन्न प्रकार माने गये हैं । इसी प्रकार चन्द्रमा के नेत्रों से श्वेतवर्ण के सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की उत्त्पति हुई तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से मानी जाती है । ये ही इनके अड़तीस भेद हैं ।
वैज्ञानिक तौर पर कहें तो रुद्राक्ष एक फल की गुठली (बीज) है । संसार में यही एक ऐसा फल है, जिसको खाया नहीं जाता बल्कि गुद्देको निकालकर उसके बीज को धारण किया जाता है। यह एक ऐसा बीज (काष्ठ रुप क) है, जो पानी में डूब जाता है । पानी में डूबना यह दर्शाता है कि इसका आपेक्षिक घनत्व अधिक है, क्योंकि इसमें लोहा, जस्ता, निकल, मैंगनीज,एल्यूमिनियम,फास्फोरस, कैल्शियम, कोबाल्ट,पोटैशियम, सोडियम, सिलिका, गंधक आदि तत्व होते हैं । इसी वजह से रुद्राक्ष का मानव शरीर से स्पर्श को महान गुणकारी बतलाया गया है । हमारे देश भारत में इसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्रमें ज्यादा तौर पर किया जाता है ।
हमारे देश में व्यावसायिक तौर से रुद्राक्ष प्राय: तीन रंगो में पाया जाता है। लाल, मिश्रित लाल व काला । इसमें धारियांबनी रहती हैं । इन धारियोंको मुख कहा गया है । एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक रुद्राक्ष होते हैं । परंतु वर्तमान में चौदहमुखी तक रुद्राक्ष उपलब्ध हैं । रुद्राक्ष के एक ही वृक्ष से कई प्रकार के रुद्राक्ष मिलते हैं । एक मुखी रुद्राक्ष को साक्षात् शिव का स्वरूप कहा गया है । सभी मुख वाले रुद्राक्षों का अपना एक अलग महत्व होता है । हमारे ऋषि-मुनियों के मुताबिक इन रुद्राक्षोंके मुख के अनुसार देवों की महिमा बतलाई गई है । ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक निम्नानुसार मंत्र-जाप करने से कष्ट निवारण का महत्व दिखलाया गया है …………
रुद्राक्ष देवता मंत्र
१ मुखी शिव ॐ नमः शिवाय । 2 –ॐ ह्रीं नमः
२ मुखी अर्धनारीश्वर ॐ नमः
३ मुखी अग्निदेव ॐ क्लीं नमः
४ मुखी ब्रह्मा,सरस्वती ॐ ह्रीं नमः
५ मुखी कालाग्नि रुद्र ॐ ह्रीं नमः
६ मुखी कार्तिकेय, ॐ ह्रीं हुं नमः
७ मुखी नागराज ॐ ह्रीं हुं नमः
८ मुखी भैरव,अष्ट विनायक ॐ हुं नमः
९ मुखी माँ दुर्गा १-ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः २-ॐ ह्रीं हुं नमः
१० मुखी विष्णु १-ॐ नमो भवाते वासुदेवाय २-ॐ ह्रीं नमः
११ मुखी एकादश रुद्र १-ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवय धीमही तन्नो रुद्रः प्रचोदयात २-ॐ ह्रीं हुं नमः
१२ मुखी सूर्य १-ॐ ह्रीम् घृणिः सूर्यआदित्यः श्रीं २-ॐ क्रौं क्ष्रौं रौं नमः
१३ मुखी कार्तिकेय, इंद्र ,इंद्राणी १-ऐं हुं क्षुं क्लीं कुमाराय नमः २-ॐ ह्रीं नमः
१४ मुखी शिव,हनुमान,आज्ञा चक्र ॐ नमः
१५ मुखी पशुपति ॐ पशुपत्यै नमः
१६ मुखी महामृत्युंजय ,महाकाल ॐ ह्रौं जूं सः त्र्यंबकम् यजमहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय सः जूं ह्रौं ॐ
१७ मुखी विश्वकर्मा ,माँ कात्यायनी ॐ विश्वकर्मणे नमः
१८ मुखी माँ पार्वती ॐ नमो भगवाते नारायणाय
१९ मुखी नारायण ॐ नमो भवाते वासुदेवाय
२० मुखी ब्रह्मा ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म
२१ मुखी कुबेर ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा
आयुर्वेद चिकित्सा क्षेत्र में रुद्राक्षका एक विशिष्ट वर्णन मिलता है । बहुत से रोगों का उपचार रुद्राक्ष से आयुर्वेद में वर्णित है ।
माना जाता है कि ….
दाहिनी भुजा पर रुद्राक्ष बांधने से बल व वीर्य शक्ति बढती है । वात रोगों का प्रकोप भी कम होता है।
कंठ में धारण करने से गले के समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं, टांसिल नहीं बढते । स्वर का भारीपन भी मिटता है ।
कमर में बांधने से कमर का दर्द समाप्त हो जाता है ।
शुद्ध जल में तीन घंटे रुद्राक्ष को रखकर उसका पानी किसी अन्य पात्र में निकालकर पीने से बेचैनी, घबराहट, मिचली व आंखों की जलन रोकने के लिए किया जा सकता है ।
दो बूंद रुद्राक्ष का जल दोनों कानों में डालने से सिरदर्द में आराम मिलता है ।
रुद्राक्ष का जल हृदय रोग के लिए भी लाभकारी है ।
चरणामृत की तरह प्रतिदिन दो घूंट इस जल को पीने से शरीर स्वस्थ रहता है ।
इस प्रकार से कई रोगों का उपचार रुद्राक्ष से संभव होता है ऐसा हमारे विद्वानों द्वारा कहा गया है ।
इसी वजह से वर्तमान समय में लोग रुद्राक्ष धारण करना चाहते हैं । क्योंकि इस के धारण करने से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता है । इसी कारण वे चाहते हैं कि सही रुद्राक्ष को खरीदें । रुद्राक्ष की पहचान को लेकर अनेक भ्रातियां मौजूद हैं । जिनके कारण आम व्यक्ति असल रुद्राक्ष की पहचान उचित प्रकार से नहीं कर पाता है एवं स्वयं को असाध्य पाता है । असली रुद्राक्ष का ज्ञान न हो पाना , उसके प्रभाव को निष्फल करता है । अत: ज़रूरी है कि रुद्राक्ष असली हो ।
रुद्राक्ष के समान ही एक अन्य फल होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है, और यह रुद्राक्ष के जैसा हो दिखाई देता है इसलिए कुछ लोग रुद्राक्ष के स्थान पर इसे भी नकली रुद्राक्ष के रुप में बेचते हैं । भद्राक्ष दिखता तो रुद्राक्ष की भांति ही है किंतु इसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते ।
असली रुद्राक्ष की पहचान के कुछ तरीके बताए जाते हैं जो इस प्रकार हैं…..
1.रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा
2.रुद्राक्ष को काटने पर यदि उसके भीतर उतने ही घेर दिखाई दें जितने की बाहर हैं तो यह असली रुद्राक्ष होगा , यह परीक्षण सही माना जाता है, किंतु इसका नकारात्मक पहलू यह है कि इस परीक्षण से रुद्राक्ष नष्ट हो जाता है
3.रुद्राक्ष की पहचान के लिए उसे किसी नुकिली वस्तु द्वारा कुरेदें यदि उसमे से रेशा निकले तो समझें की रुद्राक्ष असली है
4. दो असली रुद्राक्षों की उपरी सतह यानि के पठार समान नहीं होती किंतु नकली रुद्राक्ष के पठार समान होते हैं
5.एक अन्य उपाय है कि रुद्राक्ष को पानी में डालें अगर यह डूब जाए, तो असली होगा, यदि नहीं डूबता तो नकली लेकिन यह जांच उपयोगी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पक्के होने पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष धातु या किसी अन्य भारी चीज से भी बनाया जा सकता है जिस के कारण वह भी पानी में डूब सकता है, सो ये प्रयोग बहुत कारगर नहीं कहा जा सकता है
6.एक अन्य उपयोग द्वारा भी परीक्षण किया जा सकता है … रुद्राक्ष के मनके को तांबे के दो सिक्कों के बीच में रखा जाए, तो थोड़ा सा हिल जाता है क्योंकि रुद्राक्ष में चुंबकत्व होता है जिस की वजह से ऐसा होता है ; कहा जाता है कि दोनो अंगुठों के नाखूनों के बीच में रुद्राक्ष को रखें यदि वह घुमता है तो असली होगा अन्यथा नकली परंतु यह तरीका भी सही नही है क्योंकि बाहरी तौर से धातु की मिलावट करना असंभव नहीं है
रुद्राक्ष कितने प्रकार के होते हैं, ओर क्या है उनका महत्व ********************************************
भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष का बहुत महत्व है। माना जाता है कि रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ तपस्वियों के लिए ही नहीं, बल्कि सांसारिक जीवन में रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है। जानिए, कैसे इंसानी जीवन में नकारात्मकता को कम करने में मदद करता है रुद्राक्ष:।
1 मुखी रुद्राक्ष,,,पौराणिक मान्यताओके अनुसार, एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात शिवस्वरुप माना जाता है. ईसके निरंतर सानिध्यसे एव्ं ध्यानधारणासे , धारणकर्ता – वैश्विकज्ञान , उच्चतम चेतनावस्था पाते हुए त्रिकालदर्शी हो जाता है, और स्वर्गीय (ईश्वरीय) परम चेतना में विलीन हो जाता है।
यह मणि ईश्वरीय ज्ञान और आध्यात्मिक दृष्टि जागृत करने, आज्ञा चक्र पर प्रभावी सिद्ध होता है. भगवान शिव और की कृपा और पवित्र कर्मोके फलस्वरुप कुछ गिनेचुने भाग्यशाली व्यक्तियोको ही यह दुर्लभ मनी धारण करने का अवसर मिलता है। इसे धारण करने से व्यक्ति निश्चित रूप से मोक्ष मार्ग पे जाता है।
धारणकर्ता मन की इच्छाएं पूर्ण करने की, सारे विश्व पर शासन करने की, उसे अपने मुट्ठी में रखने की क्षमता प्राप्त करता है।धारण कर्ता हर एक परिस्थितीमे सुयोग्य निर्णय लेनेकी क्षमता प्राप्त करता है। वह भगवान शंकर की कृपा से सब सुख प्राप्त करता है। यह अभय लक्ष्मी दिलाता है। इसके धारण करने पर सूर्य जनित दोषों का निवारण होता है।
नेत्र संबंधी रोग, सिर दर्द, हृदय का दौरा, पेट तथा हड्डी संबंधित रोगों के निवारण हेतु इसको धारण करना चाहिए। यह यश और शक्ति प्रदान करता है। इसे धारण करने से आध्यात्मिक उन्नति, एकाग्रता, सांसारिक, शारीरिक, मानसिक तथा दैविक कष्टों से छुटकारा, मनोबल में वृद्धि होती है। कर्क, सिंह और मेष राशि वाले इसे माला रूप में धारण अवश्य करें।
एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने का मंत्र: ऊँ एं हे औं ऐं ऊँ। इस मंत्र का जाप 108 बार (एक माला) करना चाहिए तथा इसको सोमवार के दिन धारण करें।
2 मुखी रुद्राक्ष,,,,,दो मुखी रुद्राक्ष शिव का अर्धनारीश्वर स्वरुप है. इससे भगवान अर्द्धनारीश्वर प्रसन्न होते हैं। उसकी ऊर्जा से सांसारिक बाधाएं तथा दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है दूर होती हैं। इसे स्त्रियांे के लिए उपयोगी माना गया है।
संतान जन्म, गर्भ रक्षा तथा मिर्गी रोग के लिए उपयोगी माना गया है। ईससे पति-पत्नि, पिता-पुत्र, मित्र एव्ं व्यावसायिक संबंधोमे सौहार्द आता है. एकता बनाए रखनेवाला यह मणी आत्मिक शांती और पुर्णता प्रदान करता है. चंद्रमा की प्रतिकुलता से उत्पन्न दोषो का निवारण यह करता है।
हृदय, फेफड़ों, मस्तिष्क, गुर्दों तथा नेत्र रोगों में इसे धारण करने पर लाभ पहुंचता है। यह ध्यान लगाने में सहायक है। इसे धारण करने से सौहार्द्र लक्ष्मी का वास रहता है। धनु व कन्या राशि वाले तथा कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न वालों के लिए इसे धारण करना लाभप्रद होता है। दो मुखी रुद्राक्ष धारण का मंत्र: ऊँ ह्रीं क्षौं श्रीं ऊँ।
3 मुखी रुद्राक्ष,,,,यह अग्निदेवता का प्रतिनिधीत्व करता है. सुर्य की प्रतिकुलता से उत्पन्न सभी दोषोका निवारण ३ मुखी रुद्राक्ष करता है. ३ मुखी रुद्राक्ष धारण करनेसे मनुष्य जन्मजन्मांतर के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष पाता है. ईससे पेट और यक्रूत की बिमारिया दुर होती है. तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि का रूप कहा गया है। मंगल इसका अधिपति ग्रह है।
मंगल ग्रह निवारण हेतु इसे धारण किया जाता है यह मूंगे से भी अधिक प्रभावशाली है। मंगल को लाल रक्त कण, गुर्दा, ग्रीवा, जननेन्द्रियों का कारक ग्रह माना गया है। अतः तीन मुखी रुद्राक्ष को ब्लडप्रेशर, चेचक, बवासीर, रक्ताल्पता, हैजा, मासिक धर्म संबंधित रोगों के निवारण हेतु धारण करना चाहिए। उन व्यक्तियों के द्वारा इसे पहनना श्रेष्ठ है जो हीन भावना से ग्रस्त हो ,मन में किसी बात का डर हो ,आत्मग्लानि हो ,आत्म विश्वास का अभाव हो , मानसिक तनाव अथवा मानसिक रोग हो .इसके धारण करने से श्री, तेज एवं आत्मबल मिलता है।
यह सेहत व उच्च शिक्षा के लिए शुभ फल देने वाला है। इसे धारण करने से दरिद्रता दूर होती है तथा पढ़ाई व व्यापार संबंधित प्रतिस्पर्धा में सफलता मिलती है। अग्नि स्वरूप होने के कारण इसे धारण करने से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा शरीर स्वस्थ रहता है। मेष, सिंह, धनु राशि वाले तथा मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन लग्न के जातकों को इसे अवश्य धारण करना चाहिए।
इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं। तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र – ऊँ रं हैं ह्रीं औं। इस मंत्र को प्रतिदिन 108 बार यथावत पढ़ें।
4 मुखी रुद्राक्ष,,,,,4 मुखी रुद्राक्ष के अधिपती ब्रह्मा है. ईसे ब्रह्म स्वरूप माना जाता है। ईससे स्मरणशक्ती, मौखिकशक्ती, व्यवहार चातुर्य, वाक्चातुर्य तथा बुध्दीमत्ता का विकास होता है।
बुध ग्रह की प्रतिकुलतासे उत्पन्न सभी दोषो का निवारण यह करता है. इसमें पन्ना रत्न के समान गुण हैं चार मुखी रुद्राक्ष व्यापारियों वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता बुद्धिजीवी कलाकार लेखक विद्यार्थी व् शिक्षक के लिए पहनना अत्यंत लाभकारी होता है इसके विलक्षण परिणाम मिलते है मानसिक रोग, पक्षाघात, पीत ज्वर, दमा तथा नासिका संबंधित रोगों के निदान हेतु इसे धारण करना चाहिए।
चार मुखी रुद्राक्ष धारण करने से वाणी में मधुरता, आरोग्य तथा तेजस्विता की प्राप्ति होती है। सेहत, ज्ञान, बुद्धि तथा खुशियों की प्राप्ति में सहायक है। इसे चारों वेदों का रूप माना गया है तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुर्वर्ग फल देने वाला है। इसे धारण करने से सांसारिक दुःखों, शारीरिक, मानसिक, दैविक कष्टों तथा ग्रहों के कारण उत्पन्न बाधाओं से छुटकारा मिलता है।
वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर व कुंभ लग्न के जातकों को इसे धारण करना चाहिए। चार मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र – ऊँ बां क्रां तां हां ईं। सोमवार को यह मंत्र 108 बार जपकर धारण करें।
5 मुखी रुद्राक्ष,,,,पाँच मुखी रुद्रकालाग्नी का प्रतिनिधीत्व करता है. इस रुद्राक्ष को रुद्र का स्वरूप कहा गया है। ईससे मन:शांती प्राप्त होती है. गुरु ग्रह की प्रतिकुलतासे उत्पन्न सभी दोषो का निवारण यह करता है. इसमें पुखराज के समान गुण होते हैं। 5 मुखी रुद्राक्ष भी व्यापारियों वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता बुद्धिजीवी कलाकार लेखक विद्यार्थी व् शिक्षक के लिए पहनना अत्यंत लाभकारी होता है इसके विलक्षण परिणाम मिलते है।
इसे धारण करने से निर्धनता, दाम्पत्य सुख में कमी, जांघ व कान के रोग, मधुमेह जैसे रोगों का निवारण होता है। पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालों को सुख, शांति व प्रसिद्धि प्राप्त होते हैं। यह हृदय रोगियों के लिए उत्तम है।
इससे आत्मिक विश्वास, मनोबल तथा ईश्वर के प्रति आसक्ति बढ़ती है। मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन वाले जातक इसे धारण कर सकते हैं। पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ऊँ ह्रां क्रां वां हां। सोमवार की सुबह मंत्र एक माला जप कर, इसे काले धागे में विधि पूर्वक धारण करना चाहिए।
6 मुखी रुद्राक्ष,,,छः मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का स्वरूप है। ईसपर मंगल ग्रह का अधिपत्य है. ईसे धारण करनेपर साफसुथरी प्रतिमा, मजबूत नींव के साथ जीवन मे स्थिरता प्राप्त होती है. ऐशो आराम तथा वाहनसुख की लालसा पुरी होती है. शुक्र ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे अवश्य धारण करना चाहिए।
नेत्र रोग, गुप्तेन्द्रियों, पुरुषार्थ, काम-वासना संबंधित व्याधियों में यह अनुकूल फल प्रदान करता है। इसके गुणों की तुलना हीरे से होती है। यह दाईं भुजा में धारण किया जाता है। इसे प्राण प्रतिष्ठित कर धारण करना चाहिए तथा धारण के समय ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए। इसे हर राशि के बच्चे, वृद्ध, स्त्री, पुरुष कोई भी धारण कर सकते हैं।
गले में इसकी माला पहनना अति उत्तम है। कार्तिकेय तथा गणेश का स्वरूप होने के कारण इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने वाले पर माँ पार्वती की कृपा होती है। आरोग्यता तथा दीर्घायु प्राप्ति के लिए वृष व तुला राशि तथा मिथुन, कन्या, मकर व कुंभ लग्न वाले जातक इसे धारण कर लाभ उठा सकते हैं।
छः मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं क्लीं सौं ऐं’। इसे धारण करने के पश्चात् प्रतिदिन ‘ऊँ ह्रीं हु्रं नमः’ मंत्र का एक माला जप करें।
7 मुखी रुद्राक्ष,,,सातमुखी रुद्राक्ष ऐश्वर्य की देवता महालक्ष्मी का प्रतिनिधीत्व करता है. ईसे धारण करने से संपन्नता, ऐश्वर्य तथा उन्नती के नये नये अवसर प्राप्त होते है. आर्थिक विपत्तीयोसे ग्रस्त लोग ईसे धारण करे।
व्यवसाय मे घाटा टालने या कम करने मे यह मददगार होता है. अगर सफलता देरी से मिलनेकी शिकायत है तो 7 मुखी रुद्राक्ष जरुर धारण करे., ईससे नाम, प्रतिष्ठा तथा सम्रूध्दि मे उत्तरोत्तर बढौत्तरी होती है. इस रुद्राक्ष के देवता सात माताएं व हनुमानजी हैं।
यह शनि ग्रह द्वारा संचालित है। इसे धारण करने पर शनि जैसे ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है तथा नपुंसकता, वायु, स्नायु दुर्बलता, विकलांगता, हड्डी व मांस पेशियों का दर्द, पक्षाघात, सामाजिक चिंता, क्षय व मिर्गी आदि रोगों में यह लाभकारी है। इसे धारण करने से कालसर्प योग की शांति में सहायता मिलती है।
यह नीलम से अधिक लाभकारी है तथा किसी भी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव नहीं देता है। इसे गले व दाईं भुजा में धारण करना चाहिए। इसे धारण करने वाले की दरिद्रता दूर होती है तथा यह आंतरिक ज्ञान व सम्मान में वृद्धि करता है।
इसे धारण करने वाला उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर चलता है तथा कीर्तिवान होता है। मकर व कुंभ राशि वाले, इसे धारण कर लाभ ले सकते हैं। सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रं क्रीं ह्रीं सौं’। इसे सोमवार के काले धागे में धारण करें।
8 मुखी रुद्राक्ष,,,आठमुखी रुद्राक्ष के स्वामी संकटमोचन श्री गणेशजी है तथा केतु ग्रह ईसका अधिपती है. यह मार्ग के सारे अवरोध दुर करता है और सभी कार्योमे यश देता है. विरोधीयोके मन तथा हेतू मे बदलाव लाकर शत्रुओको भी धारणकर्ता के हित मे सोचने के लिये बाध्य करता है।
अर्थात इसे धारण करने से द्वेष शत्रुता, और विरोध रखने वालो का मन बदल जाता है और सर्व्रत्र मित्रता बढ़ती है आठ मुखी रुद्राक्ष में कार्तिकेय, गणेश और गंगा का अधिवास माना जाता है। राहु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर इसे धारण करना चाहिए।
मोतियाविंद, फेफड़े के रोग, पैरों में कष्ट, चर्म रोग आदि रोगों तथा राहु की पीड़ा से यह छुटकारा दिलाने में सहायक है। इसकी तुलना गोमेद से की जाती है। आठ मुखी रुद्राक्ष अष्ट भुजा देवी का स्वरूप है। यह हर प्रकार के विघ्नों को दूर करता है। इसे धारण करने वाले को अरिष्ट से मुक्ति मिलती है। इसे सिद्ध कर धारण करने से पितृदोष दूर होता है।
मकर और कुंभ राशि वालों के लिए यह अनुकूल है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुंभ व मीन लग्न वाले इससे जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रां ग्रीं लं आं श्रीं’। सोमवार के दिन इसे काले धागे में धारण करें।
9 मुखी रुद्राक्ष,,,,,नौमुखी रुद्राक्ष की स्वामी नवदुर्गा है तथा राहु ईसका प्रतिनिधीत्व करता है. यह धारणकर्ता को अपार उर्जा, शक्ती तथा चैतन्य देता है. राहु की प्रतिकुलतासे उत्पन्न होनेवाले सभी दोषोका निवारण यह रुद्राक्ष करता है. नौ मुखी रुद्राक्ष को नव-दुर्गा स्वरूप माना गया है।
केतु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर भी इसे धारण करना चाहिए। ज्वर, नेत्र, उदर, फोड़े, फुंसी आदि रोगों में इसे धारण करने से अनुकूल लाभ मिलता है। इसे धारण करने स केतु जनित दोष कम होते हैं। यह लहसुनिया से अधिक प्रभावकारी है। ऐश्वर्य, धन-धान्य, खुशहाली को प्रदान करता है। धर्म-कर्म, अध्यात्म में रुचि बढ़ाता है।
मकर एवं कुंभ राशि वालों को इसे धारण करना चाहिए। नौमुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं बं यं रं लं’। सोमवार को इसका पूजन कर काले धागे में धारण करना चाहिए।
10 मुखी रुद्राक्ष,,,दशमुखी रुद्राक्ष के अधिपती भगवान महाविष्णु तथा यम देव है. यह रुद्राक्ष एक कवच का कार्य करता है जिसे धारण करनेपर नकारात्मक उर्जा से आसिम सुरक्षा प्राप्त होती है. ईससे न्यायालयीन मुकदमे, भूमि से जुडे व्यवहार मे यश प्राप्त होता है तथा कर्ज से मुक्ती मिलती है।
10 मुखी रुद्राक्ष सारे नवग्रहो की प्रतिकुलतासे उत्पन्न दोषोका निवारण करता है. दस मुखी रुद्राक्ष में भगवान विष्णु तथा दसमहाविद्या का निवास माना गया है। इसे धारण करने पर प्रत्येक ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है। यह एक शक्तिशाली रुद्राक्ष है तथा इसमें नवरत्न मुद्रिका के समान गुण पाये जाते हैं।
सर्वग्रह इसके प्रभाव से शांत रहते हैं। यह सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम है। जादू-टोने के प्रभाव से यह बचाव करता है। ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने से पूर्व इसे प्राण-प्रतिष्ठित अवश्य कर लेना चाहिए। मानसिक शांति, भाग्योदय तथा स्वास्थ्य का यह अनमोल खजाना है। मकर तथा कुंभ राशि वाले जातकों को इसे प्राण-प्रतिषिठत कर धारण करना चाहिए।
दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं ऊँ’। काले धागे में सोमवार के दिन धारण करें।
11 मुखी रुद्राक्ष,,,,,ग्यारह मुखी रुद्राक्ष के अधिपती 11 रुद्र है. ईसका प्रभाव सारे ईंद्रिय, सशक्त भाषा, निर्भय जीवनपर होता है. ईससे सारे ग्रहोकी प्रतिकुलतासे उत्पन्न दोषो का निवारण होता है।
यह धारक को सही निर्णय लेने में मदद करता है ,यह बल व् बुद्धि प्रदान करता है , तथा शरीर को बलिष्ठ व् निरोगी बनाता है , विदेश में बसने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए इसे पहनने से लाभ मिलता है . ग्यारह मुखी रुद्राक्ष भगवान इंद्र का प्रतीक है। यह ग्यारह रुद्रों का प्रतीक है।
इसे शिखा में बांधकर धारण करने से हजार अश्वमेध यज्ञ तथा ग्रहण में दान करने के बराबर फल प्राप्त होता है। इस रुद्राक्ष के धारणकर्ता को अकालमृत्यु का भय नहीं रहता. इसे धारण करने से समस्त सुखों में वृद्धि होती है। यह विजय दिलाने वाला तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने वाला है।
दीर्घायु व वैवाहिक जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है। विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों तथा विकारों में यह लाभकारी है तथा जिस स्त्री को संतान प्राप्ति नहीं होती है इसे विश्वास पूर्वक धारण करने से बंध्या स्त्री को भी सकती है संतान प्राप्त हो। इसे धारण करने से बल व तेज में वृद्धि होती है। मकर व कुंभ राशि के व्यक्ति इसे धारण कर जीवन-पर्यंत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ रूं मूं औं’। विधि विधान से पूजन अर्चना कर काले धागे में सोमवार के दिन इसे धारण करना चाहिए।
12 मुखी रुद्राक्ष,,,बारह मुखी रुद्राक्ष के अधिपती सुर्यदेव है. धारण कर्ता को शासन करने की क्षमता, अलौकीक बुध्दीमत्ता की चमक, तेज और शक्ती जैसे सुर्यदेव के गुण प्राप्त होते है. आत्मिक उर्जा मे बढौतरी होती है. इसे धारण करने से व्यक्ति में नेतृत्व क्षमता में वृद्धि और शासक का पद प्राप्त करता है।
बारहमुखी रुद्राक्ष प्रत्येक कार्य क्षेत्र से संलग्न व्यक्ति ,राजनीतिज्ञ, मंत्री ,उद्योग प्रमुख , व्यापारियों एवं यश प्रसिद्धि चाहने वालों को अवस्य धारण करना चाहिए ताकि उनमे ओजस्विता एवं कार्यक्षमता सतत बनी रहे . सरकारी अफसर व कर्मचारीयोके लिये 12 मुखी रुद्राक्ष विशेष लाभदायी सिध्द होता है।
ईससे प्रमोशन, मनचाही जगहपर पोस्टींग, पद, प्रतिष्ठा, प्रगति व अन्य लाभ प्राप्त होते है. प्रतियोगिता परीक्षा कि तैय्यारी कर रहे लोगों के लिये भी यह रुद्राक्ष शुभफलदायी होता है। व्यक्तित्व निखारते हुए उँचे दर्जेका आत्मविश्वास एवं नियंत्रण शक्ति प्रदान करने का कार्य भी यह रुद्राक्ष करता है।
बारह मुखी रुद्राक्ष को विष्णु स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं। इसे धारण करने से दोनों लोकों का सुख प्राप्त होता है तथा व्यक्ति भाग्यवान होता है। यह नेत्र ज्योति में वृद्धि करता है। यह बुद्धि तथा स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह समृद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान दिलाता है। दरिद्रता का नाश होता है। मनोबल बढ़ता है ।
सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा असीम तेज एवं बल की प्राप्ति होती है। बारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं क्षौंत्र घुणंः श्रीं’। मंत्रोच्चारण के साथ प्रातः काले धागे में सोमवार को पूजन अर्चन कर इसे धारण करें।
13 मुखी रुद्राक्ष,,,13 मुखी रुद्राक्ष के स्वामी ईन्द्रदेव (देवो के राजा) तथा अधिपती कामदेव होते है. धारणकर्ताकी सारी सांसारीक मनोकामनाए पुरी होती है।
कामदेव की क्रुपा से वशीकरण, आकर्षण ऐश्वर्य एवं प्रभावित करने की क्षमता , शक्ती तथा करिशमाई व्यक्तित्व प्राप्त होता है. अनेक सिध्दीयोको जाग्रुत करते हुए कुंडलिनी जाग्रुती मे सहाय्यकारी होता है. हमेशाआकर्षण का केन्द्र रहने हेतू यह रुद्राक्ष फिल्म अभिनेता एवं कलाजगत , राजनेता व कारोबारीयो तथा व्यापर से जुड़े लोगो के लिए अति श्रेष्ठा है।
ईससे धारणकर्ता के प्रती आकर्षण तथा जनाधार दिन ब दिन बढते जाता है. यह रुद्राक्ष साक्षात् इंद्र का स्वरूप है। यह समस्त कामनाओं एवं सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। निः संतान को संतान तथा सभी कार्यों में सफलता मिलती है अतुल संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा भाग्योदय होता है। यह समस्त शक्ति तथा ऋद्धि-सिद्धि का दाता है।
यह कार्य सिद्धि प्रदायक तथा मंगलदायी है। सिंह राशि वालों के लिए यह उत्तम है। तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ इं यां आप औं‘ं प्रातः काल स्नान कर आसन पर भगवान के समक्ष बैठकर विधि-विधान से पूजन कर काले धागे में सोमवार को इसे धारण करना चाहिए। ‘ऊँ ह्रीं नमः’। मंत्र का भी उच्चारण किया जा सकता है।
14 मुखी रुद्राक्ष,,,,,चौदह मुखी रुद्राक्ष अनमोल ईश्वरीय रत्न है. ईसे साक्षात ‘देवमणी’ कहा जाता है. ईसके अधिपती स्वय्ं भगवान शिव और महाबली हनुमान है. धारणकर्ता को दुर्घटना, यातना व चिंतासे मुक्ती दिलाते हुए सफलता की ओर ले जाता है. इसे धारण करने से छठी इन्द्रिय जागृत हो जाती है एवं भविस्य में होने वाली घटनाओ का पहले ही ज्ञान होने लगता है और किसी भी विषय पर लिया गया निर्णय अंततः सफल ही होता है।
यह अपने प्रभाव से धारक को समस्त संकट , हानि , दुर्घटना ,रोग और चिंता से मुक्त करके ऐश्वर्य, धन-धान्य- , सुख शांति , समृद्धि प्रदान करता है . सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं समस्त कामनाओं एवं सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। सभी कार्यों में सफलता मिलती है अतुल संपत्ति की प्राप्ति होती है तथा भाग्योदय होता है।
14 मुखी रुद्राक्ष के अधिपती ग्रह शनि और मंगल है. अर्थात यह रुद्राक्ष शनी तथा मंगल दोनो ग्रहोकी बाधा से उत्पन्न दोषो का निवारण करता है.जिन्हे साढेसाती, 4 था या 8 वा शनि चल रहा है, एेसे तमाम लोगोको ईसे पहेननेसे बडी राहत मिलती है. यह भगवान शंकर का सबसे प्रिय रुद्राक्ष है। यह हनुमान जी का स्वरूप है।
धारण करने वाले को परमपद प्राप्त होता है। इसे धारण करने से शनि व मंगल दोष की शांति होती है। दैविक औषधि के रूप में यह शक्ति बनकर शरीर को स्वस्थ रखता है। चैदह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ औं हस्फ्रे खत्फैं हस्त्रौं हसत्फ्रैं’। सोमवार के दिन स्नानादि कर पूजन-अर्चन कर काले धागे में इसे धारण करें।
15 मुखी रुद्राक्ष,,,,यह रुद्राक्ष भगवान पशुपतीनाथ का स्वरुप है. यह रुद्राक्ष व्यानपार में वृद्धि के लिए होता है। पंद्रह मुखी रुद्राक्ष से ऊर्जा प्राप्त होती है जिससे व्यरक्तिन अपने कार्य में सफल हो पाता है।
इस रुद्राक्ष को पहनने से बुद्धि तेज होती है। रुद्राक्ष पर भगवान शिव का आशीर्वाद माना जाता है इसलिए पंद्रह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से आपके व्या्पार पर भगवान शिव की कृपा प्राप्ता होती है। 15 मुखी रूद्राक्ष भगवान पशुपतिनाथ का प्रतीक तथा राहु द्वारा शासित है अर्थात् इस रुद्राक्ष को पहनने से आपको राहु की कृपा भी प्राप्तख होती है। यह रुद्राक्ष आपका उचित मार्गदर्शन करता है। 15 मुखी रुद्राक्ष के प्रभाव से आपको कभी भी धन का अभाव नहीं होता।
15 मुखी रुद्राक्ष त्व चा रोग दूर करने में भी प्रभावकारी होता है। इससे पौरुष शक्ति भी बढ़ती है। ह्रिदयरोग, मधुमेह, अस्थमा जैसे रोगे से राहत दिलाता है.
16 मुखी रुद्राक्ष,,,यह भगवान शिव का महाम्रुत्युंजय रुप है. ईसे विजय रुद्राक्ष भी कहा जाता है. शत्रु को परास्त करते हुए दिग्विजयी होने मे का शुभाषिश यह प्रदान करता है.ईसे धारण करना प्रतिदिन 1,25,000 बार महाम्रुत्युंजय मंत्र का जाप करने बराबर है।
17 मुखी रुद्राक्ष,,,,सत्तरह मुखी रूद्राक्ष को सीता जी एवं राम जी का प्रतीक माना गया है. यह रुद्राक्ष राजयोग का सुख प्रदान करता है सुख एवं समृद्धि दायक होता है।
यह रुद्राक्ष राम सीता जी के संयुक्त बलों का प्रतिनिधित्व करता है. यह एक दुर्लभ रूद्राक्ष है,. इस रूद्राक्ष के पहनने से सफलता, स्मृति ज्ञान, कुंडलिनी जागरण और तथा धन धान्य की वृद्धि होगी।
(साभार)
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