*पायलट के चहुंओर अंधेरा समर्थित विधायको का भरोसा भी अब टूटा
*जादूगर अशोक गहलोत ने आंखें खोलकर दिखाई हाथ की सफाई
बाड़मेर/राजस्थान- कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जादूगरी देखने को मिलीं। मौजूदा समय में तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें है। बैठक में तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद रहे, लेकिन राजस्थान के मुखिया अशोक गहलोत का प्रभाव अलग ही देखने को मिला। छत्तीसगढ़ और पंजाब के मुख्यमंत्री क्रमश: भूपेश बघेल और चरणजीत सिंह चन्नी गहलोत के मुकाबले बहुत जूनियर हैं। बैठक में वर्किंग कमेटी के जो सदस्य मौजूद रहे, उनमें से अधिकांश सांसद ही नहीं है। बैठक में सबसे शक्तिशाली नेता के तौर पर गहलोत ही नजर आए।
जानकार सूत्रों की माने तो सोनिया गांधी का आरंभिक संबोधन भी गहलोत की सोच से तैयार हुआ है। बैठक में जब कांग्रेस के नए अध्यक्ष की चुनाव की घोषणा हो चुकी थी, उसके बाद अशोक गहलोत ने प्रस्ताव रखा कि राहुल गांधी को नया अध्यक्ष बनाया जाए। इस प्रस्ताव का असंतुष्ट समूह के नेताओं ने भी समर्थन किया। सूत्रों की माने तो बैठक से पहले सीएम गहलोत ने जी 23 समूह के नेताओं से भी संवाद किया था। इसी का नतीजा रहा कि गहलोत ने जब राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव किया तो किसी ने भी एतराज नहीं किया। यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में राहुल गांधी को ही कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था। लेकिन वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। अब जो हालात बन रहे हैं उसमें एक बार फिर राहुल गांधी ही कांग्रेस के अध्यक्ष रहेगा।
सूत्रों के अनुसार गहलोत ने जिस चतुराई से राहुल गांधी का नाम प्रस्तावित किया, उससे राजस्थान की राजनीति पर भी सीधा असर पड़ेगा। राजस्थान में गहलोत के प्रतिद्वंदी पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की मुलाकात पिछले दिनों कई बार गांधी परिवार से हो चुकी है। राहुल गांधी भी चाहते हैं कि पायलट और उनके समर्थकों को सरकार और संगठन में भागीदार बनाया जाए। यह बात अलग है कि गहलोत इसके पक्ष में नहीं है। राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव कर गहलोत ने राहुल गांधी को खुश करने का बड़ा काम किया है। अब देखना है कि सचिन पायलट को हमारे प्रदेश में कितना महत्व मिलता है।
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि सचिन पायलट को यूपी का प्रभारी बनाया जा रहा है । कुछ समय बाद वहां चुनाव होने वाले है । इसलिए प्रियंका-गांधी चाहती है कि उनके साथ भीड़ को आकर्षित करने वाला कोई नेता हो । आज की स्थिति में कांग्रेस पार्टी में पायलट ही ऐसे एकमात्र नेता है जो भीड़ को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखते है । कांग्रेस में अन्य नेता भीड़ आकर्षित करने की क्षमता नही रखते है।यहां तक कि राहुल-सोनिया की सभा मे किराए के लोगो को बुलाना पड़ता है ।
पायलट यूपी के प्रभारी बन भी गए तो सवाल पैदा होता है कि उनका अगला भविष्य क्या होगा ? दस-पांच साल उनका भविष्य अंधकारमय नजर आता है । केंद्र में कांग्रेस कभी काबिज होगी, इसकी कल्पना करना भी बेमानी है और यूपी में कांग्रेस सत्ता की कुर्सी हासिल करेगी, इसकी संभावनाएं दिखाई नही देती है ।अगले चुनावो में राजस्थान में कांग्रेस पुनः सत्ता हासिल करेगी, इसकी संम्भावना दूर दूर तक नजर नही आती क्योंकि जनता जनार्दन एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाकर अपने लिए ऐसी ही सरकार चाहती है । लेकिन राज्य में हमारे भाजपा सांसदों द्वारा किए-कराए कामों पर लम्बे समय से
बाड़मेर जिले की रेलगाड़ियों ओर हवाई सेवाओं की मांग ने अगले लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया है।
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों में आज-कल सभी जिलों में लगभग दो दो खेमों में बंटी हुई है इसमें कोई संदेह नहीं है। बाकी राजनीतिक पार्टीयों द्वारा समय-समय पर दोनों ही पार्टियों में असंतुष्ट नेताओं के लिए अपने दरवाजे खोलकर रखें हुए हैं ताकि अपना वर्चस्व कायम रखें नहीं तो फिर बंटाधार ना हो जाए।
भाजपा में भी मुख्यमंत्री की दौड़ में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, राजेंद्र राठौड़, सतीश पूनिया ओर केन्द्र सरकार द्वारा भी कोई पेराशूट जो केन्द्र सरकार में मौजूदा हालात में भाजपा सांसद हैं और प्रमुखता से जोधपुर के मूल निवासी अश्विनी वैष्णव रेलमंत्री पहले नम्बर पर ओर कोटा से ओम बिड़ला का नाम चर्चाओं के बाजार में है। लगभग सात आठ इस सूची में शामिल हैं,कोई भी मुख्यमंत्री भाजपा नेतृत्व द्वारा बनाया जा सकता है। कुल मिलाकर अगला मुख्यमंत्री दोनों ही पार्टियों के लिए घमासान युद्ध के बाद विजेता की तरह ही होगा इसमें कोई संदेह नहीं है। कोई रूठकर कोप भवन में बेठ जाएगा तो कोई जोड़-तोड़ करके अपनी कार्यकुशलता का राजनीतिक भविष्य तय करेगा।
यदि आज चुनाव होते है तो बमुश्किल कांग्रेस पार्टी को पचास-साठ सीट भी नही मिलेगी । पुनः सवाल पैदा होता है कि पायलट का राजनीतिक भविष्य क्या होगा ? बमुश्किल अगले चुनावों में कांग्रेस पार्टी जोड़-तोड़ करके बहुमत हासिल कर भी लेती है तो पायलट का राजस्थान में मुख्यमंत्री बनना बहुत कठिन होगा । उनके सामने होंगे अशोक गहलोत जो किसी भी हालत में पायलट को राज्य का मुख्यमंत्री बनने नही देंगे ।
यह तयशुदा है कि कार्यकाल पूरा होने के बाद अशोक गहलोत एआईसीसी में महत्वपुर्ण जिम्मेदारी निभाएंगे । मौजूदा पोजिशन के हिसाब से ये सोनिया गांधी के बाद दूसरे स्थान पर रहेंगे । अब सवाल यह उत्पन्न होता है कि गहलोत दिल्ली चले जाएंगे तो फिर प्रदेश म कांग्रेस की कमान किसके हाथ मे रहेगी ?
इस कार्यकाल के बाद राजस्थान में दो स्थितियां उत्पन्न हो सकती है । कांग्रेस पुन: सत्ता में लौटे अथवा विपक्षी पार्टी बने | यद्यपि मुख्यमंत्री अगली बार भी कांग्रेस की सरकार बनने के प्रति पूर्ण रूप से आशान्वित हैं। यदि कांग्रेस पार्टी पुन: सत्ता में लौटती है तो कमान किसको सौपनी है, यह जिम्मेदारी भी अशोक गहलोत को ही निभानी होगी | संभावना है कि नई सरकार का गठन कर किसी विश्वास पात्र उत्तराधिकारी को सत्ता सौंप कर वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में केंद्रीय नेतृत्व को अगले लोकसभा आम चुनावों के लिए तैयारी करने के लिए प्रमुख रोल अदा करें |
ऐसी परिस्थिति में सवाल उठता है कि अशोक गहलोत के दिल्ली जाने के बाद आखिर कौन सा राजनेता इस जिम्मेदारी को संभालने के लिए सक्षम है | प्रदेश में मुख्यमंत्री के चयन के लिए जातिगत आधार बहुत महत्वपूर्ण है | वर्तमान में पार्टी के मुख्यमंत्री तथा प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी वर्ग से आते हैं इसलिए संभावना है कि आने वाले समय में किसी अन्य जाति समूह को यह मौका मिल सकता है । वर्तमान में कांग्रेस की प्रादेशिक राजनीति में अगर नजर दौड़ाई जाये तो ब्राह्मण ,जाट और दलितों में ही कोई संभावनाएं बनती दिखाई देती है |
वैसे मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदारों में कांग्रेस पार्टी से बुलाकी दास कल्ला, शांति धारीवाल, सीपी जोशी, सचिन पायलट, हरीश चौधरी प्रमुख हैं । माना जाता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अगले मुख्यमंत्री की पसंद बुलाकी दास कल्ला या शांति धारीवाल किसी एक में से होगी | अगर दिल्ली से गांधी परिवार की ओर से किसी ओर को नामित किया जाए तो संभावना बाड़मेर जिले के हरीश चौधरी की भी हो सकती है |
अशोक गहलोत यहां से दिल्ली जाने के बाद किसी भी सूरत में प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में सचिन पायलट को देखना नहीं चाहेंगे। हां यह बात तो है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दिल्ली चले जाने के बाद प्रदेश की राजनीति में सचिन को चुनोती देने के लिए वैभव गहलोत की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है । अशोक गहलोत जोधपुर सम्भाग से कहीं पर कांग्रेस पार्टी से मैदान मार सकते हैं ओर वैभव गहलोत को अशोक गहलोत की विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारने पर विचार किया जा रहा है।
हालांकि वैभव का मुख्यमंत्री बनना कठिन हो सकता है । लेकिन पायलट के लिए राह आसान नही होगी । एक गलती के कारण न केवल पायलट ने बल्कि अपने अठारह बीस समर्थक विधायको का राजनीतिक भविष्य अंधकारमय बना दिया है । पायलट राजनीतिक आकाओं की सभा समारोह के दौरान भीड़ एकत्रित करने में समर्थ है । लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए हाथ मे केवल झुनझुना ही आएगा । कांग्रेस पार्टी को जब भी जरूरत होती है, पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाने पर उनके समर्थकों ने बताया कि पायलट का जमकर इस्तेमाल करने के बाद आखिरकार बाहर फेंक दिया जाता है ।
– राजस्थान से राजूचारण