*प्रधानमंत्री से ध्यानचंद स्टेडियम से गृह मंत्रालय का कार्यालय हटवाने का किया अनुरोध
*मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न के सम्मान से अलंकृत करने की मांग
नई दिल्ली। राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख कर मेजर ध्यानचंद स्टेडियम से गृह मंत्रालय का कार्यालय हटवाने का अनुरोध किया गया है।मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न के सम्मान से अलंकृत करने की मांग भी की गई है।
हॉकी प्रेमी राकेश थपलियाल ने इस पत्र में लिखा, ‘आप हमारे देश के खेल प्रेमी प्रधानमंत्री हैं। आपने देश में खेलों के विकास और खिलाड़ियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इससे देश के खेलप्रेमी और खिलाड़ी सामान्य तौर पर प्रसन्न हैं और आपका आभार व्यक्त करते हैं।
महोदय, आज हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस पर आपका ध्यान उनके नाम पर स्थापित नई दिल्ली स्थित मेजर ध्यानचंद स्टेडियम को लेकर एक समस्या की तरफ दिलाना चाहता हूं।’
राकेश ने लिखा, ‘महोदय, कुछ वर्ष पूर्व आपके नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने एक कदम ऐसा उठाया जिससे मेजर ध्यानचंद की आत्मा को भी दु:ख पहुंचा होगा। हॉकी खिलाड़ी और खेलप्रेमी भी बहुत निराश है। इसकी वजह यह है कि नई दिल्ली स्थित मेजर ध्यानचंद स्टेडियम की ऐतिहासिक इमारत के मुख्य हिस्से में गृह मंत्रालय का कार्यालय खोल दिया गया है। पिछले हिस्से में पहले से ही नमामि गंगे का कार्यालय चल रहा है। सरकार के इस कदम से हॉकी ही नहीं बल्कि सामान्य खेल प्रेमियों में भी बेहद निराशा है।’
महोदय, 1995 में मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया था और स्टेडियम के मुख्यद्वार के नजदीक मेजर ध्यानचंद की आदमकद मूर्ति भी लगाई गई थी।बाद में देश के इस सबसे पुराने और ऐतिहासिक नेशनल स्टेडियम का नाम भी मेजर ध्यानचंद स्टेडियम भी रखा गया। आप भी वहां जाकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर चुके हैं।
29 अगस्त को प्रतिष्ठित राष्ट्रीय खेल पुरस्कार देने की परंपरा शुरू करने से उनके जन्मदिन की महत्ता और भी बढ़ गई। उनके नाम पर ध्यानचंद अवॉर्ड भी दिया जाने लगा।
इसमें दो राय नहीं कि भारत सरकार ने मेजर ध्यानचंद के योगदान को सम्मान देने और नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में स्थापित करने के लिए बहुत कुछ किया।
दो पूर्व खेलमंत्री श्री विजय गोयल और कर्नल राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान ध्यानचंद स्टेडियम में गृह मंत्रालय का कार्यालय का विरोध भी किया था। अब श्री किरेन रीजीजू खेल मंत्री हैं। जब वह गृह राज्य मंत्री थे तभी ध्यानचंद स्टेडियम में गृह मंत्रालय का कार्यालय खोला गया था।
कुछ वर्ष पूर्व जब श्री विजय गोयल खेल मंत्री थे तो गृह मंत्रालय का कार्यालय खोले जाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। इस बारे में मैंने उनसे बात की थी तो उन्होंने कहा था कि ‘मैं प्रयास कर रहा हूं कि ऐसा न होने पाए। ‘
श्री राठौड़ तो बहुत आशावान थे कि गृह मंत्रालय ने जो एडवांस किराया दिया हुआ है उसे वापस कर जगह खाली करा ली जाएगी। श्री गोयल और श्री राठौड़ की कोशिशों के बावजूद ऐसा नहीं हो पाया ।
राकेश ने पत्र में बताया कि, ‘कुछ माह पूर्व एक कार्यक्रम के दौरान मैंने श्री किरेन रीजीजू से पूछा था कि हमारी सरकार श्री मोदी जी के नेतृत्व में देशभर में उच्च स्तर के ट्रेंनिग सेंटर बना रही है। ऐसे में मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में गृह मंत्रालय का कार्यालय क्यों खोला गया है? इस पर खेल मंत्री ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा था, ‘हमें स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के कर्मचारियों के वेतन के लिए धनराशि की जरूरत होती है। जब मैं गृह राज्य मंत्री था तो यह तय किया गया था कि ध्यानचंद स्टेडियम में यह जगह किराए पर लेकर इसमें इस कार्यालय को खोला जाए। वैसे मैंने इस बारे में काफी लोगों से बात की थी और किसी को कोई परेशानी नहीं थी। आगे भी खिलाड़ियों को कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी।’
पत्र में राकेश ने लिखा, ‘महोदय, ध्यानचंद स्टेडियम में गृह मंत्रालय का कार्यालय होने से यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर का हॉकी टूर्नामेंट नहीं हो पा रहा है। कभी यह स्टेडियम अंतरराष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिताओं के आयोजन का गढ़ था लेकिन अब यहां ऐसा नहीं हो पा रहा है। आप देश के शीर्ष हॉकी अधिकारियों से भी इस बारे में पूछ सकते हैं।
पत्र में राकेश ने बताया है कि, मेरे मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के कार्यालय खोलने के लिए स्टेडियम क्यों तलाशे जाते हैं? एक तरफ तो खेल मंत्रालय कहता है कि खेल और खिलाड़ियों के विकास के लिए धन की कोई कमी नही होने दी जाएगी दूसरी तरफ किराए के रूप में धनराशि पाने के लिए स्टेडियमों की इमारतों को किराए पर दिया जा रहा है।
इससे खिलाड़ियों को दिक्कत होती है। इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।’
पत्र में राकेश थपलियाल ने अनुरोध किया गया कि, ‘महोदय, आपसे विनम्र अनुरोध है कि इस समस्या का हल निकाल कर इस ऐतिहासिक स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय हॉकी आयोजन की रौनक फिर से शुरू करवाने में मदद करें।
हॉकी को बढ़ावा देने में आपका योगदान हमेशा याद रखा जायेगा। हॉकी खिलाड़ी और खेलप्रेमी आपके सदैव आभारी रहेंगे।’
राकेश थपलियाल ने पत्र ने मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न के सम्मान से अलंकृत करने का भी अनुरोध करते हुए लिखा, ‘महोदय, आप जानते हैं कि एक समय था जब अंग्रेजों ने हमे गुलामी की बेड़ियों में बुरी तरह जकड़ा हुआ था। तब दुनिया भर में भारत की पहचान महात्मा गांधी, ध्यानचंद और हॉकी के खेल से होती थी। हम हॉकी में ओलंपिक चैंपियन थे। 1928 से 1980 के बीच हॉकी में हमारे आठ स्वर्ण पदक जीतने के ओलंपिक रिकॉर्ड की बराबरी कोई देश अभी तक नहीं कर सका है। हम 1975 में विश्व कप विजेता भी रहे हैं। इसके अलावा भारत के पास ध्यानचंद के रूप में हॉकी का ऐसा हीरा भी रहा जिन्होंने अपने जादुई खेल की चमक से अनेक वर्षों तक हॉकी जगत को चमत्कृत किए रखा। उन दिनों हॉकी खेलने वाला हर देश यह सपना देखता था कि काश उसके पास भी एक ध्यानचंद होता। विश्व में ध्यानचंद को बतौर खिलाड़ी जितना प्यार और सम्मान मिला उतना किसी अन्य हॉकी खिलाड़ी को नहीं मिला। वह हॉकी के बेताज बादशाह थे। मेजर ध्यानचंद के नाम पर देश-विदेश में जितनी मूर्तियां, सड़कें, और स्टेडियम हैं उतने किसी अन्य हॉकी खिलाड़ी के नाम पर नहीं मिलेंगे।
जब मेजर ध्यानचंद को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की मांग होती है तो उनके यशस्वी पुत्र पूर्व ओलंपियन अशोक कुमार को थोड़ा दु:ख भी होता है कि उनके पिता के लिए यह सम्मान मांगना पड़ रहा है, लेकिन हॉकी प्रेमी कहां मानते हैं वह तो भारत सरकार से गुहार लगाते रहते हैं और जब तक ध्यानचंद के नाम के साथ भारत रत्न का सम्मान नहीं जुड़ जाता उनका प्रयास जारी रहेगा। आपसे अनुरोध है कि इस मांग को भी जल्द से जल्द पूरा कर कृतार्थ करें।’
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