मोदी ने नहीं तोड़ी आचार संहिता, चुनाव आयोग ने दी क्लीनचिट

*प्रधानमंत्री अपनी चुनावी सभाओं के लिए मांग रहे हैं सरकारी अफसरों से जानकारी
अनूप कुमार सैनी
नई दिल्ली। चुनाव आयोग के आज के फैसले से उसकी साख को बट्टा लग चुका है। चुनाव आयोग के पीएम नरेंद्र मोदी के आदर्श चुनाव आयोग संहिता को बार बार तोड़ने के बावजूद उन्हें क्लीन चिट देने से अब लगने लगा है कि टीएन शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त रहते कड़े फैसले लेकर चुनाव आयोग की जो साख बनाई थी, वह अब पूरी तरह धूमिल हो चुकी है।
अब लगने लगा है कि भारत का चुनाव आयोग सही फैसले लेने में सक्षम नहीं रहा। लोग सवाल पूछने लगे हैं कि क्या चुनाव आयोग पीएम नरेंद्र मोदी से खौफजदा है। क्या चुनाव आयुक्तों को इस बात का डर है कि अगर पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ उन्होंने आदर्श चुनाव आचार संहिता का दोषी करार दे दिया तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे?
ध्यान रहे कि चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन मामले में मंगलवार को क्लिनचिट दे दी है। चुनाव आयोग ने कहा कि पीएम मोदी ने आचार संहिता का उल्लंघन नहीं किया है। यही कारण है कि पीएम के हौंसले बढ़ गए हैं। यही कारण है कि लगभग हर दिन वे आदर्श चुनाव संहिता की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
बता दें कि कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर शिकायत की थी। सुष्मिता देव ने अपनी याचिका में पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा अपनी सभाओं में आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन की अनेक घटनाओं को सूचीबद्ध किया है। सुष्मिता देव ने कहा कि मोदी ने 1 अप्रैल को महाराष्ट्र के वर्धा में अपने भाषण में पहली बार संहिता का उल्लंघन किया था, जहां उन्होंने कथित रूप से भगवा आतंकवाद का मुद्दा उठाया था।
इनके अलावा स्क्रोल वेबसाइट पर शोएब दनियाल की रिपोर्ट से तो कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। अगर इस रिपोर्ट से जो तथ्य उजागर किए गए हैं, अगर वे सही साबित हैं तो प्रधानमंत्री मोदी की उम्मीदवारी रद्द होनी लाजिमी है क्योंकि ऐसे ही आरोपों के चलते एक बार पहले वर्ष 1975 में इन्दिरा गांधी की उम्मीदवारी को चुनाव आयोग रद्द कर चुका है।
शोएब की रिपोर्ट बताती है कि नीति आयोग प्रधानमंत्री कार्यालय को सूचनाएं उपलब्ध करवा रहा है ताकि वे उनका इस्तेमाल अपनी चुनावी सभाओं में कर सके। शोएब ने मय प्रमाण अपनी रिपोर्ट लिखी है। इसके लिए उस ईमेल को देखा है और हासिल किया है जिसे नीति आयोग के इकोनोमिक अफसर पिंकू कपूर की तरफ से भेजा गया है। उस ईमेल में उन जगहों की जानकारी मांगी गई है, जहां प्रधानमंत्री रैली करने वाले हैं।
केंद्र शासित प्रदेश के एक मुख्य सचिव को यह ईमेल भेजा गया है और 9 अप्रैल को दोपहर 2 बजे तक जानकारी मांगी गई है। 8 अप्रैल को भेजी गई इस ईमेल में कहा गया है कि एक पूरा राइट अप भेजा जाए, जिसमें उस जगह का इतिहास, स्थानीय नायक, संस्कृति, धर्म के बारे में जानकारी हो. पर्यटन, खेती, रोज़गार और आजीविका से संबंधित जानकारी हो. दिल्ली और पुड्डूचेरी के मुख्य सचिव, चंडीगढ़ के प्रशासक के सलाहकार को ईमेल भेजी गई थी।
एनडीटीवी के रविश कुमार के मुताबिक आचार संहिता लागू होने के बाद भी प्रधानमंत्री अपनी चुनावी सभाओं के लिए सरकारी अफसरों से जानकारी मांग रहे हैं। यह आचार संहिता का उल्लंघन हो सकता है। सिर्फ पिंकू कपूर का ईमेल ही नहीं, स्क्रॉल के शोएब दानियल ने एक और जानकारी हासिल की है। प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से बीजेपी शासित महाराष्ट्र के कलक्टरों से उन जगहों की जानकारी मांगी गई है, जहां उनकी रैली होने वाली थी।
पिंकी कपूर ने इंकार किया है। स्क्रॉल ने इसी तरह के और भी दस्तावेज़ हासिल किए हैं, जो बीजेपी शासित महाराष्ट्र के कलेक्टरों को भेजे गए थे। 31 मार्च को गोंदिया की कलेक्टर कांदबिरी बलकावड़े ने नीति आयोग को एक नोट भी भेजा है। ईमेल का सब्सेजक्ट है ‘Write UP/information For Gondia District for Prime Minister’s Office. इसमें गोंदिया का संक्षिप्त इतिहास, आंकड़े, आबादी की प्रोफाइल सहित कई सूचनाएं हैं। लातूर के कलेक्टर ने भी इतिहास, धर्म और पर्यटक स्थल की जानकारी भेजी गई है। वर्धा ज़िले के बारे में भी इस तरह की जानकारी तैयार की गई थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने 1 अप्रैल को वर्धा में, गोंदिया में 3 अप्रैल और लातूर में 9 अप्रैल को रैली की थी. शोएब ने महाराष्ट्र के अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी से जवाब मांगा था. उन्होंने इस तरह से सूचना मांगे जाने से इंकार किया है। इस संबंध में स्क्रॉल के शोएब दनियाल से भी बात की है, क्योंकि अगर यह स्टोरी जांच में साबित होती है तो इसके परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं।
नैतिक रूप से भी कि आचार संहिता लागू होने के बाद प्रधानमंत्री सरकारी तंत्र का इस्तमाल कर रहे हैं और दूसरा इसी तरह के एक केस में जून 1975 में इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी।
अगर सरकारी अधिकारी जिन पर जिम्मेदारी होती है कि वे निष्पक्ष चुनाव कराएं, वो अगर चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री के भाषण के लिए जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं तो इसका एक ही मतलब है कि वे अपना काम छोड़ कर उनकी मदद कर रहे हैं। 1 अप्रैल को गोंदिया की रैली के भाषण में जो स्थानीय जानकारी है, उसका ईमेल में भेजी गई जानकारी से मिलान किया जा सकता है। अगर मिल जाता है तब तो यह और भी गंभीर मामला हो जाता है।
पीएम नरेंद्र मोदी ने तो केन्द्र शासित प्रदेशों के
पुलवामा और ऑपरेशन बालाकोट के नाम पर पहली बार वोट डालने जा रहे वोटरों से अपील करने वाले बयान को लेकर अब विपक्ष भी पूछने लगा है कि कार्रवाई में देरी क्यों हो रही है जबकि यही आयोग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मोदी की सेना कहने पर सज़ा दे चुका है और चेतावनी भी कि सेना का चुनाव प्रचार में इस्तेमाल न करें।
चुनाव आयोग 9 अप्रैल के लातूर वाले भाषण पर अभी तक कार्रवाई नहीं कर पाया. स्क्रॉल ने तो ईमेल की तस्वीर भी छाप दी है। क्या चुनाव आयोग इस पर भी कार्रवाई करने या व्यवस्था देने में महीना लगा देगा ताकि चुनाव बीत जाए? चुनाव आयोग से सख्त सवाल पूछे जाने की ज़रूरत है।
ऐसी खबरें आपको आपके हिन्दी अखबारों में नहीं मिलेंगी। इसके लिए पत्रकारिता करनी होती है और साहस की भी ज़रूरत होती है। उधर बंगाल से ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री की रैलियों पर इतना ख़र्च कहां से हो रहा है? ममता ने कहा है कि अगर चुनाव आयोग दूसरों से चुनावी खर्चे का हिसाब मांग सकता है तो प्रधानमंत्री से क्यों नहीं? आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने भी चुनाव आयोग से लिखित शिकायत की है।
वाराणसी में हुए रोड शो के दौरान खर्चे को लेकर कई सवाल उठाए गए हैं. प्रधानमंत्री स्टार प्रचारक हैं इसलिए उनके खर्चे का हिसाब पार्टी के खाते में होता है। जिसकी सीमा तो नहीं होती मगर उसका हिसाब रखना पड़ता है और देना पड़ता है।
जनप्रतिनिधित्व एक्ट 1951 के सेक्शन 77 (1) के तहत अगर नेता स्टार प्रचारक हैं और अपने क्षेत्र से बाहर रैली का हिस्सा हैं तो उन्हें खर्चे का हिसाब देने से छूट है। अगर नेता किसी क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, तब फिर उन्हें छूट का लाभ नहीं मिलेगा।
चुनाव आयोग के निर्देशों के हिसाब से स्टार प्रचारक का अपनी लोकसभा में किया गया खर्च उम्मीदवारी के खर्च में शामिल होता है। एक बात यह भी आई कि प्रधानमंत्री ने अपना रोड शो नामांकन से पहले किया है। इसलिए उसका खर्च 75 लाख की खर्च सीमा में नहीं जोड़ा जाएगा. तो क्या प्रधानमंत्री ने नियमों का लाभ उठाया और पहले रैली कर ली, जिससे उसमें हुए खर्च का कोई हिसाब नहीं जुड़े। नियम क्या है।

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