लखनऊ- गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी को समर्थन का ऐलान करते ही बसपा कार्यकर्ता अपने कैडर को एक्टिव करने में जुट गए हैं. दरअसल बसपा का वोट सपा उम्मीदवार के पक्ष में पड़े यह किसी चुनौती से कम नहीं है. बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा बीजेपी को रोकने और राज्यसभा सीट की एवज में सपा प्रत्याशी को समर्थन देने के ऐलान के बाद बसपा कार्यकर्ताओं को आदेश मिला है कि वे मतदाताओं को सपा प्रत्याशी के पक्ष में वोट डलवाने के लिए जुट जाएं.इलाहाबाद के जोनल कोऑर्डिनेटर अशोक गौतम कहते हैं कि बसपा कार्यकर्ताओं को बहनजी के आदेश को बता दिया गया है. अब कार्यकर्ता पार्टी के मतदाताओं तक बहनजी का आदेश पहुंचाने में जुट गए हैं. हालांकि अशोक गौतम दावा करते हैं कि फिजा अब सपा प्रत्याशी के पक्ष में बन चुकी है और बसपा के सहयोग से जीत सुनिश्चित है.
गौरतलब है कि बसपा और सपा का वोटर एक दूसरे का विरोधी रहा है. ऐसे में कार्यकर्ताओं के लिए भी एक चुनौती है कि वे इतने कम समय में मतदाताओं तक यह संदेश पहुंचा सकें कि उपचुनाव में वोट साइकिल पर ही करना है.गौतम कहते हैं कि कार्यकर्ता बहनजी के संदेश को लेकर घर-घर जा रहे हैं. जो भी आदेश मिला है उससे उन्हें अवगत कराया जा रहा है.दूसरी तरफ बसपा के वरिष्ठ नेता ठाकुर उम्मेद सिंह का कहना है कि 1993 में जो हुआ था वही एक बार फिर होने जा रहा है. सपा-बसपा के साथ आने से राम लहर में भी बीजेपी सत्ता से दूर हो गई थी. एक बार फिर वही स्थिति होने जा रही है. उम्मेद सिंह ने दावा किया कि फूलपुर में बीजेपी तो रेस से बाहर हो ही गई है. लेकिन योगी की गोरखपुर सीट भी बीजेपी के झोली से खिसक रही है. उन्होंने कहा कि 14 मार्च को सबसे चौंकाने वाला नतीजा गोरखपुर से ही देखने को मिलेगा.2014 में सपा-बसपा को मिले थे करीब 38 फीसदी वोट2014 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो दोनों ही सीटों पर बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की थी. 2014 में बीजेपी को गोरखपुर में 51.8 फ़ीसदी वोट मिला था. जबकि सपा को 21.7 फीसदी और बसपा को 16.9 फ़ीसदी वोट मिले थे. अगर सपा और बसपा के वोट प्रतिशत को मिला लिया जाए तो 38.6 फ़ीसदी ही वोट होते हैं. वहीं फूलपुर में 2014 में बीजेपी को 52.4 फीसदी वोट मिले थे. सपा को 20.3 और बसपा को 17 प्रतिशत वोट मिले थे. यहां भी दोनों का वोट शेयर 37.3 फीसदी ही होता है. इस लिहाज से भी बीजेपी का पलड़ा भारी लग रहा है.राजनैतिक जानकार मानते हैं कि दोनों के हाथ मिलाने से सियासी समीकरण बदले जरुर हैं, लेकिन दोनों ही पार्टी के परंपरागत वोटरों में असमंजस की स्थिति है. खासकर बसपा के दलित मतदाताओं में असमंजस की स्थिति बनी रहेगी. ऐसे में अगर दलित मतदाता छिटक कर बीजेपी के पाले में चला गया तो सपा के लिए मुश्किल हो सकती है.अगर फूलपुर लोकसभा सीट की बात करें तो बसपा के सपा से हाथ मिलाने के बाद इस सीट का चुनावी गणित गड़बड़ा गया है. पटेल बाहुल्य इस सीट पर भले ही बसपा का साथ मिलने के बाद सपा को ऩई उम्मीदें जगी हो, लेकिन सपा के लिए पिछड़ा, दलित और मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाना आसान नहीं होगा. क्योंकि फूलपुर लोकसभा सीट पर साढे़ पांच लाख से ज्यादा दलित मतदाता हैं. बदले राजनीति हालातों में बसपा का सपा को समर्थन पर दलित अभी असमंजस की स्थिति में है. वहीं सपा के लिए मुस्लिम वोटों में बाहुबली अतीक अहमद की सेंधमारी सबसे बड़ी मुश्किल है.
रिपोर्ट-देवेन्द्र प्रताप सिंह कुशवाहा