हरिद्वार सीट पर कांग्रेस का प्रदर्शन: पार्टी जीती तो ज़िले में हरीश रावत के प्रभाव के अंत की होगी शुरुआत

रुड़की/हरिद्वार- हरिद्वार सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी रहे अम्बरीष कुमार के समर्थकों का दावा है कि इस बार पार्टी यह सीट जीत रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह का खेमा हरजीत पर टिप्पणी करने से बच रहा है। प्रदेश उपाध्यक्ष डा. संजय पालीवाल सहित इस खेमे के लोग इस बाबत कुछ बताते नहीं बल्कि पूछते हैं। उनका सवाल होता है “हमारे प्रत्याशी की स्थिति कैसी है?’ लेकिन हरीश रावत खेमे के लोग साफ़-साफ़ कह रहे हैं कि “कांग्रेस के जीतने का सवाल ही नहीं है।”

हरीश रावत ने हरिद्वार सीट पर चुनाव न लड़ने का फैसला किया। इसके पीछे कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन यह हकीकत है। बहरहाल, इतने से यह साबित नहीं हो जाता कि यहाँ रावत के लोग नहीं हैं। हकीकत यह है कि सजातीय हिन्दू-मुस्लिम ठाकुरों के अलावा यहाँ उनके समर्थक हर वर्ग में मौजूद हैं। स्थानीय प्रत्याशी की मुहिम चलाने वाले लोगों में मैं अव्वल था इसलिये इस बात को मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता कि कौन-कौन मुझसे इसी कारण नाराज़ है। अभी उस दिन एक मुस्लिम अधिकारी ने मुझे फोन करके पूछा “किसकी सम्भावना है?” मैंने कह दिया “कांग्रेस जीत सकती है।” वे नाराज़ हो गए। दरअसल, वे हरीश रावत के समर्थक हैं। ऐसे बहुत अधिकारी व कर्मचारी हैं। इनमें कुमाऊं के गैर-ठाकुर अधिकारी भी शामिल हैं और ठाकुर तो बलिया का भी रावत का समर्थक रहा है। मुस्लिम ठाकुर धर्म की वर्जना तोड़कर रावत के समर्थक रहे हैं और अब भी हैं। स्थानीय में दर्जनों ठाकुर मेरे मित्र हैं और सभी रावत के समर्थक हैं। मुस्लिम समुदाय की हर बिरादरी में उनके समर्थक हैं। दलितों में रावत समर्थकों पर आम आरोप है कि उन्होंने अम्बरीष कुमार के लिए काम नहीं किया। यही मुस्लिम नेताओं पर है। ठाकुरों से तो खैर उम्मीद ही कांग्रेस को कुछ नहीं थी। इसलिये उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया जो अप्रत्याशित हो। अब सवाल यह है कि अगर यहाँ कांग्रेस को जीत हासिल हुई तो क्या होगा?

फिलहाल तक जो हालात दिख रहे हैं वे ये हैं कि अम्बरीष कुमार खामोश हैं। लेकिन यह भी हकीकत है कि वे खामोश रहने वाले आदमी नहीं हैं। यह बेवजह नहीं कि उनके 40 साल के कैरियर में उन्हें कांग्रेस ने पहली बार 2017 में अपना विधानसभा टिकट दिया था और अब 2019 में पहली बार लोकसभा टिकट दिया है। अम्बरीष कुमार घाघ सियासतदां हैं और हरीश रावत से कहीं अधिक मजबूत धर्मनिरपेक्ष सोच व संघर्ष का माद्दा रखते हैं। यह तय है वे चुनाव जीते तो अपनी स्वतंत्र राजनीति को परवान चढाने का कोई मौक़ा वे भी नहीं चूकेंगे। इससे हरीश रावत के प्रभाव पर क्या असर पड़ेगा यह देखने वाली बात होगी।

– रूडकी से इरफान अहमद की रिपोर्ट

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