सूर्योपासना के पर्व डाला छठ को लेकर अर्घ्य देने की तैयारियां अब अंतिम चरण में

आजमगढ़- आजमगढ़ में सूर्योपासना के पर्व डाला छठ को लेकर अर्घ्य देने की तैयारियां अब अंतिम चरण में हैं। नदी, नहर, तालाब, पोखरे स्थानों पर वेदी बनाने का काम पूरा कर लिया गया है। नदी किनारों घाटों पर विशेष तैयारियां की गयीं है। छठ मईया, सूर्य भगवान समेत अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। वहीं फल मंडियों में भारी महंगाई के बाद भी आस्था भारी है। भारी भीड़ खरीदारी को उमड़ी है। चार दिवसीय डाला छठ पूजा के कल रविवार जहाँ नहाय खाय से व्रत शुरू किया वहीं आज सोमवार को दूसरे दिन आजमगढ़ जनपद में व्रती महिलाओं ने परम्परागत रूप से खरना प्रथा का पालन किया। मंगलवार शाम अस्ताचल गामी भगवान भाष्कर को अर्घ्य के लिए तैयारियों में लोग लगे रहे। बाज़ारों में जाकर महिलाओं ने फलों, बांस की टोकरी व पूजन सामग्री की खरीदारी की। भीषण महंगाई के बाद भी खरीदारी हुई। दिन में घर पर ही ठेकुआ आदि बनाने के लिए तैयारी हुई। स्थानीय लोगों के साथ ही व्रती महिलाओं ने व्रत की तैयारियों के बारे में जानकारी दी। नगर पंचायत अतरौलिया में स्थित पूरब के पोखरे पर डाला छठ पर्व को लेकर जोरों से तैयारी चल रही है वहीं पोखरे की साफ सफाई कराकर पोखरे में पानी भरा जा चुका है और लोगों ने पोखरे के किनारों पर वेदी बनाकर अपना अपना नाम अंकित कर दिया है। बाजार में तरह तरह के फल की दुकानें सजी गई हैं जहां एक तरफ महिलाएं व्रत उपवास रखती हैं वह घर घर की साफ-सफाई कभी बड़ा ध्यान देती हैं। व्रत के बाद इतनी कड़ाके की ठंड में पानी में सूर्य देव के उदय होने का इंतजार करना पड़ता है और सूर्य देवता का दर्शन करके अधॅ देती हैं कल दिन मंगलवार छोटी माता तथा बुधवार को बड़ी छठ माता की पूजा अर्चना की जाएगी छठ पूजा की तैयारी पूरे जोरों शोरों पर हो चुकी है। चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी, नहाय खाय, के रूप में मनाया जाता है। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है। चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं। छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है।

रिपोर्ट-:राकेश वर्मा आजमगढ़

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

किसी भी समाचार से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है।समाचार का पूर्ण उत्तरदायित्व लेखक का ही होगा। विवाद की स्थिति में न्याय क्षेत्र बरेली होगा।