शैक्षिक योग्यता के आभाव में पत्रकारिता की हो रही है दुर्दशा- जेसीआई

*पत्रकारों के लिए शैक्षिक योग्यता हो निर्धारित

कलम की ताकत से ही देश की आजादी में पत्रकारिता की अहम भूमिका रही थी। कभी पत्रकारिता बुद्धजीवियो का वर्ग थी।देश के संविधान मे अनुच्छेद 19 (क)अभिव्यक्त की आजादी जो देश के हर नागरिक का मौलिक अधिकार है।इसी अधिकार के चलते लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात करने का अधिकार है और यही अधिकार हमे भारतीय प्रेस कानून मे भी प्राप्त है किन्तु संविधान निर्माताओ ने उस समय पत्रकारिता के लिए शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता को नहीं समझा। शायद इसीलिए कि उस समय बुद्धिजीवी वर्ग ही इस क्षेत्र मे था और वह अपने कर्तव्यों को जानता था कि उसकी लेखनी का समाज पर क्या प्रभाव पडेगा। किन्तु आज बहुत से लोग ऐसे भी पत्रकारिता के क्षेत्र में देखे जा सकते है जिनकी शैक्षिक योग्यता नगण्य है।वह अपने वाहन पर प्रेस लिखकर धडल्ले से घूम कर पत्रकारिता की छवि को धूमिल कर रहे है। यही कारण है कि आज सच्चा कलमकार अपने आपको असहज महसूस कर रहा है ।यह बात जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंड़िया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने एक बैठक के दौरान कही। उन्होंने कहा कि आज शैक्षिक योग्यता के आभाव के कारण ही पत्रकारिता की दुर्दशा हो रही है।
संगठन के राष्ट्रीय सचिव दानिश जमाल ने कहा कि अब पत्रकारों के संगठनो को भी एकजुट होना चाहिए और इसपर विचार करना चाहिए। आज ऐसे लोगो के चलते ही पत्रकारिता का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। पत्रकार कपिल यादव ने कहा कि पत्रकारिता के दौर में आज ऐसे पत्रकारों की लंबी लंबी कतार लगी है जिनका पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं है उनको पत्रकारिता का एक अक्षर नहीं आता है। वह लोग पत्रकार बने घूम रहे हैं जिससे पत्रकारिता की छवि को धूमिल हो रही है और लोगों को पत्रकारों से भरोसा उठ गया है। अब आये दिन समाचार पत्रो मे खबरें छपती है। ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है। इसलिए पत्रकारिता मे शैक्षिक योग्यता अनिवार्य करना चाहिए और संस्थानों को पत्रकार बनाने से पहले लोगों की शिक्षा के बारे में व समाज में उनकी क्या छवि है यह जानकर ही पत्रकार बनाने चाहिए।
पत्रकार सौरभ पाठक ने कहा कि पत्रकारिता लोकतंत्र की चौथी संपत्ति है, जो बेजुबान लोगों की आवाज़ के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस बजह से समाज में पत्रकारिता का महत्व काफी बढ़ गया है। इसलिए उसके सामाजिक और व्यावसायिक उद्देश्य भी बढ गए हैं।विज्ञापनों से होने वाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को काफी हद तक व्यावसायिक बना दिया है। मीडिया का लक्ष्य आज अधिक से अधिक कमाई का हो चला है। मीडिया के इसी व्यावसायिक दृष्टिकोण का नतीजा है कि उसका ध्यान सामाजिक सरोकारों से कहीं भटक गया है।नई मीडिया जगत में छोटे क्षेत्रीय अखबारों व पोर्टल चैनल बालों ने योग्यता के आधार को समाप्त कर दिया है जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक भी कोई लेना देना नही उनको पत्रकारिता का एक अक्षर तक नही पड़ा उन्हें थोड़े से पैसों के लालच में माईक आईडी और आई कार्ड थमा देते है वह अपनी कमाई के चक्कर मे लोगों को ब्लैक मेल करते है इस वजह स्व लोगों का भरोसा पत्रकारों पर से उठने लगा है अब आये दिन अखबारों में खबरें छपती है कि वह पत्रकार किसी को ब्लैकमेल कर रहा था उस थाने में उसके खिलाफ मामला दर्ज हुआ है।ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है।

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