विश्व का बड़ा बाजार, भारत- फिर भी!

यदि हम अपने देश भारत की आ

र्थिक स्थिति पर चिंतन करें तो पाएंगे कि भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार के रुप में स्थापित है, फिर भी प्रश्न उठ खड़ा हो रहा है कि हमारे देश की जीडीपी की सुई मात्र 7 से 8 प्रतिशत पर ही क्यों अटकी हुई है। इस प्रश्न पर प्रत्येक भारतवासी को मनन करना चाहिए। सबसे पहले भारत की तुलना अन्य देशों के साथ करने पर ज्ञात हो जाता है कि कुल 87 यूरोपियन देशों के साथ अमेरिका की कुल आबादी 33 करोड़ को मिलाकर भारत की जनसंख्या है, यानि कुल ;लगभगद्ध 135 करोड़। इसलिए अन्य देशों के उद्योगों की नजर भारत के बाजार पर अटकी रहती है। 2014 में जब नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभाला तो पहले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की घोषणा करते हुए देश के औद्योगिक विकास की ओर वृहद कदम बढ़ाया। अब अध्ययन करते हैं 2014 से 2019 के बीच का समय पर। तो आप पाएंगे कि 2019 से पूर्व हमारे देश में इलेक्ट्राॅनिक, मेडिकल उपकरण, दवाईयां, टैक्सटाईल्स, शूज व आॅटोमोबाईल्स आदि का भारी मात्रा में आयात होता आ रहा था। 2019 से पूर्व भारत के लिए सबसे निर्यातक देशों में चीन, ताईवान व कोरिया की गिनती होती रही थी, परन्तु 2019 के बाद भारतीय औद्योगिक जगत ने राह पकड़ी और कोरिया व ताईवान से भारत के आयात घटा तो उधर चीन की विस्तावादी और दादागिरी की नीति ने भारत सरकार की कूटनीति चाल ने चीन की एकधिकार को समाप्त करने का सफल प्रयास करते हुए विश्व पटल पर प्रमुख स्थान बना रहा है। जहां चीन, कोरिया व ताईवान जैसे देश इलेक्ट्राॅनिक, मेडिकल उपकरण, दवाईयां, शूज व आॅटोमोबाईल्स उद्योग भारत को उपकरणों का निर्यात करते थे, शनैः-शनैः स्थिति बदली तो इन उद्योगों को कलपूर्जो का निर्यात करने लगे जबकि कलपूर्जो से उपकरण एसम्बेल भारत में होने लगा। यदि बात करें टैक्सटाईल्स की तो आज भी भारत को बांग्लादेश से मुकाबला करना पड़ रहा है। हाल के वर्षो 2020 में विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 ने प्रत्येक राष्ट्र को प्रभावित करते हुए बड़े संख्या में मौतें हुई, परन्तु इस कोविड-19 की विश्व के किसी भी देश के पास नहीं कोई दवा नहीं थी, फिर भी सर्वप्रथम भारत ने दवा तो नहीं अविष्कार कर पाया लेकिन कोविड-19 को रोकने के लिए वैक्सीन तैयार अवश्य कर ली, इस वैक्सीन के लिए कच्चा माल अमेरिका से आयात करना पड़ रहा था, सो अमेरिका ने अपनी आदत के अनुसार दादागिरी दिखायी, इस क्रम मंे अमेरिकन कम्पनी फाइजर ने भी वैक्सीन का अविष्कार कर लिया। प्रत्येक व्यक्ति को दो डोज लगनी थी, चूंकि उसकी नजर भारत के बाजार पर थी, क्यांेकि भारत में 270 करोड़ डोज का मार्केट तैयार था। बिजनेस मार्केटिंग पाॅलिसी के अनुसार भारत से उसका सबसे बड़ा खरीदार साबित होता, फाइजर ने अपनी डोज की कीमत रखी अब आप स्वयं विचार करें कि 4500 प्रति डोज के अनुसार इस प्रकार 270 करोड़ डोज का मार्केट कितना बड़ा हो सकता था। अब बात करते हैं भारत की जनसंख्या के अनुसार भारत की जीडीपी की। हमारा देश आजादी के बाद से ही जीडापी के स्कोर को प्राप्त करने के लिए जुटा हुआ है। अब आप कहें कि 1947 में तो भारत की आबादी मात्र 30 करोड़ थी, तो अन्य देशों की आबादी भी तो उसकी अनुपात में रही होगी। उस समय भारत में अप्रतिव्यक्ति प्रति व्यक्ति आय ;चमत बंचपजं पदबवउमद्ध 330.21 आंकी गई थी। अब बात की जाये प्राकृतिक संसाधनों की तो आप स्वयं ही आंकलन कर लें कि भारत के साथ प्रकृति ने हमेशा से ही पक्षपात किया है और विश्व के सभी देशों के मुकाबले सबसे अधिक प्राकृतिक संसाधन भारत में ही उपलब्ध रहे हैं। जहां तक प्रश्न है भारत की समृ(ि का तो भारत हमेशा से ही ‘सोने की चिड़िया’ कहलाता आया था, इसीलिए लगभग 1200 साल पूर्व से विदेशी आंक्राताओं ने भारत पर आक्रमण करते हुए खुले हाथों से लुटा। बात कर रहे थे कि भारत की जीडीपी की तो भारत की जीडीपी आज भी कम नहीं है, लेकिन कमी है तो केवल आंकड़ों में और नीति व नियमों में। भारत में प्रारम्भ से नीतियां जो बनायी जा रही है, उसका आधार 1947 अथवा 1860 से लिया गया। क्योंकि हमारे संविधान का आधार भी 1860 का ही है। यह मैं नहीं कह रहा बल्कि हमारे संविधान की विभिन्न अनुच्छेद एवं अधिनियम स्वयं में कह रहे हैं। साथ ही हम यह भी कहना चाह रहे हैं कि हमारे नीति निर्माताओं के साथ बनने वाली नीतियों का आधार भी सोच भी पुरानी ही जाती है। हम तो बस यही कहना चाह रहे हैं कि हमारे देश की जीडीपी के आंकलन का आधार भी पुराना ही है। नीति निर्मातागण धरातल पर स्थिति का आंकलन नहीं कर पा रहे हैं, जो आंकलन हो रहा है वह पुरानी सोच और कार्यशैली पर हो रहा है। कहने और लिखने के लिए बहुत से बिन्दु हैं, लेकिन हम यह दावे के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश की जीडीपी आज भी कम नहीं है परन्तु उसको गणना व अध्ययन के लिए नये सिरे से और नई सोच के साथ करनी होगी। साथ सबसे अधिक जरुरत इस बात की भी है कि देश के आमजन में ‘टैक्सेशन सेंस’ पैदा करना होगा, और साथ ही और अधिक ‘खुदरा बाजार को संगठित क्षेत्र’ में शामिल करने की आवश्यकता है। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस समय बाजार की मंदी का रोना रोने वाले को यह सोचना होगा कि यदि व्यापार और बाजार में मंदी का दौर अभी समाप्त नहीं हुआ है कि तो अध्ययन यह भी करना चाहिए कि विभिन्न कम्पनियों के लग्जरी वस्तुओं एवं वाहनों की खरीदारी-बिक्री प्रभावित क्यों नहीं हो रही है बल्कि चार पहिया वाहनों के क्षेत्र में अब ऐसा दौर भी आ गया है कि कम्पनी की कुल निर्मित वाहनों की संख्या की साक्षेप में बाजार में मांग अधिक हैं। साथ ही यह भी देखना होगा कि सस्ते चार पहिये वाहनों की मांग में लगातार कमी आ रही है जबकि महंगे वाहनों की मांग लगातार बढ़ रही है। विचार करने वाले प्रश्न यह भी है कि लग्जरी वस्तुओं के साथ महंगे वाहनों की खरीद के साक्षेप में आयकर दाताओं की संख्या में अपेक्षित वृ(ि नहीं हो पा रही है। अतः हमारा मानना है कि सरकार को देश की आम जनता में ‘टैक्सेशन सेंस’ पैदा करने के लिए अपने कानून व्यवस्था के साथ विभागीय सोच में परिवर्तन लाना होगा। और आम जनता के साथ विभागीय अधिकारियों में भी देश के प्रति जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के प्रयास करने होंगे।

पराग सिंहल

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