बरेली। ये जो मासूम बच्चो की तस्वीर देख रहे हैं ये सड़क पर ऐसे ही नही घूम रहे है। ये बच्चे दिन भर धूप में सड़क के आसपास लगे कूड़े के ढेर में लोहा प्लास्टिक बीन रहे है। लोहा प्लास्टिक को बेचकर रोटी का जुगाड़ कर रहे है। लॉकडाउन से शहर से लेकर देहात तक में रोजी-रोटी का संकट आ गया है। ऐसे में लोगों ने अब सड़कों के आसपास लगे कूड़े के ढेर पर तमाम मासूम लोहा प्लास्टिक बीनकर अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़ में लगे रहते हैं। सरकार बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए सर्व शिक्षा अभियान व अन्य योजनाओं को चला रही है। फिर भी हर जगह बाल मजदूर व गंदगी के ढेर से कूड़ा एकत्र करते बच्चे आम मिल जाते है। कहने को तो सर्व शिक्षा अभियान का खूब जोर है। यहां पर सरकार द्वारा निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था भी की गई है फिर भी भविष्य रहने वाले कई बच्चों के हाथों में किताबों की बजाय रोजी रोटी कमाने की जिम्मेदारी है। शहर में तमाम बच्चे सुबह-सुबह कूड़े के ढेर से रोटी तलाशते हुए मिल जाते है। पूछने पर पांच वर्ष के सूरज ने कहा कि बाबूजी स्कूल जाने को तो दिल करता है पर पढ़ाई से पहले रोटी जरूरी है। कुछ करेंगे नहीं तो खाना नसीब नहीं होगा। सूरज के साथ महज चार साल का उसका भाई लड्डू भी कूड़े के ढेर में रोटी तलाश से देखा जा सकता है। सही बात पहले वे दोनों भाई स्कूल जाते थे। चौपुला के रहने वाले सूरज के पिता वेदपाल चाय का ठेला लगाते थे। तब वे दोनों भाई स्कूल जाते थे। लॉकडाउन के बाद से उनके पिता के हाथ से रोजगार छिन गया। घर में भुखमरी की नौबत आ गई। अब दोनों मासूम दिन भर कूड़े के ढेर से लोहा प्लास्टिक आदि बीनकर सौ रुपये तक की रोज की कमाई कर लेते है। सूरज ने बताया कि अब पापा फिर से चाय का ठेला लगाना चाहते है। मगर लॉकडाउन में खेला बेचना पड़ गया। अब ठेला खरीदने लायक पैसे भी नहीं है।।
बरेली से कपिल यादव