रोजगार गारंटी योजना बनी सरपंच सचिव और अधिकारियों की कमाई और भ्रष्टाचार गारंटी योजना

*मनरेगा के निर्माण कार्यों में दहाड़ रही जेसीबी मशीनें अपने हक के इंतजार में मजदूर पलायन करने हो रहे अब मजबूर
मध्यप्रदेश/ तेन्दूखेड़ा- शिवराज सरकार के निर्देशों के बाद भी ग्राम पंचायतों के नुमाइंदे अपनी मनमानी पर उतारू है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा मनरेगा के कार्य मशीनों से ना कराए जाने के निर्देश देते हुए मजदूरों को रोजगार गांव में ही उपलब्ध कराए जाने के साफ निर्देश दिए थे लेकिन जनपद के सरकारी दफ्तरों के अधिकारियों की मिलीभगत और कमीशनखोरी के चलते ग्राम पंचायतों में रोजगार गारंटी योजना अंतर्गत मनरेगा के कार्यों में जेसीबी मशीनों का कब्जा नजर आ रहा है और जनपद के जिम्मेदार अफसर कार्रवाई ना करते हुए अपने कमीशन में मुख्यमंत्री के निर्देशों की धज्जियां उड़ाने में लगे हुए हैं
*ग्राम पंचायत पतलोनी और महगुवांखुर्द में मशीनों से काम*
शासन की गारंटी योजना में निर्माण कार्यों में मस्टर पर मजदूर कार्य करते दिखाये जा रहे हैं लेकिन जबकि हकीकत कुछ और ही मामला तेन्दूखेड़ा जनपद पंचायत के अंतर्गत आने ग्राम पंचायत पतलोनी और महगुवांखुर्द ग्राम पंचायत का है जहां पर प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के लिए यह निर्माण कार्यों को कराया गया था लेकिन इन दोनों पंचायतों में मजदूरों की जगह पर जेसीबी मशीनों से सभी काम कराए गए हैं जिसमें परकोलेशन टेकों का निर्माण कार्य कराया गया है लेकिन इन कामों में मस्टर पर तो मजदूर है लेकिन हकीकत कुछ और ही है हकीकत यह है कि ग्राम पंचायत पतलोनी में परकोलेशन टेक बनाया गया है जिसमें मजदूरों से काम नहीं कराया गया है बल्कि जेसीबी मशीन से किया गया है जिसकी पुष्टि वहां के रोजगार सहायक सचिव ने फोन पर की है जब इस संबंध में पतलोनी के रोजगार सहायक सचिव से बात की गई तो उसने खुद ही कहा है कि जेसीबी मशीन से एक दिन काम किया था लेकिन वहां के कुछ लोगों से जानकारी ली गई तो लोगो ने बताया कि यह पर रात के समय में मशीन से यह कार्य कराया गया है इसी तरह ग्राम पंचायत महगुवांखुर्द की ग्राम सरवा कुही में भी परकोलेशन टेक बनाया गया है जहां पर भी मजदूरों की जगह जेसीबी मशीनों से यह कार्य कराया गया है लेकिन इसकी जानकारी जनपद पंचायत के सभी अधिकारियों को पहले से ही है लेकिन क्या करे पैसा भी तो कमाना है इसलिए तो जानकर भीअनजान बने हुए अपने सरकारी दफ्तर में बैठे हुए हैं
*मजदूरों को नहीं मिलता काम*
मजदूर अपने हक के लिए सरपंच सचिव और अधिकारियों के पास गिड़गिड़ाते रहते हैं लेकिन भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के मकड़जाल में फसें जिम्मेदार उनकी सुनने को तैयार नहीं रहते हैं सरकार भले ही मनरेगा को पारदर्शी बनाने के लिए कड़े कदम उठा रही है लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है कि नियमों को दर किनार कर सरपंचों और सचिवों ने एवं अधिकारियों ने इस योजना को अपनी आय का बड़ा श्रोत बना लिया है यहां केवल अभिलेखों में जॉब कार्ड धारक से काम कराया जाना दर्शा दिया जाता है जबकि धरातल पर कुछ और ही गुल खिलाये जाते हैं
*प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष रूप से शुरू हुए थे काम*
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में शासन की मंशा अनुसार ग्राम पंचायतों में मजदूरों को वर्ष भर में सौ दिन रोजगार देने का प्रावधान दिया गया है जिसके तहत ग्रामों में मजदूर इस योजनाओं का लाभ प्राप्त कर सकें तो पंचायतों में किये जाने वाले निर्माण कार्यों में कार्य कर मजदूरी प्राप्त कर सकते हैं कोरोना महामारी से जहां पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया था जिसके बाद बाहर से आए मजदूरों को अपनी अपनी पंचायत में ही काम मिले इस मंशा से सरकार ने मनरेगा के काम शुरू करवाएं थे लेकिन जिस प्रकार से यह योजना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहटन द्वारा शुरुआत की गई थी जिसका लाभ बाहर से आए प्रवासी मजदूरों को उन्हीं की पंचायतों में मिले लेकिन ग्राम पंचायतों के सरपंच सचिव और रोजगार सहायक द्वारा पंचायतों के मशीनों से काम कराए जा रहे हैं और कामों में फर्जी मस्टर भरकर मजदूरों का काम देना दर्शाया जा रहा है
*ऐसे होता है खेल*
ग्राम पंचायतों में जेसीबी से निर्माण कार्य करा लेने के बाद फर्जी मस्टररोल जारी करके मजदूरी का भुगतान सीईओ एवं उपयंत्री की मिलीभगत से करा लिया जाता है यदि जेसीबी से काम कराते पकड़े गए तो हितग्राही से यह कहला दिया जाता है कि में अपने स्वयं के खर्च से करवा रहा हूँ सगे संबंधी व विश्वासपात्र मजदूरों के सौ-दो सौ रुपए देकर बैक से पैसे निकालवा कर बंदरवाट कर लेते हैं
इस संबंध में अधिकारियों से बात करना उच्च नहीं समझा क्योंकि सिर्फ आश्वासन दिया जाता है या फिर जांच करवा लेते हैं लेकिन होता कुछ नहीं है।

– विशाल रजक मध्यप्रदेश

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