रुड़की निकाय चुनाव: लोकतंत्र के तानाशाह छीन रहे जन-अधिकार

रुड़की/ हरिद्वार – रुड़की लोकतंत्र के तानाशाह अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए किस हद तक जा सकते हैं, जनता के अधिकारों को कितना दबा सकते हैं, इसका उदाहरण बन गए हैं रामपुर-पाड़ली क्षेत्र, जहां के लोग पिछले 3 साल से अपना जन-प्रतिनिधि चुनने का लोकतान्त्रिक अधिकार गंवाए बैठे हैं। 2015 में हुए पंचायत चुनाव में पिछली सरकार ने उन्हें अपना प्रधान नहीं चुनने नहीं दिया था और मौजूदा सरकार अब उन्हें अपना मेयर चुनने का मौक़ा नहीं दे रही है। लोकतंत्र के रक्षक स्वार्थ पूरे करने को तानाशाह बने दिख रहे हैं। खास बात यह है कि भले ही यह काम भाजपा सरकार खुद कर रही हो लेकिन असल में यह सब कलियर विधानसभा क्षेत्र के राजनीतिज्ञों की हितों के मद्दे-नज़र होता आ रहा है।

मुद्दे पर आगे चर्चा करने से पहले जान लें कि पाड़ली और रामपुर, दोनों ही ठोस मुस्लिम आबादी वाले बड़े क्षेत्र हैं। दोनों की सम्मिलित मतदाता संख्या 20 हज़ार के क़रीब है। 2010 में दोनों क्षेत्रों में ग्राम प्रधान चुने गए थे लेकिन 2015 में ज़िले में पंचायत चुनाव से ऐन पहले सरकार ने दोनों ही को रुड़की नगर निगम में शामिल कर दिया था। ऐसा उस समय कांग्रेस सरकार ने अपने विधायक फुरकान अहमद की इच्छा पर किया था। कांग्रेस के कलियर विधायक फुरकान अहमद का रामपुर गृह ग्राम है जो रुड़की नगर से सटा हुआ है। इसी प्रकार पाड़ली भी कलियर विधानसभा क्षेत्र का भाग और रुड़की से सटा होने के साथ-साथ फुरकान अहमद का प्रभाव क्षेत्र है। दोनों क्षेत्रों को नगर वाली सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से ऐसा हुआ था। साथ ही यह मसला भी था कि गांव में फुरकान अहमद का स्थानीय प्रधानी को लेकर चला आ रहा सनातन विरोध निष्प्रभावी हो गया था।

लेकिन कांग्रेस सरकार का यह फैसला क्षेत्र के प्रभावशाली राजनेता और बसपा के निष्कासित पूर्व विधायक मु. शहज़ाद को रास नहीं आया था। यही कारण है कि 2017 में भाजपा सरकार के अस्तित्व में आते ही उन्होंने पाड़ली-रामपुर को रुड़की निगम क्षेत्र से बाहर करा दिया था। मु. शहज़ाद के प्राचीन सखा शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने बिना देर किये यह निर्णय ले लिया था। इसे लेकर फुरकान अहमद हाई कोर्ट चले गए थे। इस मुद्दे पर सरकार हाई कोर्ट में मुंह की खा चुकी है। लेकिन फुरकान अहमद की वह नहीं चलने देना चाहती। यही कारण है कि सरकार ने हाई कोर्ट में हारने के बाद अपनी इच्छा पूरी करने के कई बंदोबस्त किये थे। पहला विधानसभा में प्रस्ताव लाकर उसने उस वजह को ख़त्म किया जो अदालत में उसकी हार का कारण बनी थी। पहले किसी निकाय से किसी क्षेत्र को बाहर करने का कानूनी अधिकार सरकार को नहीं था। अब इसका प्रावधान कर दिया गया है। दूसरे, रुड़की निकाय में कुछ नए क्षेत्र शामिल कर सरकार ने इस मसले को फिर उलझा दिया है। और इसी प्रक्रिया का सहारा लेकर उसने रुड़की के बगैर निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी है। यानि रामपुर-पाड़ली के लोगों के अधिकारों का हनन तो किया ही है, रुड़की के लोगों का अधिकार भी दबा लिया है।

जान लें कि पाड़ली-रामपुर क्षेत्र कलियर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं। कलियर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर 2012 में फुरकान अहमद विजयी हुए थे। तब उनके सामने बसपा के तत्कालीन विधायक मु. शहज़ाद हारे थे। 2017 में भी जीत तो फुरकान अहमद की ही हुई थी लेकिन उनके मुक़ाबले पराजित हुए थे भाजपा के जय भगवान सैनी। बसपा से निष्कासित होकर बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े मु. शहज़ाद ने वोट तो 24 हज़ार ले लिए थे। वे अपने-आपको राजनीति में कायम रखने में भी कामयाब हो गए थे। लेकिन वे जीत नहीं पाए थे। रामपुर-पाड़ली में उन्हें सबसे करारा झटका लगा था। इसी का खामियाजा अब स्थानीय लोग भुगत रहे हैं। विडम्बना यह है कि निजी हितों की इस लड़ाई में भाजपा सरकार मोहरा बन रही है।

– रूडकी से इरफान अहमद की रिपोर्ट

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