बाड़मेर जिले के अस्पतालों में रिक्त पदों की भरमार: कोराना योद्धाओं को कैसे मिलेगी निज़ात

बाड़मेर /राजस्थान- कोरोना की रोकथाम के लिए राज्य सरकार ने अफसरों की एक लम्बी चौड़ी फौज तो तैनात करली, लेकिन परस्पर तालमेल के अभाव में अफसरों को यह समझ नही आ रहा है कि उन्हें कोराना भड़भड़ी के चलते करना क्या है । यही वजह है कि कोरोना की रफ्तार में अन्य राज्यो के मुकाबले तेजी से इजाफा हो रहा है ।

सीएमओ में सलाहकार के तौर पर आज-कल अरविंद मायाराम और डॉ गोविंद शर्मा के पास कोई कार्य नही है । निश्चय ही अरविंद मायाराम एक अच्छे प्रशासक है तथा दिल्ली के अफसरों से उनके अच्छे ताल्लुकात है । इसके अलावा गोविंद शर्मा भी प्रशासक होने के नाते चिकित्सक भी है । निवर्तमान राजीव स्वरूप भी एक अच्छे प्रशासक रहे है । पिछले कोरोना काल मे उन्होंने बखूबी कार्य किया है । उनकी भी सेवाए ली जा सकती है।बशर्ते मुख्य सचिव निरंजन आर्य को ये लोग मुफीद लगे थे।

राज्य सरकार को चाहिए कि अरविंद मायाराम की निगरानी में एक उच्च स्तरीय कोरोना कमेटी बनाई जाए जिसमे गोविंद शर्मा,आरुषि मालिक तथा डॉ समित शर्मा जैसे चिकित्सकों को शामिल किया जाए । इसके अतिरिक्त ऐसे आईएएस और आईपीएस को भी कमेटी में जगह दी जानी चाहिए जो चिकित्सक के रूप में दक्ष हो । इन लोगो के तजुर्बे का राज्य सरकार को भरपूर फायदा उठाना चाहिए । वरना सिद्धार्थ महाजन जैसे अफसर प्रदेश की लुटिया डुबोकर रख देंगे।इसके अतिरिक्त राजनीतिक कमेटी की भी आवश्यकता है जिसमे सत्तापक्ष के अलावा विपक्ष के लोग भी सम्मिलित हो । डॉ किरोड़ी लाल के चिकित्सकीय अनुभवों का भी मौजूदा हालात में लाभ उठाया जा सकता है।

बाड़मेर सरहदी जिला होने से हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। राज्य में सबसे ज्यादा शिक्षा व चिकित्सा व्यवस्थाओं के क्षेत्र में पिछड़ा हमारा बाड़मेर जिला ही है। हालांकि अशोक गहलोत सरकार द्वारा समय समय पर इसके लिए लगातार प्रयास किए जा रहे है। लेकिन यह सभी प्रयास कोराना भड़भड़ी के चलते पिछले एक डेढ़ साल से नाकाफी साबित हो रहे हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए बाड़मेर जिले की चिकित्सा व्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा सुधार करने की जरूरत है। वर्तमान में मुख्य चिकित्सा अधिकारी के मुताबिक बाड़मेर जिला मुख्यालय पर लगभग एक हजार बेड, ढाई सौ डाक्टरों और तीन सौ नर्सिंग स्टाफ के हवाले बाड़मेर जिले के सभी लोगों का इलाज करने में लगे हुए हैं। लेकिन कोराना भड़भड़ी के मरीजों का दिनों-दिन बढ़ता जा रहा ग्राफ जिले के राजनीतिक आकाओं की नींद जरूर उड़ा रहा है। चिकित्सा व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए अतिआवश्यक अस्थाई आधार पर ले रहे हैं।इस जगह पर कोराना भड़भड़ी के कारण स्थाई रूप में नियुक्त किया जाता है तो फिर डाक्टरों का भी मनोबल बढ़ेगा।

चिकित्सा विभाग में राज्य स्तरीय स्वीकृत पदों की तुलना में अधिकांश पद पिछले कई सालों से रिक्त ही चल रहे है। लेकिन उस पर राज्य सरकार व चिकित्सा विभाग के अधिकारियों द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया है। जिसका खमियाजा आमजन के साथ साथ कोराना भड़भड़ी के मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। हालांकि अस्पताल प्रबंधन द्वारा कार्यरत कर्मचारियों से अतिरिक्त काम करवाकर व्यवस्थाएं जैसे तैसे चलाई जा रही है। लेकिन इस समस्या का आजतक स्थाई समाधान नहीं हुआ है।

राज्य में डाक्टरों के लगभग 1203, नर्सिंग स्टाफ प्रथम 739, द्वितीय के 1144 ओर लेब टेक्नीशियन के लगभग दो हजार पद वर्तमान में रिक्त हैं, कुछ दिनों पहले सरकार द्वारा लेब टेक्नीशियनो को कोराना जांच-पड़ताल करने के लिए अलग-अलग जिलों में नियुक्त किया गया था। कितने लेब टेक्नीशियनो ने जोइनिंग किया है यह रिपोर्ट आनी बाकी है। वहीं हमारे बाड़मेर जिले के चिकित्सा व्यवस्थाओं में डाक्टरों के 69 , नर्सिंग स्टाफ प्रथम 14 , द्वितीय दो और लेब टेक्नीशियन के 88 पद वर्तमान में रिक्त हैं।आमजन को मेडिकल सुविधाएं देने के जिम्मेदार चिकित्सा एवं स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा में 25 से 30 फीसदी पद खाली हैं।

अशोक गहलोत सरकार के तीन साल पूरे होने को हैं, लेकिन कानूनी अड़चनों तथा विभागीय परेशानियों से भर्ती पूरी नहीं हो पाई है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा विभाग में डॉक्टर, नर्सिंग, पैरामेडिकल स्टाफ व मंत्रालयिक कर्मचारियों समेत पचास हजार पद रिक्त चल रहे हैं। खुद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में ही डॉक्टरों के 11 हजार 818 में से 3 हजार 22 तथा अराजपत्रित कर्मचारियों के 88 हजार 561 में से 31 हजार 560 खाली हैं। इसके अलावा मेडिकल शिक्षा में 28 हजार 770 में से 9 हजार 765 और राजस्थान मेडिकल सोसायटी की ओर से संचालित मेडिकल कॉलेजों में 2 हजार 796 में से 1133 पद खाली हैं। पद खाली होने से न केवल मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पताल बल्कि जिला मुख्यालय, पीएचसी व सीएचसी स्तर तक मरीजों का इलाज इन दिनों प्रभावित हो रहा है।

मौसमी बिमारियों के साथ ही जिलों में मलेरिया निरीक्षक के 34, सी. तकनीकी सहायक के 535, ईसीजी टेक्नीशियन के 267, जनस्वास्थ्य निरीक्षक के 34, रिकार्ड सहायक के 1790 और ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट के 15 स्वीकृत पद हैं, लेकिन इनमें सभी पद लगभग खाली हैं। लेकिन इस ओर ध्यान नहीं देने के कारण आमजन को कोराना भड़भड़ी के दौरान खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ की कमी से मरीजों की परेशानी अस्पताल में पैरामेडिकल के साथ ही तकनीकी व कार्यालय स्टाफ के पदों की तुलना में बेहद कम कर्मचारी लगे हुए हैं। अधिकारियों की नजर में हालांकि नर्सिंग स्टाफ पर्याप्त है। लेकिन उसके बाद अन्य अधिकांश पद रिक्त होने से सभी कामों में परेशानी तो अस्पताल प्रशासन को ही उठानी पड़ रही हैं। अस्पताल प्रबंधन द्वारा समय-समय पर कार्यरत दूसरे कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है।

अस्पताल में सबसे महत्वपूर्ण सफाई व्यवस्था होती है। लेकिन जिला मुख्यालय पर सरकारी अस्पताल में किसी संस्था द्वारा ठेकेदारी प्रथा के अनुसार सफाई कर्मचारियों को लगाया गया है। लगभग चार-पांच दर्जन कर्मचारी कार्यरत है। जिससे अस्पताल की सफाई व्यवस्था भी पूरी तरह से चाक चौबंद नज़र आती है।

सरकारी अस्पताल में अधिकांश कर्मचारियों के पद रिक्त चल रहे है। हालांकि कार्यरत अन्य कर्मचारियों से व्यवस्थाओं को सम्हालने की कोशिशें की जा रही है। इस संबंध में चिकित्सा विभाग के उच्चाधिकारियों को अवगत करवा दिया गया है। अधिकांश पद रिक्त होने से चिकित्सा व्यवस्थाओं में काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। कोशिश की जा रही है कि मरीजों को कम से कम कोराना भड़भड़ी के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़े।

– राजस्थान से राजू चारण

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