प्रधानमंत्री जी से मन की बात

मार्च के बाद मौसम बदलते के तुरन्त बाद अप्रैल में कोरोना संक्रमण का दूसरा फेस चरण ने देश के प्रत्येक वर्ग को बिना किसी भेदभाव के पूरी तरह से जकड़ लिया। हम स्पष्टरुप से कह सकते हैं कि पूरा देश, प्रत्येक राज्य इस संक्रमण के दौर से प्रभावित हो रहा या होता जा रहा है। स्थिति यह भी देखने में आ रही है कि सरकारी विभाग के अधिकारी व कर्मचारी एवं परिवारीजन भी इस संक्रमण से प्रभावित होकर घरों में और अस्पतालों में पड़े हैं। बहुत ही चिंताजनक मंजर सामने आ रहा है। इसके साथ ही मैं आपको बता दूं कि मैंने अभी केन्द्रीय वित्त मंत्रालय एवं केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री के कार्यालय में फोन मिलाकर बात करने की कोशिश की तो बताया कि कार्यालय में कोई नहीं है लगभग सभी कर्मचारी कोरोना पोजीटिव हैं। पता नहीं यह लहर कब ठहरेगी, कुछ भी कहा नहीं जा सकता।

इस दूसरे दौर में कब कौन कैसे चला जा रहा है, विस्मय ही हो रहा है। स्थिति यहां तक आती जा रही है कि सोशल मिडीया गु्रप खोलने की हिम्मत नहीं हो रही है कि किसकी खबर पढ़ने को मिल जाये। मेरे बहुत से साथी, परिचित, रिश्तेदार एवं शुभचिंतक हमसे अलविदा ले चुके हैं, जिनकी यादें ही अब शेष बची है।

कोरोना के पहले चरण में केन्द्र के साथ राज्य सरकार ने पूरे देश में लाॅकडाउन लगाकर बहुत हद तक रोकने का ;सफलद्ध प्रयास किया, यहां तक कि सरकार ने देश के करदाता के साथ प्रत्येक वर्ग को राहत पैकेज देकर राहत प्रदान करने की भरपूर कोशिश की। इस लाॅकडाउन का प्रभाव यह देखने को देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। लेकिन इस दूसरे चरण में सरकार भरपूर प्रयास कर रही है लेकिन परिणाम जो देखने में आ रहे हैं उसको भयानक ही कहा जाना चाहिए। लेकिन यहां तक कि सरकार की कार्ययोजना फेल होती नजर आ रही है। हमने जो इस दूसरे चरण की स्थिति का आंकलन किया है वह अपने शब्दों में लिखने का प्रयास कर रहा हूं।

केन्द सरकार ने पहले चरण में देश के आम करदाताओं के लिए बिना मांगे सुविधा प्रदान की कि जीएसटी एवं आयकर के सभी रिटर्न की अंतिम तिथि को 30 जून 2020 तक बढ़ा दी यहां तक कि उपभोक्ताओं से ;फरवरी एवं मार्च 2020 मेंद्ध वसूला गया जीएसटी को भी जमा करने की छूट प्रदान करते हुए राहत प्रदान की। इस राहत से आम करदाताओं ने राहत का अनुभव किया। लेकिन दुखःद स्थिति यह है कि इसी माह शुरु हुआ दूसरे चरण में केन्द्र सरकार द्वारा राहत देने के नाम पर कान में तेल डालकर बैठ गया। जबकि हमारे संगठन (एसोसिएशन आॅफ टैक्स पेयर्स एवं प्रोफेशनल्स) के साथ देशभर के बहुत से संगठनों ने पत्र लिखकर वर्ष 2021 के अंतिम त्रैमास के जीएसटीआर-3बी की अंतिम तिथि बढ़ाने की मांग की। हमको सूचना यहां तक मिल गई कि सभी मांगपत्रों का संकलन कर पत्रावली को मंत्रालय के अधिकारियों ने माननीय वित्तमंत्री के पास भेज दिया लेकिन हमारी वित्तमंत्री कोई सकारात्मक निर्णय लेने में सफल नहीं हो पा रही है!! अथवा कोई निर्णय नहीं ले रही हैं!!

मेरी उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों के कर अधिवक्ताओं से बात होती रहती है। जब बात होती है तो पता चलता है कि अधिकांश अधिवक्ताओं एवं करदाताओं और उनके परिवार में कोई न कोई कोरोना के कारण अस्पताल में दाखिल है अथवा कोई हमको छोड़कर चला गया।

लेकिन इस दूसरे चरण के भयंकर दौर में जब करदाता के परिवार का कोई सदस्य हमको छोड़कर चला गया अथवा कोई अस्पताल में दाखिल है तो वह कैसे टैक्स या अपना रिटर्न दाखिल करे। यह चिंता सर्वव्यापी हो चली है। करदाताओं को एक चिंता और खायी जा रही है कि अस्पताल से आते ही उसको टैक्स जमा करना है और रिटर्न दाखिल करना है। बहुत से करदाताओं ने अस्पताल से अपने अधिवक्ताओं को फोन करके अनुरोध करते देखा है कि वकील साहब मैं अथवा उसका परिवारीजन अस्पताल में हैं, मैं अभी कुछ भी करने में असमर्थ हूं। इन परिस्थितिओं में अधिवक्ता तभी अपने दायित्व को निर्बीन कर सकता है लबकि व्यापारी द्वारा टैक्स जमा कर दिया गया हो। वर्तमान परिस्थिति में यह संभव नहीं है। इधर हमारे देश के कर अधिवक्ता भी इतने कर्मठ है कि इस दूष्कारी के काल में भी अपने दायित्वों को निभाने के लिए लगे हुए है भले ही वह घर से रिटर्न दाखिल कर रहे हो, लेकिन कर रहे हैं।

ऐसी स्थिति में मेरे मन में अनेक विचार और प्रश्न उत्पन्न हो रहे हैं। हम भी जानते हैं कि जब देश का व्यापारीवर्ग टैक्स जमा करेगा तभी देश को राजस्व प्राप्त होगा। जब राजस्व प्राप्त होगा तो देश का आर्थिक विकास होगा, जब आर्थिक विकास होगा तो किसी भी स्थिति से निपटने के लिए सरकार सक्षम होगी। लेकिन प्रश्न यह उत्पन्न हो रहा है कि ‘‘क्या सरकार को देश के ऐसा करदाता, जो कि बिना वेतन का कर्मचारी है? उसके प्रति सरकार को कोई हमदर्दी नहीं रखनी चाहिए?’’ प्रश्न यह भी उठाना चाहते है कि क्या सरकार केवल गरीब वर्ग, दलित, अल्पसंख्यक वर्ग के लिए सरकार के हमदर्दी पूर्ण निर्णय सामने आती रहती है लेकिन देश के करदाता जो कि देश को भरपूर राजस्व वसूल कर दे रहे हैं, क्या उनके प्रति सरकार का कोई कत्र्तव्य नहीं, कोई हमदर्दी नहीं?

जबकि देखा यह जा रहा है कि कोरोना के दूसरे चरण में आक्सीजन की भारी मांग को पूरा करने के लिए देश के उद्योगपति खुलकर सामने आ गये, अपने कारखानों को आपूर्ति हो रही आक्सीजन को रोककर, और नये-नये कारखाने लगाकर सरकार को आक्सीजन की निर्बाध आपूर्ति करने में दिनरात लगे हैं। जबकि उस आक्सीजन पर सरकार को 12 प्रतिशत की दर से जीएसटी भी मिल रहा है।

देश का पयर्टन, कैटरिंग, होटल उद्योग एवं निर्माण इकाईयां बुरी तरह से प्रभावित हो चुके हैं, क्योंकि विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर से राज्य में लाॅकडाउन लगा दिया गया है। इसके बावजूद भी व्यापारी बिना सरकारी दवाब के कोरोना की चैन को तोड़ने के स्वयं समूह निर्णय लेकर लाॅकडाउन लगाकर सरकार को सहयोग देने को आगे आ रहे हैं।

कहने और लिखने के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं। जैसाकि विभिन्न उच्च न्यायालयों एवं माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भी इसको राष्ट्रीय आपदा के रुप में स्वीकार किया गया है। अतः उक्त परिस्थितिओं में सरकार से यह अपेक्षा अवश्य करना चाहता हूं कि सरकार को देश के करदाताओं के प्रति भी संवदेनाएं और हमदर्दी रखनी चाहिए। साथ ही मैं उन राजनीतिक दलों एवं बु(जीवियों से भी कहना चाहता हूं कि हमेशा उद्योगपति एवं व्यापारियों को कोसने के बजाय इनकी समर्पण भावनाओं को सम्मान करना चाहिए। पिछले साल भी यही व्यापारी सड़को पर निकल पड़े थे सेवा भाव से। खुले दिल से खुले हाथों से जनता की सेवा की और इस वर्ष भी दूसरे रुप में सेवा में लगे हैं।
– आगरा से पराग सिंहल

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