नव दिव्यांग फाउंडेशन के प्रेरणास्रोत और दिव्यांग बच्चों के हमदर्द है संजय मुथा

मुंबई | सामाजिक उत्थान और मानवीय संवेदनाओं को नई दिशा देने वाले संजय मुथा, आज मुंबई के उन गिने-चुने लोगों में शामिल हैं जिन्होंने दिव्यांग बच्चों के लिए अपना जीवन समर्पित कर रखा है। बतौर मुख्य ट्रस्टी, वे नव दिव्यांग फाउंडेशन का संचालन कर रहे हैं, जो ऑटिज़्म से प्रभावित बच्चों को शिक्षा, उपचार, और खेलकूद में अवसर प्रदान करता है।

संजय मुथा का मानना है कि दिव्यांग बच्चों को समाज में वही अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए, जिसके वे हकदार हैं। इसी सोच के साथ उन्होंने नव दिव्यांग फाउंडेशन की नींव रखी, ताकि विशेष बच्चों को उनकी ज़रूरतों के अनुरूप शिक्षा और प्रशिक्षण मिल सके। उनकी दूरदर्शिता का परिणाम है कि आज फाउंडेशन न केवल मुंबई बल्कि आसपास के इलाकों से भी सैकड़ों बच्चों और उनके परिवारों को हर संभव सहायता उपलब्ध करा रहा है।

दृष्टिकोण और सेवाएं
संजय मुथा के नेतृत्व में नव दिव्यांग फाउंडेशन ऑटिज़्म से प्रभावित बच्चों के लिए विशेष कोर्स, व्यवहारिक प्रशिक्षण, और खेल गतिविधियों का आयोजन करता है। उनका उद्देश्य सिर्फ़ शैक्षिक विकास तक सीमित नहीं है; वे इन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने और मुख्यधारा में लाने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। बच्चों के माता-पिता और अभिभावकों को भी आवश्यक परामर्श दिया जाता है, जिससे परिवार और संस्था मिलकर बेहतर परिणाम हासिल कर सकें।

व्यक्तिगत समर्पण और सामाजिक सहयोग
संजय मुथा का व्यक्तिगत समर्पण इस फाउंडेशन के हर पहलू में झलकता है। वे स्वयं बच्चों से जुड़ी गतिविधियों में शामिल रहते हैं, उनके साथ संवाद स्थापित करते हैं और उनकी छोटी-छोटी प्रगति पर भी ध्यान देते हैं। उनकी मान्यता है कि जब तक समाज की मुख्यधारा दिव्यांग बच्चों को अपने साथ जोड़ने के लिए आगे नहीं आएगी, तब तक वास्तविक समावेशी विकास संभव नहीं होगा।

मुंबई और इसके आसपास के क्षेत्रों में सामाजिक कार्यों के लिए संजय मुथा को कई मंचों से सराहना मिली है। उनके प्रयासों से प्रेरित होकर कई व्यवसायी, समाजसेवी और स्वयंसेवी संगठन भी आगे आकर सहयोग दे रहे हैं। यह सहयोग फाउंडेशन के लिए आर्थिक सहायता और संसाधन उपलब्ध कराता है, जिससे संस्थान अपनी सेवाओं का विस्तार कर सके।

संजय मुथा की प्रतिबद्धता और नेतृत्व से नव दिव्यांग फाउंडेशन आज दिव्यांग बच्चों के लिए एक आशा की किरण साबित हो रहा है। उनका मानना है कि अगर समाज एकजुट होकर ऐसे बच्चों के विकास में सहभागी बने, तो आने वाले वर्षों में दिव्यांगता से प्रभावित बच्चों का भविष्य और भी उज्ज्वल हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *