आज़मगढ़- धार्मिक भावना को आहत करने वाले पोस्ट को लेकर सरायमीर में हुए बवाल के बाद समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष द्वारा उलेमा कौसिंल पर की गई टिप्पणी पर पार्टी ने कई प्रतिक्रिया दी और कहा कि उलेमा कौंसिल ओछी राजनीति नहीं करती, आरोप लगाने वाले अपने गिरेबान में झांक कर देखे। राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल सरायमीर में हुई तोड़फोड़ की कड़े शब्दों में निंदा की है। सरायमीर में राजनीतिक आकाओं के इशारेपर अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए बवाल कराया गया जो गलत है, बवाल करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।सपा ज़िलाध्यक्ष द्वारा राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल को घटना का जिम्मेदार बताये जाने वाले बयान पर जिलाध्यक्ष शकील अहमद ने कहा किये तो बिल्कुल वैसे है कि “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे“। सपा और उसके नेताओं ने हमेशा धर्म-जाति, दंगे-फसाद की गन्दी राजनीत की है और आज भी उसी का सबूत दे रहे हैं। कल के पूरे प्रकरण में ओलमा कौंसिल का न कोई लीडर वहां मौजूद था न ही घटना से हमारा कोई लेना देना है। क्योंकि हम जानते हैं कि रासुका लगाना थानेदार के बस का काम नही है तो उसका घेराव करने का क्या तुक? लेकिन हवलदार यादव बताएं कि उनके एक मौजूदा विधायक और एक पूर्व विधायक वहां मौके पे क्या करने गए थे? कहीं वो असामाजिक लोग जिन्होंने इस पूरे षड्यंत्र को रचा और अंजाम दिया कहीं वो सपा के ही लोग तो नही थे और उनकेसपा नेताओं के इशारे पर ही सरायमीर का माहौल खराब करने में लगे थे।क्या उन्हें ही बचाने और उनका शरण देने के लिए सपा के विधायकगण वहां पहुंचे थे, वरना पहले दिन जब असल मामला हुआ तो कोई सपाई कहीं नजर नही आया। इससे पहले भी किसी मामले में सपा के नेता कभी मौके पे नही पहुंचे यानी कि इस बार अवश्य कुछ साज़िश थी। वैसे भी सपा ने हमेशा दंगे फसाद की राजनीति करके ही सत्ता का स्वाद चखा है। ये सब जानते हैं कि दंगे होने से सबसे ज़्यादा राजनैतिक लाभ सपा-भाजपा कोही होता है, इसलिए दंगा कौन करवाना चाहेगा ये समझना भी मुश्किल नही है। 10 सालके राजनैतिक इतिहास में ओलमा कौंसिल ने हमेशा जनपद के साम्प्रदायिक सौहार्द, गौरव, गरिमा और भाईचारे को बनाये और बचाये रखने का काम किया है वो चाहे लालगंज में मंदिर के बग़ल से शराबखाना हटवाना हो या बक्शपूर में दोनो सप्रदाय के बीच हुएदंगे के बाद झगड़े को आपसी सुलह से समाप्त कराना हो। आज़मगढ़ शहर में जामा मस्जिद पर असमाजिक तत्वों के पथराव के बाद स्तिथी को संभालना और कोई प्रतिक्रिया न होनेदेना हो या ऐसी दर्जनों घटनाओं में अमन चैन और सौहार्द को बनाये रखने की मिसाल क़ायम की है।उन्होने कहा कि यह ज़िले की अवाम के लिए सबक़ है कि कैसे फेसबुक पे लिखी एक धार्मिक भावनाओं को ठेंस पहुंचाने वाली पोस्ट से पूरे क़स्बे के अमन चैन में खलल पड़ गया। इसलिए हम सोशल मीडिया के सही इस्तेमाल पर ज़ोर दें और किसी को इसका इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए न करने दें। जनपद की मज़बूती इसका साम्प्रदायिक सौहार्द और भाईचारा है जिसे किसी भी कीमत पर कमज़ोर नही होने देंगे।उन्होंने कहाकि 27 अप्रैल को जब अमित साहू की धार्मिक भावनाओं को ठेंस पहुंचाने वाली पोस्ट सामने आई। पार्टी के लोगों ने तत्काल प्रशासनिक अफसरों से बात की और सुसंगत धाराओं में मुक़दमा लिखा गया। नबी की शान में गुस्ताखी क़ाबिल ए बर्दाश्त नही है पर क़ानूनी लड़ाई क़ानूनी ढंग से लड़नी होती है। इसके बाद कुछ लोगोंने अभियुक्त पर रासुका लगाए जाने की मांग की जिस पर उच्च अधिकारियों से चर्चा करने की बात हुई थी और अधिकारियों का आश्वासन भी मिला था इसके बाद जो हुआ नहीं होना चाहिए था।लेकिन अगले दिन यानी 28 अप्रैल को कुछ अति उत्साहित लोग कुछ राजनैतिक आकाओं केइशारे पर राजनैतिक स्वार्थ के लिए एक गहरी साजिश के तहत सुनियोजित ढंग से अवाम के जज़्बात को भड़का कर उन्हें थाना घेरने लेकर पहुंच गए और वहाँ ज़बरदस्ती थानेदारसे रासुका लगाए जाने की ज़िद करने लगे जबकि रासुका की कार्यवाही ज़िला स्तर के अधिकारियों को तमाम कागज़ी खानापूर्ति और सैंक्शन लेने के बाद करनी होती है। इसकेबाद भी भीड़ को वर्गला कर हालात बेकाबू कर दिए गए और फिर जो हुआ वो न ज़िले के लिएअच्छा है न अवाम के लिए और न ही यह नबी को पसंद आएगा जिसके हम मानने वाले हैं।उन्होने कहा कि कहीं न कहीं लोकल थाना और इंटेलिजेंस की चूक रही कि वो वक़्त रहते इस षड्यंत्र को समझ न सके और हालात को बेकाबू होने से रोक न पाए। हम प्रशासन से मांग करते हैं कि इस साजिश को रचने वालों और तोड़फोड़ करने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करे। इस बात का ध्यान दिया जाय कि किसी बेगुनाह को इसकी सज़ा न मिले क्योंकि धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ मामला होने के कारण आम लोगों काइकठ्ठा होना भी स्वाभाविक है।हम पर इल्ज़ाम लगाने वाली सपा जवाब दे कि प्रदेश में आतंकवाद के नाम पर पहला इनकाउंटर 2005 में मुलायम सिंह की सरकार में हुआ था। देश में गौहत्या के नामपर पहला क़त्ल अख़लाक़ का सपा सरकार में हुआ, 550 से ज़्यादा दंगे प्रदेश में पिछली सपा सरकार में हुए। इसपर उनका क्या कहना है? राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल धर्म, जाती और सम्प्रदाय की ओछी राजनीत नही करती बल्कि हम ज़ुल्म के खिलाफ मज़लूमों की एक मजबूत लोकतांत्रिक राजनैतिक आवाज़ हैं जिसे सपा जैसे तथाकथित सेकुलर दल बर्दाश्त नही कर पा रहे हैं।
रिपोर्टर-:राकेश वर्मा सदर आजमगढ़