दवा बाजार मे रेमडेसिविर इंजेक्शन की किल्लत, प्रशासन मौन, स्टाक कम बताकर हो रही कालाबाजारी

बरेली। कोरोना मरीजों के इलाज में प्रयोग होने वाले रेमडेसिवीर इंजेक्शन की दवा बाजार में किल्लत बनी हुई है। दवा मंडी के कारोबारी इंजेक्शन न होने की बात कह रहे हैं, जबकि सरकारी स्तर पर भी इंजेक्शन लगभग खत्म होने को हैं। संक्रमण बढ़ने के बीच मास्क और सैनिटाइजर की मांग भी चार गुना तक बढ़ गई है। दवा बाजार में इंजेक्शन की किल्लत से कोरोना का इलाज प्रभावित हो रहा है। दवा कारोबारी इंजेक्शन न होने की बात कह रहे है, जबकि सरकारी स्तर पर भी इंजेक्शन के इंतजाम नाकाफी हैं। बाजार में इंजेक्शन की किल्लत से कोरोना का इलाज प्रभावित हो रहा है। दवा व्यापारियों का कहना है कि कंपनियों से सप्लाई तीन से चार दिन बाद मिल रही है। 10 वॉयल की डिमांड होने पर छह वॉयल ही कंपनी उपलब्ध करवा पा रही हैं। जिले में रेमडेसिवीर इंजेक्शन की कमी को लेकर प्रशासन की ओर से काई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं और न ही इनकी कालाबाजारी पर निगाह रखी जा रही है। केवल इतना भरोसा दिलाया जाता है कि इंजेक्शन की कोई किल्लत नहीं है। ऊर्जा व बरेली के प्रभारी मंत्री श्रीकांत शर्मा ने रेमडेसिवीर इंजेक्शन के स्टॉक और उसके खपत का ब्यौरा रखने के निर्देश दिए हैं। मगर इसके बाद भी जिला प्रशासन की ओर से बाजार से इंजेक्शन के स्टॉक और खपत की जानकारी नहीं लेकर सार्वजनिक नहीं की जा रही है। दवा व्यापारियों का तर्क रहता है कि दो महीने पहले कोरोना के मामलों में गिरावट आई थी, उस समय रेमडेसिवीर इंजेक्शन की पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था। कंपनियों ने उन दिनों इंजेक्शन का उत्पादन कम कर दिया था। अब अचानक मरीजों की संख्या बेहद तेजी से बढ़ी है। इसलिए इंजेक्शन की कमी महसूस की जा रही है। ऑर्डर देने पर दो से तीन दिन में इंजेक्शन की सप्लाई मिल पा रही है। वह भी जरूरत के अनुसार नहीं है। रेमडेसिवीर इंजेक्शन की आपूर्ति और खपत पर प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। इंजेक्शन की कमी है, इस दिशा में कंपनियों को उत्पादन बढ़ाने के निर्देश देना चाहिए। जिला औषधि विभाग की ओर से अस्पतालों को इंजेक्शन खरीद के लिए मेडिकल स्टोर्स की सूची तक नहीं दी गई है, जहां इंजेक्शन की जरूरत के हिसाब से उपलब्धता हो। रेमडेसिवीर इंजेक्शन की आपूर्ति और खपत का ब्यौरा तक नहीं है। अगर ये ब्यौरा जुटा रहे हैं तो उन्हें सार्वजनिक करने से क्यों बच रहे है। कोरोना महमारी से हाहाकार मचा हुआ है। दवाईयों के दाम मनमर्जी से वसूले जा रहे हैं। कोरोना से बचाव को कारगर दवाओं का स्टॉक खत्म होने की बात कहकर जमकर कालाबाजारी की जा रही है। रेमडेसिवीर इंजेक्शन के भी दाम कई गुना ज्यादा वसूले जा रहे हैं। मगर औषधि विभाग मौन है। ऐसा नहीं है कि इनको कुछ मालूम न हो। मीडिया में आए दिन ऐसे मामले उठ रहे हैं और लोगों की शिकायतें भी पहुंच रही हैं। बावजूद इसके इस महामारी काल में औषधि विभाग की ओर से कोई छापेमार कार्रवाई नहीं की गई है। औषधि निरीक्षकों की लापरवाही से दवाइयों की कालाबाजारी हो रही है। मजबूर लोगों का जमकर शोषण किया जा रहा है। कई दवाएं ऐसी हैं जो प्रिंट रेट से साठ फीसदी तक सस्ती हैं, वे दवाएं अब तक प्रिंट रेट से कम पर मिल जाती थी। आपातकाल में उनके पूरे दाम वसूलकर मुनाफा कमाया जा रहा है। जीसटी विभाग भी कुछ नहीं करता। जीएसटी तो उसके असल रेट यानि एमआरपी से 60 फीसदी तक के कम का देकर एमआरपी पर दवाएं बेचकर जीएसटी की भी चोरी हो रही है और मोटी कमाई की जा रही है। दवाओं की कालाबाजारी के लिए औषधि निरीक्षक भी जिम्मेदार हैं। वे ऐसे दवा कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई से बचते हैं। इस कोरोना काल में एक भी छापेमार कार्रवाई नहीं हुई तो किसी पर कार्रवाई का तो सवाल ही नहीं उठता। भाजपा के महानगर अध्यक्ष केएम अरोरा ने इस बावत डीएम से भी औषधि निरीक्षक की शिकायत की है।।

बरेली से कपिल यादव

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