त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए बिन बुलाए मेहमान बन रहे दावेदार

फतेहगंज पश्चिमी, बरेली। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए जारी हुई आरक्षण की अंतरिम सूची ने गांवों का माहौल पूरी तरह बदल दिया है। घर-आंगन के साथ गांव की गलियों से लेकर चौराहे और चौपाल तक सिर्फ ग्राम पंचायत चुनाव की ही चर्चाएं हैं। गांव में मतदाताओं की संख्या के अनुसार समीकरण साधने का प्रयास हो रहा है। गांव में होने वाली हर सुख-दुख की घटनाओं में भी दावेदार बिन बुलाए मेहमान बन रहे है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में वोटरों को रिझ़ाने-मनाने का दौर शुरू हो गया है। दावेदार प्रत्याशी गांव में रहने वाले हर किसी के सुख दुख की बात करते देखे जा रहे है। चुनाव से पहले महाशय सुख दुख में खड़े तो दूर उनका हालचाल जानना भी गंवारा नहीं समझते थे। चुनाव के वक्त वे हर दिन फोन या घर जाकर हाल चाल लेते दिखाई दे रहे हैं। ये कहते नजर आ रहे है कि चुनाव में अब की बार हमई को वोट दियो। सबसे ज्यादा प्रधान पद के दावेदार वोटरों को रिझाते देखे जा रहे है। आरक्षण की अंतरिम सूची ने गांव-देहात की राजनीति में पिछले दिन से हलचल ला दी है। ग्राम पंचायत सदस्य से लेकर जिला पंचायत सदस्य के पद को लेकर तमाम राजनीतिक समीकरण उलझ गए हैं। जबकि तमाम लोग इस बार चुनाव में अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए पिछले काफी समय से ग्राम सेवक बने हुए थे। अब पलटी बाजी के बाद फिर से नए समीकरण तैयार करने पर मंथन शुरू हो गया है। गांव में दावेदारों के साथ मतदाता भी आरक्षण सूची आने के बाद अपने नफे नुकसान का आकलन कर रहे हैं। उधर ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में अपनी दावेदारी पक्की करने के साथ माहौल पूरी तरह अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं। छोटे स्तर पर ही सही गांवों में दावतों का दौर भी शुरू हो गया है। राजनीति के रंग अनेक हैं, इसको अप्रैल या मई में होने वाले पंचायत चुनाव में देखा जा सकता है। गांव से दूर शहरों में रहने वाले वोटरों को रिझ़ाने और मनाने के लिए उम्मीदवार उनसे हर दिन फोन पर संपर्क कर वोट डालने के लिए आने की बात कर रहे हैं। करेली के गौतारा निवासी मुकेश ने बताया कि गाजियाबाद के शाहदारा में एक फैक्ट्री मे काम करते हैं। गांव से हर दिन उम्मीदवार फोन पर वोट डालने के लिए आने की बात करे हैं। इसके साथ ही सुबह को गांव में चाय पार्टी और शाम को दारू पार्टी की मस्ती में झूमकर वोटरों से अपने गांव में कब आने की बात पूछते देखे जा रहे हैं। कोरोना काल में प्रशासन और ब्लाक अफसरों की मदद से गरीबों को आर्थिक मदद पहुंचाई जा रही थी जबकि गांव का हर सख्श अपने आप को सुरक्षित रखने की कोशिश में दूसरे व पड़ोसी को महत्व नहीं दे रहा था। चुनाव आते ही उम्मीदवारों को गांव के हर व्यक्ति की याद आ रही है। जिला पंचायत सदस्य के चुनाव मे उतरने की तैयारी कर रहे दावेदार हर मोर्चे को मजबूत कर रहे हैं। गांवों में अपनी रिश्तेदारी तलाशी जा रही हैं और रिश्तेदारों को माहौल बनाने के लिए गांव भेजा जा रहा है। कई ऐसे लोग भी गांव पहुंच रहे हैं, जिन्होंने दशकों पहले क्षेत्र के कालेज से शिक्षा पूरी की और अब अपने साथ पढ़ने वालों से संपर्क कर अपने रिश्तेदार दावेदार को समर्थन देने की बात कही जा रही है।।

बरेली से कपिल यादव

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