तनाव को करें दूर, कोरोना महामारी से मुक्ति के लिए अपने घरो मे करे हवन

बरेली। देश भर में कोरोना महामारी का भीषण संकट का दौर चल रहा है। कोरोना नाम का दानव मानव जाति के लिए काल बना हुआ है। इस समस्या से देश भर में त्राहि-त्राहि मची हुई है। अपना जिला भी इससे अछूता नहीं रहा है। रोज ही यहां तमाम लोग संक्रमित हो रहे हैं। इसकी चपेट में आकर कई जानें काल के गाल में भी समा चुके है। महानगर के सुविख्यात कथाव्यास कहते हैं कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में वर्णित हवन पद्धति का सहारा लेकर इस महामारी को मात दिया जा सकता है। इसके अलावा मुंह पर मास्क और दो गज की दूरी बहुत आवश्यक है। कही मुझे भी तो कोराना नहीं, कहीं मै परिवार के लिए कोरोना कैरियर तो नहीं, टीवी पर आ रही वीभत्स तस्वीरें देखकर आज हर तीसरे आदमी के मन में ऐसे तमाम सवाल पैदा हो जाते हैं। वह कहते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में लोग कोरोना को लेकर बेहद तनाव के दौर से गुजर रहे हैं। हमें इस तनाव से निकलना होगा। कोरोना से अधिक घातक इसकी चिंता है। इसे लेकर मस्तिष्क पर दबाव न बनाएं। स्वस्थ खाएं, सावधानी बरतें, साथ ही प्राचीन संस्कृति में बताई गई हवन पद्धति का सहारा लें। इसके माध्यम से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ उठाया जा सकता है। इसके साथ ही विभिन्न रोगों से छुटकारा भी पाया जा सकता है। इतना ही नहीं संपूर्ण वैज्ञानिक एवं वैदिक विधि से किए गए यज्ञ से वृक्ष-वनस्पतियों की अभिवृद्धि भी की जा सकती है। जटामासी, नीम पत्ती या छाल, तुलसी, गिलोय, कालमेघ, भुई, आंवला, जायफल, जावित्री, आज्ञाघास, कड़वी बछ, नागरमोथा, सुगध बाला, लौंग, कपूर, कपूर तुलसी, देवदार, शीतल चीनी, सफेद चंदन, दारूहल्दी को को समान मात्रा में मिला कर हवन सामग्री के रूप में उपयोग करें। औषधीय हवन सामग्री जिसमें कपूर, गाय का घी को लेकर गायत्री एवं महामृत्युंजय मंत्र की आहुति देना चाहिए। इस सामग्री के न मिलने पर सामान्य हवन सामग्री का प्रयोग कर सकते है। इससे घर में विषाणु नष्ट होंगे, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढे़गी एवं सकारात्मकता में भी वृद्धि होगी। यज्ञ चिकित्सा के जानकार कहते हैं कि इसके सूक्ष्म परमाणु सीधे रक्त प्रवाह में पहुंचते हैं। पाचन शक्ति पर बोझ नहीं पड़ता। मुख द्वारा दी गई औषधि का कुछ अंश रक्त में जाकर शेष मल-मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाता है। इस प्रकार कुछ ही भाग इच्छित अवयवों तक पहुंच पाता है। इंजेक्शन द्वारा दी गई औषधि अधिक प्रभाव पहुंचाती है। लेकिन इसकी भी सीमाएं है। वहीं हवन के धुएं में मौजूद दवाइयां श्वास मार्ग से एवं रोमकूपों से सीधे शरीर में प्रविष्ट करती है। रोगों के आधार पर वनौषधियों, जड़ियों, समिधा सामग्री एवं हवनकुंड के आकार आदि का निर्णय लिया जाता है।।

बरेली से कपिल यादव

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