कहते हैं वक़्त बदल गया । जमाना बदल रहा है। डिजिटल दुनिया मे लोग भी डिजिटल हो गए। पहले TV के चैनल बेड से उतरकर बदलते थे , अब हाथों से रिमोट नही हटते , DD नेशनल पर आने वाले शाम का समाचार बुधवार , शुक्रवार, रविवार की रंगोली और चित्रहार न जाने कहाँ गुम हो गए। लोग अपने दूरदर्शन को भूल कर निजी और कमर्शियल चैनल को ज्यादा पसंद करने लगे। और वाजिब भी है। क्योंकि वो चैनल वही दिखती है जो लोगो को पसंद आता हैं। याद कीजिये वो दिन जब हम किसी के खत का बेसब्री से इंतजार करते थे। और खत मिलने पर घंटो उसमे उलझे रहते थे। फिर उसका जबाब लिखते हुए अपनी दिल की सारी बाते अपनी इमोशन उस खत में उतारने की कोशिश करते थे। महीनों महीनों तक खत का इंतजार होता था। बहुत अर्जेंट खबर हो तो टेलीग्राम हुआ करता था।
पर अब इस ईमेल, व्हाट्सएप, ट्यूटर फेसबुक ,इंस्टाग्राम ने सब को खा लिया।क्योंकि अब जमाना डिजिटल हो गया।
माना कि इस डिजिटल दुनिया ने लोगो के जीने का लाइफ स्टाइल बदल दिया । सोच और समझ बदल तौर तरीकों दिए पर क्या ये बात झूट है की इस डिजिटल दुनिया के आर में हम कितने को पीछे छोड़ आये। कल तक जो हमलोग साथ बैठ कर किसी भी मुद्दे पर बात किया करते थे , बहस किया करते थे। अब वो वक़्त सोसल मीडिया में बिताने लगे। ना घर की कोई चिंता ना रिस्तेदार की परवाह ।भाई, बहन, माँ, बाप,दादा,दादी, फूफा ,फुआ , गांव , समाज सब पीछे छूट रहे हैं। और हम सब व्हाट्सएप, फेसबुक पर लगे रहते हैं। किसी के पास टाइम ही नही है कि अपने बड़े बुजुर्गों से कुछ सीखे , लोग अब हर जानकारी गूगल में ढूढ़ते है। माना कि सारी जानकारी गूगल पर मिल जाएगी पर वो बुजर्गो का अनुभव, मां का पयार बाप का दुलार कहाँ मिल सकेगा। मानो तो सोसल मीडिया ने सब को बांध कर रख दिया । जब हम पहले ट्रैन में , बस में , ऑटो रिक्शा में सफर करते थे तो सब आपस मे बातें करते हुए सफर का मजा लेते थे एक दूसरे से जानपहचान बढ़ती थी। और एक दूसरे के सीट पर बैठ कर हजारो मिलो का सफर हँसते मुस्कुराते बिता लेते थे। पर अब वो सब एक मोबाइल, लैपटॉप, टेबलेट में सिमट कर रह गया। माना कि डिजटल दुनिया होने से लोगो का काम आसान हो गया पर दूसरी तरफ इससे बेरोजगारी की बाढ़ सी आ गई। जहां 4 आदमी मिलकर काम करते थे अब एक कप्यूटर कर रहा है 3 लोग बेरोजगार घूम रहे हैं
और सबसे बुरा प्रभाव तो बच्चों पर पर रहा है जो किसी को कुछ समझने को तैयार ही नही है। हम खुश होते हैं कि हमारा बच्चा मोबाइल और लैपटॉप से खेल रहा है , हम समझते है कि इससे समाज मे हमारी प्रतिष्ठा बढ़ रही हैं पर हम इस बात को भूल जाते है कि वो हमसे , समाज से , परिवार से धीरे धीरे दूर होते जा रहे हैं और इसी सोसल मीडिया के कारण कुछ बच्चे अपराध की दुनिया मे कदम रख देते है। और हमे बाद में ज्ञात होता हैं कि हमने कितनी बड़ी भूल कर दी। समाज को गर बदलना है , और बदलना चाहते है तो इस प्रकार के हो रहे गतिविधियों से बचना होगा । सब को एक साथ मिलजुलकर बैठना होगा। और इस डिजीटल दुनिया के नकाब को उतारना होगा । दुनिया कितना भी डिजिटल हो जाय रोटी हम गूगल से डॉउनलोड नही कर सकते।
-शिव शंकर सिंह,पूर्णिया/ बिहार