जागो लोकतंन्त्र के चाैथे स्तम्भ कहलाने बालों

आज कल प्रदेश में मानों पत्रकारों कि बाड सी आ गई है । पर उनको नही पता की पत्रकारिता कहते किसे है । लेकिन फिर भी हमारे कुछ तथा कथित पत्रकार साथी पत्रकारिता का तमगा लिया। देश के सभी पत्रकारो को शर्मिदा करने पर तुले हुयें है । यही बजह है अधिकारी और राजनेता भी बहुत अच्छें से जानतें है। सामने खडा हुआ शख्स कितना बडा पत्रकार है । यह उसकी भाषा शैली व्यान कर देती है । लेकिन अधिकारी बहुत आराम से लालच दिखाकर मुकदमा लिखने में सफल हो जाता है । चूँकि हम नही जानते है । सामने बैठा अधिकारी अापकी पत्रकारिता से खुश होकर आपको पास नही बैठा रहा है । वह आपको सिर्फ इस लिये बैठा रहा है । आपने उसके दस गलत काम को देखकर अंदेखा कर दिया। लेकिन आपके खिलाफ एक फर्जी मुकदमा लिखने नें उसने एक मिनट का बक्त नही लिया ।पर आप सिर्फ सम्बंन्ध बनानें के चक्कर में लगे रहे और उसको मौका मिल गया । यही इसकी सबसे बडी बजह यह है । कि आज के पत्रकारों में जानकारी का आभाव हैं। जिसकी बजह से आये दिन पत्रकारों पर हमलें फर्जी मुकदमें और उनकी हत्याएें हो रही है।

लेकिन यह घटनाएें उनके साथ कभी नही होती जो लोग हमारे आदर्श है। जानते है क्यों इसकी भी बजह है जिस तरह माँ और बाप के बिना बच्चा जन्म नही लेता उसी तरह किसी काम को बिना सीखें कोई मिस्त्री या मास्टर नही बनता लेकिन आज पत्रकार बिना गुरू के लोग बने बैठें है। उसका ही निचोड़ आज पुरा पत्रकार समाज भूगत रहा है मै सोचता हुँ । एक बक्त वह था जब डी०एम०और एसपी पत्रकारों से बक्त माँगा करते थे। की आपसे बात करने के लियें आपके 2 मिनट चाहियें अगर बक्त हो तो मै आ जाऊँ लेकिन आज के पत्रकारो एक एस०आई० से बोलते है । भाई साहब आपसे मिलना था क्या आप चौकी पर है । बस क्या यह हमारी पहचान रह गई है । अकसर सुना जाता है पत्रकारो पर धारा ३०७ लूट छेडछाड़ रंगदारी ब्लैक मेल करने के आरोप में मुकदमा लिख दिया जाता है । और बह पत्रकार जानकारी न होने के कारण जेल चला जाता है। उसके बाद हमारे साथी ग्यापन ग्यापन खेलते रहते है । लेकिन होता कुछ नही फिर कुछ दिन बाद मामला शान्त हो जाता है । और उसके बाद ग्यापन ग्यापन खेलने बाले हमारे साथी पत्रकार के जेल से आने के बाद उसको बोलते है हमने तुम्हारी बहुत मदद करी अरें नही चाहिये महोताजी़ भरी और जिल्लत भरी जिन्दगी यह मै नही कह रहा जरा पत्रकाकिता का संबिधान उठा कर तो देख लेते कि पत्रकार पर जो धाराएें लगाई जा रही है । बह सिद्ध भी हो पाया या नही या पुलिस ने राजनैतिक दवाव में आकर जेल भेजा है । और बिना सिद्ध हुयें पत्रकार जेल नही जा सकता यह सिद्ध भी न्यायालय में ही होगा । अगर मुकदमा लिख भी दिया गया है । तो उसको न्यायालय में चैलेन्ज़ करों लेकिन न्यायालय में सिद्ध होने से पहले किसी पत्रकार को जेल नही भेजा जा सकता यह मै नही संविधान कह रहा है ।
आज पत्रकार सोचते है हम राजनेताओं से भी सन्बन्ध बना लें और जिले के अधिकारियों से भी अच्छी पकड़ बना लें । लेकिन पकड़ बनाने के चक्कर में आपना बजूद मिट्टी में मिला दिया जिसका खामियाजा़ हम सबको भूगतना पड रहा है । और अधिकारी हमारे कंधे पर निशाना लगाकर बही अधिकारी राजनेताओं से मिलकर माफियाँओ को पनाह में लेकर उन माफियाओं से हमारे ही साथियों पर हमले करवातें है । जरा सोचों वह सरकारी कर्मचारी है और हम अपनी लेखनी के लियें आजा़द है । एक बात ध्यान रखना हिन्दुस्तान में अगर हमसे कोई जबाब पुँछ सकता है । तो न्यायालय है और प्रेस कॉउण्सिल आँफ इंडिया इसके अलावा कोई नही ।
– सुनील चौधरी, सहारनपुर

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