बाड़मेर/ राजस्थान- कोराना भड़भड़ी के महीनों बाद आज शहर में पार्क की तरफ गया था। कई पुराने परिचितो से रूबरू हुआ. इनमें कुछ ‘परम-भक्त’ थे. उनमें एक अपेक्षाकृत सहज दिखने वाले से पूछा: ‘भाई, क्या हाल हैं, सब लोग सकुशल हैं न! परिवार और मित्रमंडली में?’ कुशलक्षेम के बाद राजनीतिक परिदृश्य पर भी संक्षिप्त चर्चा कर ली! मैने पूछा: ‘क्या सोचते हैं आप और आपके मित्र लोग, मौजूदा परिदृश्य और समाज की बेहाली को लेकर ?’ इसके बाद उस ‘परम-भक्त’ ने जो कुछ कहा, वह मैं यहाँ उन्हें उद्धृत करके भी यहां बयां नहीं कर सकता! बस, एक शब्द में समझ लीजिये कि आज की तारीख में वह सिर्फ ‘पूर्व परम-भक्त’ ही नहीं हैं, पूरी तरह ‘प्रचंड विपक्षी’ हो चुके हैं! मजे की बात कि वह उच्च-वर्णीय पृष्ठभूमि से आते हैं।
मैने पूछा, ‘यह बदलाव सिर्फ आप में है या आपके अन्य साथियों में भी?
उन्होंने बताया: ‘मेरे अस्सी-पचासी प्रतिशत से ज्यादा साथियों की भी अब यही राय है.’ मैने फिर कुरेदा: ‘लेकिन टीवी चैनल वाले दिन-रात जब फिर से उनका महिमामंडन करना और तेज कर देंगे तब?’ उनका जवाब था: ‘वो तो बस शुरू हो चुके हैं, 2024 से पहले 2022 के यूपी के लिए. पर अब लोगों पर टीवी का क़ोई असर नही होगा. सबको मालूम हो चुका है टीवी वाले राग-दरबारी बजाते हैं!’
‘परम-भक्त’ समूहों के अंदर हुए बदलाव की अगर यह एक प्रतिनिधि तस्वीर है तो टीवी वाले कुछ भी बजायें, उनके ‘परम परमेश्वर लोग’ चाहे जितना जोर लगायें और निर्वाचन कराने वाली नौकरशाही को चाहे जितना पटालें, गंगा-यमुना के मैदान में उनका भविष्य इस बार बहुत सुरक्षित नहीं नजर आता!
अगर सब कुछ ऐसा ही रहे तो उन्हें तो यूपी में सिर्फ किसान और नौजवान ही हरा देंगे! पर हम सब जानते हैं, आज के दौर के चुनाव किस तरह लड़े जाते हैं, एक पार्टी-विशेष किस तरह ‘कैश की कर्मनाशा’ बहा देती है! लोग उनके सारे ‘कर्म-कुकर्म’ भुला बैठते हैं। टीवी चैनल वाले उनकी दुन्दुभि बजाना तेज कर देते हैं! खैर, वे जो भी कर लें, यूपी की लड़ाई इस बार हमारे को आसान नहीं नजर आती!
बस, एक पहलू है जो उन्हे जीतने में मदद कर सकता है: यूपी में उनके विरुद्ध कोई ‘जीतने वाला’ नहीं नजर आता। यूपी में न कोई ममता है, न विजयन है और न स्टालिन है! यूपी में दबे-डरे कुछ ‘जीव’ हैं, जिन्होंने बहुत पहले अपनी ‘जीवात्माएं’ बेच दी थीं। अगर वे अपनी-अपनी बिकी ‘जीवात्माएं’ वापस ला दें और जूझने को तैयार हो जायं तो आने वाले समय में यूपी ‘बंगाल-जैसा’ हो सकता है!
एक वरिष्ठ व्यक्ति ने अपनी व्यथा हमें इस तरह से बताई ,सत्ता की सियासत क्या जाने कि बेलगाम कोरोना की दूसरी मारक-लहर ने लोगों के कितने दोस्तों, परिचितो और परिजनों को उनसे छीन लिया है! जिनके लिए कोरोना के आगे असहाय छोड़ दिये गये लोगों की असमय मौतें बस आंकड़ा हैं, जिन्हें छुपाने या घटाने का वे जोड़तोड़ करते रहते हैं, भला उन्हें इस विराट त्रासदी से क्या लेना-देना! वे तो बस इसमें अवसर तलाशने में जुटे हुए हैं।
देश-विदेश की बड़ी कारपोरेट कंपनियों ने इस दरम्यान अपना मुनाफ़ा सबसे तेज गति से बढ़ाया है। इसमें वो कंपनियां सबसे आगे हैं जो हमारे रंग-बिरंगे सत्ताधारियो की ‘हमजोली’ मानी जाती रही हैं। आगे भी महा-त्रासदी का संत्रास आम लोगों को ही ज्यादा झेलना है और वे झेल रहे हैं! इस महामारी से जो जीवित बचे रहेंगे, उन्हें कुछ बरस ही नहीं, ताउम्र अपने जानने वालों, मित्रों या परिजनों की मौतों के दर्द से छुटकारा नहीं मिलेगा! अपनी खस्ताहाल जिंदगी और बर्बाद हुई आर्थिकी से लगातार जूझते रहना होगा।
हमारे जैसे मुल्क में सत्ता और सियासत के खिलाड़ी इस कदर संवेदनहीन और निष्ठुर हो चुके हैं कि वे इस महा-आपदा में भी अवसर तलाशने वाली अपनी आदत से बाज नहीं आयेंगे! वे एक बार फिर चुनाव जीतने के लिए कुछ भी कर देंगे! कुछ सोच ही रहे होंगे कि इस बार क्या ‘करना-कराना’ है! वोट के मौसम में वे अपना गला भारी करके भाषण तक दे देंगे! ज़रूरत पड़ी तो भाषण करते हुए एकाध आंसू भी गिरा देंगे और नहीं गिरेगा तो यूँ ही रूमाल निकाल लेंगे।
कौन जाने ये महामारी कब तक खत्म होगी! जब तक खत्म नहीं होगी, क्या-क्या करेगी? कितनों की और जान जायेगी? इतना तो तय है कि दुनिया, खासतौर पर हमारा ये बदनसीब मुल्क अपने सत्ताधारियो की गलत और अमानवीय नीति और नीयत के चलते शायद ही निकट भविष्य में कभी खुशहाल हो सके! काफ़ी वक़्त लगेगा! कितना? सचमुच, मुझे नहीं मालूम!
तमाम दुखों और,तकलीफ़ों के बावजूद मैं अपने जीवन में कभी निराशावादी नहीं रहा! पर बीते कुछ महीनों से अपने मुल्क को लेकर बहुत मायूस हूं. संकट और समस्याएं सिर्फ एक तरफ से नहीं हैं, चौतरफ़ा हैं. लोगों का एक उल्लेखनीय हिस्सा अब भी समझने को राजी नहीं. पता नहीं, उन पर कौन सा नशा चढ़ा है।
अपने मुल्क और समाज की हालत तूफान से उफनते समंदर में रास्ता खोज रहे उस जल-जहाज जैसी हो गयी है, जिसे साफ और तेज रोशनी वाला कोई आकाशदीप ही सही रास्ता दिखा सकता है! वह ‘आकाशदीप’ किधर है?