उत्तराखंड : पत्रकारिता आज एक मिशन न रहकर बना व्यापार और समाचारपत्र औघौगिक उत्पाद

उत्तराखंड – पत्रकारिता आज एक मिशन न रहकर व्यपार बन चुका है।समाचारपत्र औघौगिक उत्पाद बन कर रह गये हैं। आज विज्ञापन को ही समाचार पत्र की लीडिंग स्टोरी के रूप में प्रस्तुत कर मुख पृष्ठ को भी बेचा जा रहा है ।पाठक को पता ही नही चलता कि वह समाचार पढ़ रहा है या विज्ञापन।लेकिन इनके लिए कोई कायदे कानून नहीं हैं। उत्तराखण्ड में भाजपा की त्रिवेन्द्र सरकार इस तरह के अखबारों में खुले दिल से जनता के धन को अपने प्रचार प्रसार में खर्च कर ठिकाने लगा रही है। दो करोड़ सत्तावन लाख से अधिक की धनराशि सरकार ने केवल अपनी एक साल की उपलब्धि बताने को सात अखबारों में खर्च कर दिये जबकि हकीकत यह है कि सरकार के विकास कार्य शून्य हैं। वाह रे टीएसआर सरकार। उक्त धनराशि यदि राज्य के विकास में खर्च किये होते तो कुछ तो कायाकल्प होता। उत्तरखंडवासी आज भी चिकित्सा, शिक्षा,व पेयजल को तरस रहे हें वहीं सरकार उन पूजीपतियों की झोली भरने में लगी हैं जो अखबार के नाम पर हर 20 किमी के बाद अपने संस्करण बदलकर पाठकों के साथ तो धोखाधड़ी कर ही रहे हैं वहीं सरकार को भी चूना लगा रहे हैं।वहीं वर्षो से इस राज्य से प्रकाशित होने वाले छोटे व मझोले समाचारपत्रों का गला घोंटा जा रहा है।ऐसा नही है कि सूचना विभाग को इन तथाकथित बड़े अखबारों की करतूतों के बारे में न मालूम हो। सब कुछ जानते हुए भी वे अनजान बने हुए हैं।जरूरत है विज्ञापनों के रूप में सरकारी खजाने को लूटने वाले तथाकथित इन बड़े अखबारों के धन्धे पर ब्रेक लगाने की।

-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट

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