उत्तराखंड: गढ़वाल का द्वार काेटद्वार

उत्तराखंड : जनपद पाैडी गढ़वाल के कोटद्वार उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल मण्डल में स्थित पौड़ी जिले का एक मुख्य शहर है। इसे ‘गढ़वाल का प्रवेशद्वार’ भी कहा जाता है।कोटद्वार का अपना ऐतिहासिक महत्व है राजा भरत की जन्म भूमि एवं कण्व ऋषि की तपस्थली होने के कारण इसे लोग
कण्व नगरी के रूप में भी जानते हैं । कोटद्वार से दुगड्डा और लैंसडौन होते हुए पौड़ी तथा श्रीनगर तक पहुंचा जा सकता है।
खोह नदी के तट पर स्थित यह नगर इतिहास में ‘ खोहद्वार ‘ नाम से भी जाना जाता था। नगर का विकास वैसे तो 1890 में रेल के आगमन से ही शुरू हो गया था, किन्तु वास्तविक बसावट प्रमुखतः 50 के दशक में नगर पालिका के निर्माण के बाद ही हुई।
2011 की जनगणना के अनुसार कोटद्वार की जनसंख्या 33035 थी। 2017 में इसकी जनसंख्या 135000 तक पहुंच गई।
कोटद्वार का पुराना नगर खोह तथा गिवइन शोत नदियों के संगम पर स्थित था। 1897 रेलवे लाइन बन जाने के बाद नगर धीरे धीरे दाईं ओर बढ़ने लगा, और खोह नदी की पश्चिमी दिशा की ओर विकसित होने लगा। 1901 में कोटद्वार को नगर का दर्जा दिया गया था, तथा उसी वर्ष हुई प्रथम जनगणना में नगर की जनसंख्या 1029 थी। 1909 में कोटद्वार को लैंसडौन से जोड़ने वाली सड़क का निर्माण सम्पन्न हुआ lइसके बाद लैंसडौन तथा दोगड्डा नगरों के परस्पर विकास के कारण कोटद्वार में काफी पलायन हुआ, और 1921 में कोटद्वार की जनसंख्या मात्र 396 रह गयी; जिसके कारण 1921 में ही नगर को अवर्गीकृत कर ग्राम घोषित कर दिया गया।
1940-41 में कोटद्वार किसी छोटे गाँव के सामान था। द्वितीय विश्व युद्ध के समय नगर क्षेत्र में काफी विकास हुआ, और 1949 में इसे पुनः ‘ नोटिफाइड एरिया ‘ घोषित कर दिया गया।1951 में कोटद्वार नगर पालिका की स्थापना हुई, और 1951-55 में नगरपालिका के प्रमुख इंजीनियर, के. सी. माथुर ने नगर का पहला मास्टर प्लान बनाया। इस मास्टर प्लान के तहत सबसे पहले रेलवे स्टेशन के आस पास के क्षेत्रों को विकसित किया गया, और उसके बाद नगर को धीरे धीरे उत्तर की ओर बद्रीनाथ मार्ग के दोनों तरफ बढ़ाया गया। बड़ी मस्जिद के इर्द-गिर्द भी आवासीय क्षेत्र बसाये गए। 1955 में पालिका कार्यालय के समीप एक उद्यान स्थापित किया गया जिसे मालवीय उद्यान के नाम से जाना जाता है । 1958-59 में नगर का विद्युतिकरण किया गया।आज कोटद्वार को बेहतर बनाने के लिए कोटद्वार के बुद्धिजीवी अपने अपने ढंग से प्रयास कर रहे हैं ।

-पौड़ी से इन्द्रजीत सिंह असवाल की रिपोर्ट

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