उत्तराखंड:गांव की अस्मिता व अस्तित्व को संजोने की दरकार

उत्तराखंड/पौड़ी गढ़वाल- कार्बेट नेशनल पार्क की सीमा से लगे राजस्व ग्राम पांड जो कि ग्राम पंचायत पुनौड़ी का अंग है,विगत दो पंचवर्षीय योजना के पूर्व यह पृथक ग्रामसभा थी, जहां घनसेला वह सुंद्रियाल दो जाति के लोग निवसित हैं। इनकी मूल जाति घनसेला है। लगभग सत्रहवीं शताब्दी में यहां पूर्वज ने बसागत की जिनके तीन पुत्र आनंद मणि,रतनमणि और जयदेव हुए उनकी इकलौती बहन थी जो सुंद्रियाल में ब्याही गई, जिसके दो पुत्र खुशालमणि व खड़कू हुए,चौंदकोट के ऐरोली के थे ।पिता ने उत्तराधिकार में बहिन को भी हिस्सा दे दिया। बद्रीनाथ के गांवों तैड़िया,पांड,झुड़ंगू,बूंगा,डुंगरी, अपोला, गुमानपुर व पंजारा आदि के गुंट गांव होने के कारण ब्रिटिश सरकार व गोरखाक्रमण के समय तैड़िया पांड के निकटवर्ती बयाला, उखेला, तैड्याला, पालपुर, सुंदोली को तो अन्यत्र शिफ्ट कर दिया गया लेकिन इन गुंट गांवों की किश्त भेंट बद्रीनाथ के पंडे डिमरी आकर ले जाते थे,ईश्वर के सच्चे भक्त स्वरूप इन्हें हटाया न गया और शायद आज तक भी यह मिथक रहा है,जो तीस सालों से हो रही कार्यवाही विस्थापन में आड़े आ रही है।सामान्य बोलचाल में तैड़ियापांड को साथ कहा जाता रहा मगर दोनों में छोटी: किमी की दूरी है,मगर यह भी मुख्यमंत्री आ रहा दोनों गांवों ने मिलकर सुख , दुःख झेले।मूल व्यवसाय खेती पशुपालन रहा।पूर्व शिक्षक बनवारीलाल सुंद्रियाल के अनुसार जहां धान ,झंगौरा,कौमी,लैया,मंडुवा,तिल, मूंग फली में सेठ हुआ करते वहीं बड़े बैल व दूध देने वाली गाय भी बहुतायत में थीं।
ब्रिटिश सरकार में गांव के धनधान्य पूर्ण होने पर इन्हें ग्यारह चेक/भूभाग चौड्यूं,लौहाचौड़, हाथी चौड़,रज़ाकंदार,बल़ोट,लिंबाबाड़ी,तूणीसेरा,नागरौतल्ला,मल्ला,बिचला,कणियारौ,गिजारचौड़ खेती-बाड़ी के लिए उपहार में दिये गये। जहां अब बंजर व पूर्णतः:वनाच्छादित हो गया है। गांव की सीमा पर आदमकद चौंडका माता/महिषासुर मर्दिनी की प्रस्तरमूर्ति,सिद्धस्थल में छोटी मूर्तियां, गांव के चहुं दिशा में वट् वृक्ष व पीपल के पेड़ हैं।सनराइजर्स १९४७ में रक्षा विभाग द्वारा लौहाचौड़ से पांड तक बैलगाड़ी चली जिसमें बंकर बनाने के लिए यहां से लकड़ी ले जायी गई। गांव के ख्यात, पाणीखोली, मटिग्याणी, तिमला खोली,गडिगाड,जेठनू आदि अक्वड्या कूरी झाड़ी का लिबास लिए जैसे कराह रहे हैं।पत्तारौल से पांच किलोमीटर दूर लंबी पेयजलापूर्ति योजना भी सिसककर सूख गई है।नैनीडांडा का सीमांत गांव अलमोड़ा, नैनीताल से लगा व पौड़ी का अंतिम है। प्राथमिक विद्यालय उच्च प्राथमिक विद्यालय वर्षोंं पूर्व बन्द हैं।मैदावन से सात किलोमीटर दूर है जिसका क्षेत्रफल राजस्वानुसार ५३हेक्टेयर है।वन ,वनकानूनों के चलते यहां भी विकास नासूर बना। छिटपुट सामान हेतु बारह किमी खदरासी या पंद्रह किलोमीटर दूर कांडा है। वर्तमान में शिवनारायण अकेले ही डेरा जमाये हैबाकी परिवार रोजगार व बच्चे पढ़ाने तैड़िया,बंजादेवीव अन्यत्र हैं।पार्क के बफर जोन में होने पर गांव की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विरासत को जहां आज गहरा प्रभाव पड़ा है वहीं गांव की अस्मिता व अस्तित्व को संजोने की दरकार प्रत्येक ग्रामीण के अंत:स्तल को झकझोर कर उद्भट्ट हो सालती रही है। वर्तमान में गांव वालों के अनुसार ३२मतदाता हैं वो पोलिंग बूथ भी है।
– बिनीता ध्यानी, रिखणीखाल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

किसी भी समाचार से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है।समाचार का पूर्ण उत्तरदायित्व लेखक का ही होगा। विवाद की स्थिति में न्याय क्षेत्र बरेली होगा।