अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस की रही धूम! महिलाओं को किया गया सम्मानित

वाराणसी-आराजी लाईन विकास खण्ड के परमंदापुर पंचायत भवन पर गुरुवार को सृष्टि जन कल्याण व आशा ही जीवन ट्रस्ट के संयुक्त तत्वाधान मे महिला दिवस ग्रामीण क्षेत्र मे धूम धाम से मनाया गया।इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि महिला समाजसेवी सूचिता सिंह ने बताया की महिला दिवस 8 मार्च को इंटरनेशनल वुमेन्स डे के दिन पूरे विश्व में मनाया जाता है।इस दिन अनेक जगह महिलाओं के सम्मान के लिए कई तरह के प्रोग्राम भी किए जाते है।पहली बार महिला दिवस 28 फरवरी 1909 में मनाया गया था।लेकिन पुरे देश में इसे 1975 से मानना शुरू किया गया।इस दिन देश भर में महिलायों के प्रति सम्मान,प्यार और आदर जताते है,महिलायों के आर्थिक,राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उत्सव के रुप में मनाया जाता है।कई देशों में पहले महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था।एक बार रूस की महिलाओं ने 1997 में रोटी और कपड़े के लिए वहां की सरकार के खिलाफ़ आन्दोलन छेड़ दिया था।जब यह आन्दोलन शुरू हुआ था तो उस समय वहां जुलियन कैलेण्डर के मुताबिक रविवार 23 फ़रवरी का दिन था जबकि दुनिया के बाकि के देशों में ग्रेगेरियन कैलेण्डर का प्रयोग किया जाता था जिसके मुताबिक यह 8 मार्च का दिन था।इसलिए 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा।वही सैमुअल मसीह ने बताया की आज के इस नए दौर में महिलायों ने हर छेत्र में अपना झंडा लहराया है।लेकिन पहले ऐसा नहीं था अगर देखा जाए तो जिस प्रकार की आजादी आज हम महिलाओं को प्राप्त हुए देखते हैं, पहले महिलायों के न पढ़ने की आजादी थी,न नौकरी करने की,न कही बाहर जाने की और पहले के ज़माने में महिलायों को मतदान करने की आजादी भी नहीं थी।लेकिन देखते ही देखते जमाना इंतना आगे निकल चुका है की महिलायों ने वो मुकाम हासिल किया है,जहाँ आजकल के लड़के भी नहीं पहुच पा रहे है।कई क्षेत्रों में तो भारतीय महिलाएं का पुरुषों से भी कहीं बेहतर योगदान रहा है। भारतीय महिलाओं के इसी जज्बे को हम सलाम करते हैं।हालांकि हमरे देश में हो रहे महिलायों पर बढ़ते जुर्म को देखकर हमारी सरकारी ने कई कड़े कानून भी बनाये हैं।अगर एक नज़र भारत में हुए अत्याचारों पर डाले तो हमारी रूह कांप जाती है। जैसे दिल्ली गैंगरेप, पंजाब में पुलिस के द्वारा हुई पिटाई और पटना में महिला शिक्षकों पर हुई लाठीचार्ज हमारे देश में रहने वाले लोगों के लिये इससे ज्यादा शर्मिंदगी की बात और क्या होगी। आपको बता दें की भारतीय संस्कृति में महिला को माता का दर्जा दिया गया हैं।इसके अलावा घरेलू हिंसा,एसिड अटैक,अपहरण आदि समाज में महिलाओं के लिए आम बात हो गई है।कुछ लोगों ने महिलायों को अपने पैर की जूती समाज लिया है। लेकिन समय के साथ महिलायों को भी बदलना पड़ा और कड़े कदम भी उठाने पड़े।महिलायों ने खुद को साबित करने के लिए हर छेत्र में पुरुषों को गलत साबित किया है। चाहे वो खेल हो, पढाई हो या घर को चलाने में ही क्यों न हो। जिन खेलों में लोगों की बोलती बंद हो जाती है वहाँ महिलायों ने एक नया मुकाम खड़ा किया है, जैसे मेरी कोम, गीता फोगाट,पीवी सिन्धु,सानिया मिर्ज़ा,सायना नेहवाल,साक्षी मालिक ने अपनी जीत का झंडा लहराया है।इसलिए आज की भारतीय नारी हर छेत्र में आगे बड़ रही है। लेकिन अभी भी भारत में कई जगह महिलायों को अपनी सही पहचान नहीं मिल पाई हैं।अभी भी हमे अपने अंदर कुछ बदलाव लाने होंगे और महिलयों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।इस अवसर पर समाजसेवी विजय कुमार.निशा.पूजा.चन्दा.अंजना आदि लोग रहे।

रिपोर्ट-:शिव कुमार श्रीवात्सव जंसा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

किसी भी समाचार से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है।समाचार का पूर्ण उत्तरदायित्व लेखक का ही होगा। विवाद की स्थिति में न्याय क्षेत्र बरेली होगा।